25 साल का लड़का और सीएम के नाम की सुपारी, कुछ ऐसी है ‘शुक्ला’ की कहानी !
जुर्म और सियासत का गठजोड़ बहुत पुराना है. जरायम की दुनिया में पलने वाले अपराधी सियासत की खेती में पैदा होने वाली वो फसल है जिसे सियासत के खेल में मोहरा बनाकर आगे कर दिया जाता है.
जुर्म और सियासत का गठजोड़ बहुत पुराना है. जरायम की दुनिया में पलने वाले अपराधी सियासत की खेती में पैदा होने वाली वो फसल है जिसे सियासत के खेल में मोहरा बनाकर आगे कर दिया जाता है. कुछ ऐसा ही किस्सा पूर्वांचल के माफिया डॉन रहे श्रीप्रकाश शुक्ला का है. श्रीप्रकाश शुक्ला देखते ही देखते जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया.
जरायम की दुनिया का बाहुबली
शुक्ला के बढ़ते वर्चस्व ने अपराध जगत में भूकंप वाली स्थितियां पैदा कर दी. या ये कहें कि, जुर्म की दुनिया के मठाधीशों को अपना साम्राज्य हिलता हुआ दिखाई देने लगा. श्रीप्रकाश शुक्ला जुर्म की दुनिया में चीते की तेजी जैसे आगे बढ़ रहा था और कुछ ही समय में जरायम की दुनिया का बाहुबली बन बैठा. धमकी, कत्ल, अपहरण, अवैध वसूली, डकैती और रेलवे के ठेकों पर एकछत्र राज करने लगा. यूपी से निकलकर बिहार में अपनी दहशत पैदा करने के लिए श्रीप्रकाश ने बिहार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की 13 जून 1998 को एक अस्पताल के सामने हत्या कर दी.
खाकी तंत्र पूरी तरह से हिल गया
इस हत्या की वजह से चारों ओर हंगामा बरपा था, तभी एक खबर ने यूपी पुलिस और प्रशासन की नींद उड़ा दी. ये खबर किसी बम गिरने जैसी घटना से कम नहीं थी. जिसकी गूंज से यूपी का खाकी तंत्र पूरी तरह से हिल गया. खबर ये थी कि, श्रीप्रकाश ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की 6 करोड़ रुपये में सुपारी ले ली है. बस यहीं से श्रीप्रकाश की उम्र की लकीर छोटी होने लगी.
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एसटीएफ गठन
साल 1998 में ही 4 मई को यूपी के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा की अगुवाई में पुलिस के 50 बेहतरीन जवानों की छंटनी कर एक अलग फ़ोर्स का गठन किया गया. जिसे एसटीएफ नाम दिया गया. एसटीएफ की कमान आईपीएस अरुण कुमार को सौंपी गई और सरकार की तरफ से सख्त आदेश दिए गए कि, श्रीप्रकाश शुक्ला, जिंदा या मुर्दा. यहीं से सर्विलांस की शुरूआत भी हुई जिसे एसटीएफ ने इस्तेमाल किया.
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शुक्ला का अंत
ऐसा कहा जाता है कि, 1998 के सितम्बर महीने की 23 तारीख को श्रीप्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए दिल्ली से गाजियाबाद जा रहा होता है जिसकी खबर पहले से ही एसटीएफ को थी. एसटीफ के प्रभारी अरुण कुमार गाजियाबाद के वसुंधरा एन्क्लेव से अपनी फ़ोर्स के साथ उसका पीछा शुरू कर देते हैं और इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में पहुंचते ही श्रीप्रकाश शुक्ला को रोक लेते हैं. पुलिस की चेतावनी के बाद भी शुक्ला की तरफ से फायरिंग शुरु हो जाती है जिसका जवाब देते हुए एसटीएफ माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला को ढेर कर देती है.
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