रत्न-श्रेष्ठ : आखिर क्यों है इस रत्न की इतनी महत्ता ज्योतिष शास्त्र में ? पढ़िए ये खबर

जब बात गृह नक्षत्रों की व उनके दुष्प्रभाव से बचने की होती है, तब इस रत्न को ही माना जाता है बेहतर विकल्प

ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का अपना अलग व विशेष स्थान है। जब बात गृह नक्षत्रों की आती है उनके दुष्प्रभाव से बचने की होती है। तब रत्नों को ही बेहतर विकल्प माना जाता है। हर एक रत्न की अपनी अलग ख़ासियत होती है। आज हम बात करने जा रहे है पुखराज रत्न की। आखिर क्यों पहना जाता है इसे? क्या प्रभाव पड़ता है पहनने से ? ये सब हम आपको बताने जा रहे है इस लेख में :

क्यों पहना जाता है

बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभावों में बढ़ोतरी करने एवं जीवन में सुख समृद्धि लेन के लिए पुखराज रत्न को धारण किया जाता है। इससे बृहस्पति बलवान स्थिति में होता है जिससे व्यक्ति को समाज, परिवार, करियर हर क्षेत्र में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

पुखराज रत्न धारण करने की विधि

पुखराज रत्न को धारण करने से पहले इसे गंगाजल या दूध में डालकर शुद्ध कर लें। इसके पश्चात अंगूठी को एक पीले कपड़े में रख दें। ये काम एक दिन पहले यानी बुधवार के दिन करें। फिर अगले दिन बृहस्पतिवार को सुबह के समय इस अंगूठी को दाहिनी हाथ की तर्जनी उंगली में धारण करें। इस बात का ध्यान रखें की इसका असर केवल 3 सालों तक ही रहता है। उसके बाद इसे बदलवा लें। और इसकी साफ सफाई का विशेषकर ध्यान रखें।

कौन धारण कर सकता है

मेष, कर्क, सिंह, धनु, मीन, वृश्चिक राशि के जातकों को यह रत्न को धारण करना चाहिए। इससे उनको धन और यश की प्राप्ति होती है। विशेषकर धनु और मीन राशि के जातकों के लिए पुखराज रत्न सबसे ज्यादा लाभकारी साबित होता है। क्योंकि गुरु इन दोनों राशियों के स्वामी ग्रह हैं।

कौन धारण नहीं कर सकता

वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ जातकों को पुखराज रत्न धारण नहीं चाहिए। इससे उनको हानि हो सकती है। जबकि पन्ना, नीलम, हीरा, गोमेद और लहसुनिया के साथ पुखराज कभी भी नहीं पहनना चाहिए। यदि बृहस्पति छठें, आठवें व 12वें भाव का स्वामी है तो भी पुखराज धारण करना वर्जित है।

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