लखनऊ : समाजवादी पार्टी की मांग है कि सरकार किसानों की गरिमा को गिरवी न होने दे, किसान अन्नदाता है भिखारी नहीं- सपा प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि वो समझते है कि कोरोना की महामारी की आड़ में अन्य बुनियादी गम्भीर समस्याओं की अनदेखी की जा सकती है। जहां एक तरफ विस्थापित श्रमिकों और बेरोजगार नौजवानों के सामने भविष्य की चिंता है, वहीं किसानों की बदहाली ने खेती के सामने संकट पैदा कर दिया है। इस संकट के लिए भाजपा की डबल इंजन की सरकारें जिम्मेदार है।
कोरोना संकट और लाॅकडाउन की मार सर्वाधिक किसानों पर पड़ी है। टीम इलेवन और भाजपा मंत्रिमण्डल की बैठकों में किसानों को वास्तविक राहत देने के उपायों पर सोच विचार की जगह हवाई रोजगार पैदा करने पर ही जोर दिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री जी किसानों की समस्याओं पर गौर करना नहीं चाहते हैं। कारण स्पष्ट है कि भाजपा का किसानों के हितों से कभी कोई लेना-देना नहीं रहा है।
समाजवादी पार्टी ने किसानों की परेशानियों से सम्बन्धित मुद्दों को कई बार उठाया लेकिन भाजपा सरकार तो अपने कानों पर हाथ धरे बैठी है। समाजवादी पार्टी किसान का अन्नदाता के रूप में सम्मान करती है और इसीलिए समाजवादी सरकार में बजट का 75 प्रतिशत भाग खेती-गांव के लिए रखा गया था।
भाजपा ने नीति निर्माण में कृषि को उपेक्षित रखा है जबकि कृषि क्षेत्र 50 प्रतिशत आबादी को रोजगार देता है। कोरोना की महामारी के दौर में हुए व्यापक पलायन के शिकार लोगों को रोटी-रोजी की गांवों में ही उपलब्धता है।
विडम्बना है कि लाॅकडाउन उस समय हुआ जब रबी की फसल तैयार थी। बे-मौसम बरसात ने किसानों को तबाह किया लेकिन बाजार बंदी से उसकी फल-सब्जियों की मांग ही नहीं रही। दूध, मछली, आम और फूल का व्यवसाय चैपट हो गया। किसानों ने मजबूरी में खेतों से कई फसलें उजाड़ दीं।
सरकारी दावों के बावजूद गेहूं खरीद के क्रय केन्द्रों का कोई अता-पता नहीं चला, जिससे किसान को रूपया 1925 प्रति क्वींटल न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नसीब नहीं हुआ। किसान का माल औने-पौने दाम पर बिचैलिए लूट ले गए।
उत्तर प्रदेश में अभी तक 20 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा गन्ना किसानों का भुगतान बकाया है। चीनी मिलें बंद हो रही है यद्यपि गन्ना खेतों में खड़ा है। भाजपा सरकार गन्ना किसानों को राहत देने के बजाय मिल मालिकों के कथित घाटे को लेकर ज्यादा चिन्तित है।
सरकार ने भुगतान कराने के बजाय किसानों को तीन बोरी चीनी खरीदने की सलाह दी है। चीनी की बोरी 3150 रूपए की होगी जिस पर 157 रूपए जीएसटी भी अदा करना होगा। किसानों के प्रति यह घोर अन्याय है।
इन दिनों खरीफ की बुवाई का समय है। धान रोपने की तैयारी किसानों ने शुरू कर दी हैं। लेकिन भाजपा सरकार की तरफ से कोई राहत-सुविधा नहीं मिल रही है। गुणवत्ता वाला धान का बीज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
हाईब्रीड धान का बीज 300 रूपया प्रति किलों से ज्यादा में बिक रहा है। मंडियों में किसानों की लूट का बाजार गर्म है। सम्बन्धित अफसर जानकर भी अनजान बने हुए है। ऐसे समय में आवश्यकता इस बात की है कि किसानों को आर्थिक आजादी मिले।
समाजवादी पार्टी की मांग है कि सरकार किसानों की गरिमा को गिरवी न होने दे। किसान अन्नदाता है, भिखारी नहीं। लाॅकडाउन पीरियड में फसलों के दाम गिरने से किसानों की बदहाली में बहुत इजाफा हुआ है। भाजपा सरकार अब उस पर रहम करे और बीज, खाद, उपकरण, कीटनाशक आदि सस्ते दाम पर उपलब्ध कराएं। भण्डारण, संरक्षण की उचित व्यवस्था हो।
वेयर हाउस अपर्याप्त हैं उससे किसान की काफी फसल बर्बाद हो जाती है। ब्याज पर कर्ज की व्यवस्था समाप्त हो। किसानों को तत्काल कार्यपूंजी देने का इंतजाम हो। 5 एकड़ से कम जोत वाले किसानों पर भारी कर्ज हो गया है उन्हें और कर्ज नहीं नगद आर्थिक मदद की जाए।
इस समय खेतों में सब्जियों, फलों और फूलों की फसल सड़ गयी है। मण्डियों में लगभग बंदी है। किसानों की जेबें खाली है। उन्हें हजार दो हजार रूपया महीना देना मजाक है। कृषि का निर्यात 2.6 लाख करोड़ ही है।
अगर खेत पर सरकार द्वारा आर्थिक मदद नहीं की गई तो, न सिर्फ किसान आत्महत्या के लिए मजबूर होगा बल्कि भारत में अन्न संकट के कारण भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। इस स्थिति की जिम्मेदारी भाजपा सरकार की किसान विरोधी नीतियों को ही होगी।
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