यूपी: पुण्यतिथि के दिन याद किए जाएंगे कैफी आज़मी

गांव के चूल्हे की जिनमें शोले तो शोले धुआं नहीं मिलता‘‘ लिखकर लोगों को अपना मुरीद बना दिया था। इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

आजमगढ : कैफी आजमी का जन्म 14 जनवरी 1919 को फूलपुर तहसील क्षेत्र के मेंजवां गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम फतेह हुसैन और माता का हफीजुन था। बचपन में लोग इन्हें प्यार से अतहर हुसैन रिजवी कहते थे। कैफी को गांव के माहौल में शायरी और कविताएं पढ़ने का काफी शौक हुआ करता था और शुरूआत भी उनकी यहीं गांव से ही हुई थी। जब उनके भाईयों ने थोड़ा हौसला अफजाई की तो कैफी लिखने भी लगे और इसी का नतीजा था कि कैफी ने महज 11 साल की उम्र में अपनी पहली रचना गजल के स्वरूप में लिखी थी। उनकी शायरी में गांव के दर्द का अंदाज हम इसी से लगा सकते हैं कि उन्होंने अपनी युवावस्था में यह शेर ‘‘वह मेरा गांव वे मेरे गांव के चूल्हे की जिनमें शोले तो शोले धुआं नहीं मिलता‘‘ लिखकर लोगों को अपना मुरीद बना दिया था। इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

1943 में पहली बार मुबई पहुंचे। 1947 तक यह शायरी की दुनिया में अपना नाम मशहूर शायरों में दर्ज करा चुके थे। इसी दौरान उनका विवाह शौकत से हुआ। कैफी साहब ने प्रसिद्ध गीत भी लिखें…जिसको सुनकर, गुनगुना कर देशभक्ति रोम-रोम में झलकने लगती है- कर चले हम फिदा, जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों… हालांकि कैफी आजमी ने अपना पहला गीत 1951 में लिखा था। फिल्म थी बुझदिल। गीत के बोल थे- रोते-रोते बदल गई रात। इसके बाद उन्होंने तमाम फिल्मों में गीत दिया। बुजदिल, कागज के फूल, शमां, हकीकत, पाकीजा, हंसते जख्म, मंथन, शगुन, हिन्दुस्तान की कसम, नौनिहाल, नसीब, तमन्ना, फिर तेरी कहनी याद आयी आदि फिल्मों के लिए इनके द्वारा लिखे गये गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। राष्ट्रीय पुरस्कार के अतिरिक्त कई बार कैफी साहब को फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिले।

उनकी प्रमुख रचनाओं में आवारा सज़दे, इंकार, आख़रि-शब इत्यादि प्रमुख हैं। दुर्भाग्यवश 8 फरवरी 1973 को वे लकवा के शिकार हो गये और मेजवां लौट आये। इन्होंने अपने पैतृक जिले के विकास के लिए आजीवन संघर्ष किया। वर्ष 1981-82 में इनकी पहल पर मेजवां गावं को सड़क से जोड़ा गया। लोगों को पगडंडी से छुटकारा मिला। इसके पूर्व वे गांव में प्राइमरी स्कूल की स्थापना कर चुके थे। कैफी साहब का सपना था कि गांव के लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करें। इसके लिए उन्होंने शिक्षण संस्थानों के साथ ही चिकनकारी, कंप्यूटर शिक्षण संस्थान आदि की स्थापना की। कैफी साहब इंडियान पीपुल थिएटर एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। 10 मई 2002 को उनका निधन हो गया। कैफी के साथ वर्ष 1981 से रहने वाले गांव के ही सीताराम बतातें है कि कैफी के साथ लम्बे समय रहे। कैफी साहब के कारण ही गांव में सड़क, पोस्ट आफिस, विद्यालय और बिजली जैसे विकास कार्य हुए। कैफी साहब काफी सूझबूझा वाले इंसान थे ।वहीं अब उनकी बेटी और पूर्व सांसद व अभिनेत्री शबाना आजमी कैफी साहब के कारवा को आगे बढ़ा रही है। उन्होने मेजवा में मेजवा वेलफेयर सोसाइटी चलाती है। उनके मैनेजर का कहना है कि कैफी साहब की पुर्ण्य तिथि जिले से ही नहीं बल्कि लोग दूसरे प्रांतो से भी आते है और कैफी साहब को श्रद्वाजलि देते है।

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