बिहार के इस पूर्व मुख्यमंत्री की कहानी है बिल्कुल फिल्मी, पढ़ें प्रेम से लेकर सत्ता में आने तक का पूरा सफर
आपने फिल्म सुपरस्टार अनिल कपूर की नायक तो देखी होगी..जी नहीं आज हम आपको इस फिल्म की नहीं बल्कि रियल लाइफ की कहानी बताने जा रहे हैं।
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ऐसे व्यक्ति की जिसने विधायकी का चुनाव जीतने के लिए एक बार नहीं दो बार तीन बार अपनी जमीन बेंच दी फिर भी नहीं जीता और हार ना माना उसने तीसरी बार फिर जमीन बेची और इस बार जीत कर सीधे मुख्यमंत्री बना।
जितनी दिलचस्प कहानी इनके सत्ता में आने की है उतनी ही कहानी दिलचस्प कहानी उनके प्रेम विवाह की भी है, दरअसल हम बात कर रहे हैं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह की। जिन्हे दूसरी जाति की लड़की से प्रेम हो गया था। उस समय गैर जाति की लड़की से शादी करना इतना आसान नहीं था। इसके बाद शुरू हुआ परिवार में मतभेद का सिलसिला। फिर जैसे तैसे आखिरकार उन्होंने प्रेम विवाह किया। और विधायक का चुनाव जीते तो सीधे मुख्यमंत्री बने।
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कौन थे सतीश प्रसाद सिंह
वर्ष 1968 में मात्र पांच दिनों के लिए वे मुख्यमंत्री बने थे। बिहार के सबसे कम दिन मुख्यमंत्री रहने का नाम रिकॉर्ड उनके नाम है। जिस समय मुख्यमंत्री बने उस समय उनकी उम्र भी महज 32 वर्ष थी। वर्ष 1967 में परबत्ता विधानसभा से सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने। वर्ष 1980 में वे खगड़िया से कांगेस के टिकट पर सातवीं लोकसभा के सदस्य बने। वर्ष 1990 में वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।
सतीश प्रसाद सिंह का जन्म एक जनवरी 1936 को गोगरी प्रखंड अन्तर्गत कोरचक्का गांव में किसान विश्वनाथ सिंह के घर में हुआ था। अपने माता-पिता की छह संतानों में सतीश प्रसाद सिंह सबसे छोटे थे। उन्हें दो पुत्र व छह पुत्रियां हैं। एक पुत्री सुचित्रा सिन्हा बिहार सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रह चुकी हैं। गंगा के कटाव से कोरचक्का गांव के विस्थापन के बाद जिले के पसराहा व भागलपुर के नारायणपुर थाना की सीमा पर एक गांव बसाया। उसे आज लोग सतीशनगर के नाम से जानते हैं। उनकी पत्नी का गत 27 अक्टूबर को निधन हो गया था। पत्नी के देहांत की खबर के बाद वे कोमा में चले गए थे।
मुख्यमंत्री के. बी. सहाय इसमें पूरी ताकत झोंक रहे थे
1967 तक कांग्रेस की सरकार ही रही थी। इसी साल पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति दल और भाकपा के संयुक्त विधायक दल (संविद) सरकार के मुख्यमंत्री थे महामाया प्रसाद। कांग्रेस इस सरकार को टिकने नहीं देना चाह रही थी और इससे पहले के मुख्यमंत्री के. बी. सहाय इसमें पूरी ताकत झोंक रहे थे।
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इसी क्रम में संविद सरकार के मंत्री बी. पी. मंडल को आगे किया गया। चूंकि मंडल सांसद थे और विधान परिषद या विधानसभा के सदस्य नहीं बन पाने के कारण छह महीने के बाद मंत्रिमंडल से बाहर हो गए तो बी. पी. मंडल को के. बी. सहाय ने ही आगे किया। तकनीकी परेशानी थी कि छह महीना पूरा होने पर इस्तीफा देकर फिर तो मंत्रिमंडल में आ जाते, लेकिन सीएम बनने पर ज्यादा बड़ा बवाल हो जाता या यूं कहें कि यह असंभव जैसा होता।
इसलिए, रास्ता निकालने की बात आई तो सहाय के करीब परमानंद प्रसाद ने रास्ता सुझाया कि कोई दूसरा कुछ समय के लिए सीएम बन जाए और वह राज्यपाल के पास विधान परिषद के लिए बी. पी. मंडल के नाम की अनुशंसा कर दे तो काम हो जाएगा। अब ऐसा विश्वासी नाम ढूंढ़ा जाने लगा। दो नामों पर बात हुई- एक तो जगदेव प्रसाद और दूसरे सतीश प्रसाद सिंह। जगदेव प्रसाद कुर्सी वापस करेंगे कि नहीं, इसपर यकीन नहीं हुआ तो बी. पी. मंडल ने सतीश सिंह के नाम पर सहमति जताई। मंडल कोसी क्षेत्र के थे और सतीश भी खगड़िया के ही। बात पक्की हो गई। महामाया प्रसाद की सरकार गिरी और सतीश प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री बने।
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