यूपी में सरकार बनाना आम आदमी पार्टी के लिए क्यों हैं मुश्किल
पंजाब और यपी थे.यूपी में भाजपा पहली बार दुबारा सरकार बनाने जा रही है तो पंजाब में पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनने जा रही है।
पांच राज्यों में चुनावों के परिणाम आ गए हैं.गोवा, मणिपपुर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है तो वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने जा रही है.इन पांच राज्यों में जो दो राज्य सबसे ज्यादा अहम थे भारतीय राजनीति में वो पंजाब और यपी थे.यूपी में भाजपा पहली बार दुबारा सरकार बनाने जा रही है तो पंजाब में पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनने जा रही है।
2013 में India Against Corruption Movement से निकल कर दिल्ली में सरकार बनाने वाली पार्टी अब पंजाब में सरकारबना रही है.पंजाब में रिकॉर्ड सीटों की जीत के बाद आम आदमी पार्टी में राजनीतिक पंडित भाजपा का विकल्प देख रहे हैं.लोगों को ये लगता है आने वाले भविष्य में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल ही मोदी और भाजपा को टक्कर दे सकते हैं.
लेकिन मोदी और भाजपा को टक्कर देने के लिए देश के सबसे बड़े आबादी वाले राज्य में जनाधार होना जरुरी है. आजादी के बाद से ही भारत में एक कहावत आम है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ होकर ही जाता है।
पंजाब में 117 में से 92 सीटों पर जीत के बाद देश के राजनीती में खलबली मचाने वाली आम आदमी पार्टी अब देश के पटल पर अब अपना वर्चस्व स्थापित करने की जुगत में लगी हुई है। पंजाब की जीत के बाद 11 मार्च को यूपी आप के प्रदेश अध्यक्ष सभाजीत सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उत्तर प्रदेश में भी अगले पांच सालों में पार्टी को बड़ा करने की बात कही है.लेकिन आम आदमी के लिए यूपी की जंग पंजाब के जंग से काफी अलग है.आइए जानते हैं कि आखिर आम आदमी पार्टी के लिए कितना मुश्किल है यूपी –
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धर्म और जाति के तिलिस्म को तोड़ना मुश्किल
यूपी भारत का इकलौता राज्य जहां हर जिले में एक जातिवादी राजनीतिक पार्टी है.यहां की राजनीती पूर्ण रूप से जातिवादी या धर्मवादी कही जा सकती है. ऐसे में यूपी में जब तक कोई पार्टी जातिय समीकरण बिठा कर चुनाव नहीं लड़ती है तब तक उसका जनता से वो जुड़ाव नहीं हो पता है और आम आदमी पार्टी की राजनीतिक रणनीति किसी धर्म या जाती विशेष की नहीं है न ही उनका कोई जाती विशेष वोट है।
यूपी में केजरी मॉडल को हर तबके तक पहुंच जाना
दिल्ली में केजरीवाल मॉडल अबतक हिट रहा है.लेकिन दिल्ली के मुकाबले यूपी काफी अलग है. यहां दिल्ली जैसी बिजली पानी जैसे मुद्दे पर चुनाव नहीं होते.किसान रोजगार शिक्षा जैसी समस्या जरुर है लेकिन यहां क्षेत्रीय क्षत्रपों का वर्चस्व ज्यादा है. वोटर समस्या से ज्यादा विचारधारा को वोट करता है.इसका सीधा उदाहरण 2022 का चुनाव है.जहां दो विचारधाराओं का चुनाव रह गया.
उभरते नेतृत्व की जरुरत
यूपी में आम आदमी पार्टी को एक चेहरा स्थापित करना भी सबसे बड़ी जरुरत है.इस चुनाव में संजय सिंह जरुर मैदान में थे.मुद्दों की राजनीति भी की.राम जन्मभूमि लखीमपुर कांड पर मुखर तरीके से सरकार का विरोध भी किया लेकिन ये हथकंडे आम वोटर तक पहुंच बनाने में नाकाफी रहे.
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