उन्नाव : फूस की झोपड़ी और तिरपाल तानकर रह रहे गरीब तबके के लोग, नहीं मिले प्रधानमंत्री आवास

प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार द्वारा जहां गांवो के विकास की ओर गंभीरता से ध्यान देते हुए विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही है

प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार द्वारा जहां गांवो के विकास की ओर गंभीरता से ध्यान देते हुए विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही है, वहीं आज भी कुछ गांव ऐसे हैं, जहां ग्राम प्रधानों द्वारा पूरे 5 वर्षों में कोई विकास कार्य नहीं कराया गया। इसका एक उदाहरण नवाबगंज विकासखंड की ग्राम पंचायत निबहरी के मजरे मढ़ीयामऊ है। यहां के निवासी आज भी नारकीय जीवन जीने को विवश है।

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बताते चलें कि नवाबगंज विकास खंड की विकास योजनाओं का लोकार्पण सोशल मीडिया पर छाया हुआ है,शायद इससे ही प्रदेश सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग यह समझ रहे होंगे कि विकास के मामले में इस विकास खंड के गांव सबसे आगे हैं लेकिन स्थल पर जाकर देखा जाए तो लखनऊ कानपुर राजमार्ग सोहरामऊ से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत निबहरी के मजरे मढ़ीयामऊ पर यदि नजर डाली जाए तो यहां के निवासी आज भी नरकीय जीवन जीने को विवश है ग्राम प्रधानों का कार्यकाल भी समाप्त हो गया लेकिन यहां के निवासियों को ना तो प्रधानमंत्री आवास मिला और ना ही शौचालय तथा नाली व खडंजा का निर्माण नहीं कराया गया जिससे ग्रामीण फूस की झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर है।

यहाँ के निवासी विकलांग बृद्ध विजय शंकर पुत्र गुरु प्रसाद ने बताया कि वह अपने परिवार के साथ फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर है प्रधानमंत्री आवास के लिए कई बार विकास खंड कार्यालय जाकर प्रार्थना पत्र भी दिया लेकिन आज तक प्रधानमंत्री आवास नहीं मिल सका वही गांव की गंगा देवी पत्नी गंगाराम चमेला पत्नी मोहनलाल सरवन कश्यप आदि ने भी बताया कि वह मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं लेकिन उनके पास घर नहीं है जिससे वह इस ठंड में भी अपने परिवार के साथ रह रहे हैं लेकिन आज तक उन्हें प्रधानमंत्री आवास नहीं मिल सका है इसको देखकर यदि यह कहा जाए कि सरकार द्वारा गरीबों को लाभ पहुंचाने के लिए जो योजनाएं बनाई जाती है उनका फायदा गरीबों को स्थल पर नहीं मिल पा रहा है तो गलत नहीं होगा चर्चा है की आवास देने के नाम पर ब्लॉक स्तर के अधिकारियों ने जमकर खेल किया है जिनके घर पक्के बने हुए थे उनसे पैसे लेकर आवास दे दिए गए लेकिन गरीबों को आवास इसलिए नहीं मिले क्योंकि उनके पास अधिकारियों को देने के लिए पैसे नहीं थे।

वही गांव में बने शौचालय बनने के कुछ महीनों बाद ही ध्वस्त हो गए लेकिन आज तक इसकी जांच नहीं कराई गई क्या यह शौचालय मानक के अनुरूप बने थे साथ ही गांव में नाली और खड़ंजा निर्माण ना होने से नालियो का पानी खुले में बह रहा हैं इससे ग्रामीणों में संक्रमण बीमारियां फैलने का खतरा उत्पन्न हो गया है लेकिन इस ओर जनपद के जिम्मेदार अधिकारियों की नजर क्यों नहीं पड़ रही है।

सवालिया निशान खड़ा कर रहा है। इस संदर्भ में जब खंड विकास अधिकारी से वार्ता करने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने इस पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। अब इस पूरे मामले को जिले के बड़े अधिकारियों के सज्ञान में लाया गया लेकिन कहावत है न कि “चित भी मेरी,पट भी मेरी” सिक्का मेरे बाप का।

रिपोर्ट-नीरज द्विवेदी

 

 

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