बेफिक्र होकर खाएं देसी घी, पेट की चर्बी हो या मोटापे की समस्या सबसे मिलेगा छुटकारा
देसी घी का उपयोग भारत में वैदिक काल के पूर्व से होता आ रहा है। पूजा पाठ मे घी का उपयोग अनिवार्य है। अनेक औषधियों के निर्माण में देसी घी काम आता है। मक्खन और घी मानव आहार के अत्यावश्यक अंग हैं। इनसे आहार में पौष्टिकता आती है ओर भार की दृष्टि से सर्वाधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
घी तीन तरीकों से बनाया जाता है। पहला, मक्खन को किसी बर्तन में रखकर आग पर पकाकर बनाया जाता है। दूसरा, दूध से निकाली गई मलाई को हाथ से अच्छी तरह फेंटने के बाद किसी बर्तन में रखकर आग पर खौलाकर तैयार किया जाता है और तीसरा, दही की मलाई को मथनी से मिलाकर बनाया जाता है, जिसे लौनी घी कहते हैं। यह घी सबसे उत्तम गुण वाला होता है।
परंपरागत ग्रामीण भारतीय पद्धति में दूध को मिट्टी के बर्तन में मंद-मंद आंच पर गर्म किया जाता है, जिससे दूध पर मलाई की अपेक्षाकृत मोटी परत पड़ती है और अपने साथ अधिकारिक मात्रा में लिनोनेनिक एसिड को मलाई के साथ एकत्रित कर लेती है। फिर इस दूध को जमाकर जब दही बनाया जाता है तो यह गाढ़ा वसा अम्ल लौनी के साथ बंधा रह जाता है। यही कारण है कि दही की मलाई से प्राचीन ग्रामीण पद्धति द्वारा तैयार किया गया घी बहुत ही उम्दा किस्म का होता है।
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