जब राजा ने पूरा गाजीपुर ही दहेज में दे दिया था, ये कहानी आपने नहीं सुनी होगी
अगर आप जिला गाजीपुर के रहने वाले हैं तो अपने इतिहास को जरूर जानना चाहते होंगे।
अगर आप जिला गाजीपुर के रहने वाले हैं तो अपने इतिहास को जरूर जानना चाहते होंगे। आपकी इसी चाह को देखते हुए हम पाठकों के लिए इस खास पेशकश को लेकर आए हैं। इस सीरीज में हम आपको गाजीपुर की कहानी सुना रहे हैं। इससे पहले हमने आपको गाजीपुर के नाम की कहानी सुनाई थी। इस सीरीज के तहत हम आपको अपनी खास रिपोर्ट्स में गाजीपुर का इतिहास बताएंगे।
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इस सीरीज की कहानी मुख्य रूप से गाजीपुर के प्रख्यात लेखक स्वर्गीय डॉक्टर शिवमंगल राय की किताब पर आधारित होगी। डेढगांवा गांव के डॉक्टर शिवमंगल राय पश्चिम बंगाल के हावड़ा में प्रधानाध्यापक रहे। वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के कॉलेजों में प्रवक्ता भी रहे। उन्होंने एक पूरी किताब ही लिखी है जिसका नाम है ‘गाजीपुर का इतिहास’। हमारे पास वो किताब मौजूद है। तो चलिए आज वो किस्सा सुनाते हैं जब राजा ने पूरा गाजीपुर ही दहेज में दे दिया था।
ये कहानी मगध के महारान सम्राट बिंबिसार के समय की है। वैसे इस कहानी को जानने के लिए आपको इसका बैकग्राउंड जानना होगा। असल में तब आज का गाजीपुर काशी-राज के अधीन आता था। यह बात महाभारत काल की है। हमें पूरा भरोसा है कि आपको महाभारत की कहानी जरूर पता होगी। महाभारत के युद्ध से पहले भीष्म ने अपने सौतेले भाई चित्रांगद और विचित वीर्य के लिए काशी राज की तीन बेटियों- अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण किया था। काशी राज के लिए यह घटना काफी अपमानजनक थी। वह भीष्म को अपना शत्रु मानते थे। यानी हस्तिनापुर से उनकी अदावत थी।
इस बीच मगध के राजा जरासंध ने काशी राज को बलपूर्वक अपने अधीन कर लिया। हस्तिनापुर और जरासंध से बदला चुकाने के लिए काशी राज ने मगध की अधीनता के बावजूद महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया। महाभारत में पांडवों की जय हुई लेकिन काशी राज में उथल पुथल मचा रहा। कालांतर में काशी राज कोशल राज्य का हिस्सा बन गया। यहां से कहानी में गाजीपुर की एंट्री भी होती है।
असल में कोशल नरेश की राजकुमारी कोसल देवी की विवाह की उम्र हो गई थी। उधर मगध में शिशुनाग वंश के प्रतापी राजा बिंबिसार का शासन था। कोशल नरेश ने अपनी बिटिया की शादी बिंबिसाल से कर दी। कोशल नरेश ने तब काशी राज के वाराणसी, गाजीपुर और बलिया के तत्कालीन भू-भाग को दहेज के रूप में दे दिया गया। उस समय दहेज में दिए गए इस भूभाग से एक लाख रुपये की वसूली होती थी। और आखिर हो भी क्यों न, गंगा के किनारे की मिट्टी को उपज में कोई पछाड़ पाया है क्या।
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