भारत के इस राज्य में होता है कुछ ऐसा की आप हो जायेंगे हैरान

अचंभित करने वाली पूजा पद्धति अपनाये हुए हैं इस राज्य के लोग, करते हैं राक्षस की पूजा

भारत में अनेक विवधताएँ देखने को मिलती हैं। कभी पूजा पद्धति में भिन्नता होती है तो तो कभी सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचे में। अभी कुछ ही दिनों बाद पुरे देश में माँ शक्ति की पूजा और आराधना का पवित्र त्योहार नवरात्रों की शुरुआत हो जाएगी।

हैरान करने वाली एक बात यह है कि झारखण्ड के कई जिलों और खासतौर पर गुमला जिले में पायी जाने वाली असुर जनजाति के लोग नवरात्रों में माँ दुर्गा की पूजा तो करते ही है। इसके आलावा ये लोग महिषासुर की भी पूजा करते हैं।

ये लोग अपने को महिषासुर का पूर्वज मानते हैं। दीवाली के दिन विशेष तौर पर असुर समुदाय के ये लोग महिषासुर की पूजा करते हैं। उनका मानना है कि अपने पूर्वज अर्थात महिषासुर की पूजा करने से सुख, शांति और समृद्धि आती है।

झारखंड की असुर जनजाति पहाड़ो पर निवास करती है। ये लोग कन्द-मूल और फल खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। पहाड़ों पर बने छोटे छोटे मकानों में ये लोग निवास करते हैं।

धूम धाम से होती है महिषासुर की पूजा

असुर समुदाय के लोगों का महिषासुर में अनन्य आस्था है। जिस श्रद्धा भाव के साथ कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों और आराध्यों की पूजा करता है, ये लोग भी उसी निष्ठा और श्रद्धाभाव के साथ अपने पूर्वज महिषासुर को पूजते हैं। यह समुदाय झारखंड की क्षेत्रीय धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। यही कारण है कि झारखण्ड भारत के दूसरे राज्यों से कहीं अधिक विविधता रखने वाला राज्य है।

नहीं होती है महिषासुर की मूर्ति पूजा

असुर समुदाय के लोग के बीच दुर्गा पूजा के बाद दीपावली के अवसर पर महिषासुर की पूजा करने का प्रचलन है। ये अपने पूर्वज महिषासुर की मूर्ति नहीं बनाते हैं। देवी दुर्गा की पूजा करने के बाद ये लोग महिषासुर की पूजा की तैयारियों में जुट जाते है। मिटटी की छोटी-छोटी पिंडियां बनाकर, दीप आदि जलाकर यहाँ अपने पूर्वजों को याद किया जाता है।

दीपावली के अवसर पर पहले माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं और फिर उसके बाद शाम को दीया जलाने का कार्यक्रम होता है। फिर देर रात तक महिषासुर की पूजा होती है। गौ पूजन की परम्परा यहाँ आज भी बनी हुई है। दीपावली में देर रात तक यहाँ गौशाला और गाय की पूजा होती है।

असुर जनजाति के लोग बड़े पैमाने पर मेले का आयोजन करते हैं। प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार भैंसा (काड़ा) की भी पूजा करने की परंपरा है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में महिषासुर की सवारी भैंसा को ही बताया गया है। झारखण्ड के गुमला जिले के डुमरी, बिशुनपुर, चैनपुर, घाघरा और लातेहार जिला के महुआडाड़ प्रखंड के इलाके में भैंसा की पूजा की जाती है। झारखंड में इस दौरान महिषासुर की भव्य रूप से पूजा के लिए बिशुनपुर प्रखंड के पहाड़ी क्षेत्र प्रसिद्ध हैं।

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