गौमाता की मौत के बाद की गई तेरई, घर मे बनाया गया थान,आसपास के गांव वालों को दी गई दावत

हमारे देश में पौराणिक काल से गाय को मां को दर्जा दिया गया है। गाय से जुड़ी सभी चीजों को दैवीय माना जाता है। गाय का घी, गाय का दूध, गौमूत्र और यहां तक कि गाय के गोबर का प्रयोग भी पूजापाठ में किया जाता है।

हमारे देश में पौराणिक काल से गाय (cow) को मां को दर्जा दिया गया है। गाय से जुड़ी सभी चीजों को दैवीय माना जाता है। गाय का घी, गाय का दूध, गौमूत्र और यहां तक कि गाय के गोबर का प्रयोग भी पूजापाठ में किया जाता है।

कभी सोचा है कि आखिर गाय (cow) का इतना महत्‍व क्‍यों माना गया है। गाय का पौराणिक महत्‍व ही नहीं है बल्कि वास्‍तु में भी इसे बहुत खास माना गया है। माना जाता है कि गाय का वास जहां होता है।

वहां से सभी वास्‍तु दोष स्‍वत: ही दूर हो जाते हैं।लेकिन कुछ लोग अब गाय (cow) को अपने परिवार का सदस्य मानते है,यही कारण है गौवंश की मौत के बाद घर मे तेरई मनाकर आसपास के लोगों को दावत दी गई।

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दरअसल पूरा मामला जिला अलीगढ़ के तहसील इगलास के गांव बादामपुर का है जहाँ महेंद्र सिंह के द्वारा आज से 15 साल पहले एक गाय (cow) को घर मे लाया गया था जिससे परिवार को दूध वगेरह की कमी को दूर किया।

धीरे धीरे समय गुजरता गया गाय (cow) पूरे परिवार के लिए एक सदस्य बन गई जिसके बाद गाय का नाम श्यामा रख दिया गया,श्यामा की पीढ़ी बदलती गई, लेकिन श्यामा को घर से विदाई नहीं दी गई।

परिवार वालो के द्वारा उसका इलाज करवाया गया

श्यामा ने  दूध भी देना बंद कर दिया लेकिन फिर भी परिवारीजनों के द्वारा उसकी सेवा की गई जब श्यामा बीमार हुई तो परिवार वालो के द्वारा उसका इलाज करवाया गया,लेकिन ईस्वर को कुछ और ही मंजूर था।

यही कारण है श्यामा ने इलाज के दैरान अपने प्राण त्याग दिए श्यामा को नम आँखों से अंतिम विदाई दी गई ओर गांव में श्यामा की तेरई करते हुए हवन यज्ञ करवाया गया,और आसपास के पड़ोसी गांव के लोगों को प्रतिभोज पर बुलाया गया।

वहीं श्यामा की याद को जिंदा रखने और उसे अपने बीच महसूस करने के लिए अपने ही घर मे श्यामा की समाधी बनाई गई जिससे परिवार को श्यामा की कमी ना खले।

 

रिपोर्ट – खालिक अंसारी, जिला अलीगढ़

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