शंकर जी ने गुस्से में आकर काट दिया था गणेश का सिर, रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप…
भगवान शंकर से जुड़ी कथाओं के बारे में शिव पुराण में विस्तार से बताया गया है. शिव से जुड़ी तमाम कहानियों का इसमें वर्णन किया गया है. शिव पुराण में एक ऐसी ही घटना का जिक्र किया गया है जिसमें शंकर जी ने अपने प्रिय पुत्र गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया था.
भगवान शंकर से जुड़ी कथाओं के बारे में शिव पुराण में विस्तार से बताया गया है. शिव(Shankar ji) से जुड़ी तमाम कहानियों का इसमें वर्णन किया गया है. शिव पुराण में एक ऐसी ही घटना का जिक्र किया गया है जिसमें शंकर जी ने अपने प्रिय पुत्र गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया था. गणेश का सिर काटने के पीछे एक कहानी छिपी है जिसकी वजह से शंकर जी को गणेश का सिर काटना पड़ा था. बाद में गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाकर जीवनदान दिया था.
भगवान शिव अपने भक्तों की मुसीबतों के समय हमेशा उनकी रक्षा करते हैं. ऐसे में जब माली और सुमाली नाम के राक्षसों से देवता परेशान थे और उनका आतंक झेल रहे थे तो सूर्यदेव उन राक्षसों को मारने के लिए निकले थे. जिसके डर से माली और सुमाली राक्षसों ने भगवान शिव से प्राणों की रक्षा करने की गुहार लगाई. भगवान शिव ने अपने दोनों भक्तों की पुकार सुनकर वहां पहुंच गए और उन्होंने सूर्य को अपने त्रिशूल मार दिया.जिसके बाद संसार अंधेरे में डूब गया जिसे देखकर देवता और ऋषि-मुनि सब डर गए.
शंकर जी(Shankar ji) का त्रिशूल लगने की वजह से सूर्य अपने रथ से नीचे गिर गए और उनकी चेतना नष्ट हो गई. जब ये बात सूर्य के पिता कश्यप को पता चली तो उन्होंने दौड़कर अपने पुत्र को गले से लगा लिया और गुस्से में आकर शिव जी को श्राप दे दिया.
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कश्यपजी ने शिव जी(Shankar ji) को श्राप दिया कि, जिस तरह से तुम्हारे प्रहार के कारण मेरा पुत्र दर्द से कराह रहा है ठीक उसी तरह तुम्हारे पुत्र पर भी होगा और तुम स्वयं अपने पुत्र का सिर धड़ से अलग करोगे. एक बार शिवजी के गण नंदी ने देवी पार्वती की आज्ञा पालन में त्रुटि कर दी थी. इससे नाराज देवी ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो. तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना किसी और की नहीं. देवी पार्वती ने यह भी कहा कि मैं स्नान के लिए जा रही हूं. ध्यान रखना कोई भी अंदर न आने पाए. थोड़ी देर बाद वहां भगवान शंकर आए और देवी पार्वती के भवन में जाने लगे.
यह देखकर उस बालक ने विनयपूर्वक उन्हें रोकने का प्रयास किया. बालक का हठ देखकर भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया. देवी पार्वती ने जब यह देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गई. उनकी क्रोध की अग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया. तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा.
भगवान शंकर के कहने पर विष्णुजी एक हाथी का सिर काटकर लाए और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया. जिसके बाद से उस बालक का नाम गणेश, विनायक, लंबोदर के अलावा अन्य नामों से जाना जाने लगा.
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