राज्य सरकार का अदालत से अनुरोध, इन आरोपियों की मील कड़ी सजा
उत्तर प्रदेश शासन ने राज्यभर के न्यायालयों में लंबित महिलाओं से संबंधित अपराधों एवं पॉक्सो अधिनियम के मामलों में प्राथमिकता के आधार पर फैसला कराने का उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है
उत्तर प्रदेश शासन ने राज्यभर के न्यायालयों में लंबित महिलाओं से संबंधित अपराधों एवं पॉक्सो अधिनियम के मामलों में प्राथमिकता के आधार पर फैसला कराने का उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है। प्रदेश सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने इसकी जानकारी दी। गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने सोमवार को बताया कि राज्य सरकार की ओर से उन्होंने उच्च न्यायालय के महानिबंधक को पत्र भेजा है जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार 17 से 25 अक्टूबर तक महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा व सम्मान के लिए विशेष अभियान चलाने जा रही है।
अवस्थी ने बताया कि इस पत्र के माध्यम से अभियान के दृष्टिगत राज्य के समस्त न्यायालयों में पोक्सो अधिनियम एवं महिला तथा बाल अपराधों से संबंधित मामलों का निस्तारण प्राथमिकता के आधार पर किए जाने संबंधी निर्देश न्यायालयों को दिए जाने का अनुरोध किया गया है। अवस्थी ने पत्र में यह भी कहा है कि सरकार ने जांच एजेंसियों, अभियोजन एवं न्यायालय द्वारा निर्णिंत वादों की समीक्षा के उपरांत यह पाया है कि एक जनवरी 2020 से 30 सितंबर 2020 तक राज्य में कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होने के बावजूद प्रदेश में कुल 1835 महिला अपराधों से संबंधित वादों का निस्तारण करते हुए 612 मामलों में आरोपियों को सजा दी गई है।
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सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को निर्देश जारी करने का अनुरोध
अवस्थी द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि पॉक्सो अधिनियम के कुल 151 मामलों में सजा कराई गई है और इसी अवधि में बलात्कार के 57 मामलों में अभियुक्तों को दस वर्ष या आजीवन कारावास की सजा से दंडित कराया गया है। पत्र में कहा गया है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से प्रकाशित भारत में अपराध-2019 के आंकड़ों के अनुसार पॉक्सो अधिनियम के वादों का संदर्भ लें तो अनुमानतरू 40,000 से अधिक मामले एवं महिला अपराधों से संबंधित लगभग एक लाख 84 हजार से अधिक वाद लंबित है, इनमें 20,000 से अधिक बलात्कार के गंभीर मामले भी सम्मिलित है। सरकार ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि सभी न्यायालयों में पॉक्सो अधिनियम से संबंधित मामलों का निपटारा प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। इसके लिए सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को निर्देश जारी किए जाएं।
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