सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में किसानों का रखा खास ख्याल : राजेन्द्र चौधरी
देश का किसान आज उद्वेलित है। अपनी खेती और फसल को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आया है। वजह है खेती और फसलों पर बड़े उद्योगपतियों की नजरें। किसान बेबस है।
देश का किसान आज उद्वेलित है। अपनी खेती और फसल को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आया है। वजह है खेती और फसलों पर बड़े उद्योगपतियों की नजरें। किसान बेबस है। सरकारों की गलत नीतियों से खेती में लागत बढ़ी है। खाद-बीज, कीटनाषक समेत अन्य निवेषों के दाम बढ़े हैं, लेकिन फसलों की कीमत उस अनुपात में नहीं बढ़ी। इस पर केंद्र की भाजपा सरकार ने नए कृषि कानूनों से किसानों (Farmers) को बधुंआ मजदूर बनाने का इंतजाम कर दिया है। अब किसान जाए तो कहां जाए। उसकी फसल के साथ जमींन पर भी संकट बढ़ गया है। ऐसे में किसान नेता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी की कृषि नीतियां और उनके विचार बेहद प्रासांगिक हो गए हैं।
23 दिसंबर 1902 को किसान परिवार में पैदा हुए चौधरी चरण सिंह जी मानते थे कि देश की खुशहाली का रास्ता गांवों से होकर जाता है। किसान खुशहाल रहेगा तो देश खुशहाल होगा। देश की दो तिहाई आबादी अब भी खेती पर निर्भर है। यह विडम्बना है कि किसान कड़ाके की सर्दी में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। इस संघर्ष में दर्जनों किसान (Farmers) अपनी जान गवां चुके हैं लेकिन देश की कारपोरेट समर्थक सरकार हठधर्मी पर अड़ी है। केन्द्र की भाजपा सरकार किसानों के लिए पूरी तरह से संवेदनहीन हो चुकी है। सरकार ने अपने चंद कारपोरेट दोस्तों के लाभ के लिए पूरे देश के किसान के जीवन को दांव पर लगा दिया है।
चौधरी चरण सिंह जी को जब भी प्रदेश और देश की सरकार में मौका मिला तब-तब उन्होंने किसानों (Farmers) के हित में निर्णय लिए। उन्होंने केन्द्रीय वित्तमंत्री रहते जो बजट संसद में प्रस्तुत किया, उसमें सरकार के बजट का 70 फीसदी हिस्सा गांवों के लिए दिया। उन्हीं के सिद्धांतो और विचारों पर चलकर समाजवादी सरकारों ने किसानों को राहत देने के लिए काम किया। उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकारों ने किसानों के लिए तमाम क्रांतिकारी कदम उठाएं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में किसानों का खास ख्याल रखा। उन्होंने बजट का 75 फीसदी गांवों पर खर्च किया। किसानों के लिए मंडी क्षेत्र को मजबूत किया। सरकार की योजनाओं का लाभ सीधा किसानों को मिलता था।
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समाजवादी सरकारों ने गरीबों और किसानों (Farmers) की भलाई के लिए किसान दुर्घटना बीमा योजना, कर्जमाफी, मुफ्त सिंचाई, खाद-बीज पर अनुदान जैसी योजनाओं से किसानों की खेती की लागत को कम किया। चौधरी चरण सिंह जी के रास्ते पर चलते हुए श्री अखिलेश यादव ने अपनी सरकार की नीतियां बनाते समय खेती-गांव और किसान को हमेशा प्राथमिकता दी। किसानों को समय पर खाद-बीज उपलब्ध हो, फसल का उचित मूल्य मिले और फसल समय पर मंडी पहुंचे इसको लेकर समाजवादी सरकारें पूरी व्यवस्था करती थी। लेकिन गैर समाजवादी सरकारों में किसान शोषण का शिकार होता रहा। बिचैलिए हमेशा हावी रहे। कभी फसलों का सही मूल्य नहीं मिल पाया। उद्योग घराने सरकारों से सांठगांठ कर किसानों का शोषण करते रहे।
भाजपा ने भी किसानों से बडे़-बडे़ वादे किए फसल की लागत का ड्योढ़ा मूल्य देने, 2022 तक प्रत्येक किसान की आय दोगुना करने की दिशा में भाजपा सरकार ने अभी तक एक कदम भी नहीं बढ़ाया। भाजपा राज में जो तीन कृषि कानून आए उसमें एमएसपी की गारंटी नहीं, मंडी समाप्ति की योजना है। किसान को खुले बाजार में बिचैलियों की दया पर छोड़ दिया गया है। फसल बीमा का लाभ किसानों (Farmers) को नहीं बीमा कम्पनियों को ही मिल रहा है। किसानों को ऐसी एमएसपी चाहिए जिसमें किसान की आय दुगनी हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
चौधरी चरण सिंह जी पूँजीवादी साजिशों को समझते थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में राजस्व मंत्री के कार्यकाल में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर किसानों को ही मालिक बना देने के हक में बहुत बड़ा फैसला किया। चौधरी साहब आज भी देश में किसानों (Farmers) के मसीहा के रूप में जाने जाते हैं। आज पूरे देश का किसान उन्हें याद करता है। उनके कार्यों और उनकी नीतियों की प्रांसगिकता बहुत बढ़ गयी है। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई 1952 को यूपी में उनकी बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों, किसानों को अधिकार मिला। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया।
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चौधरी चरण सिंह जी का मत था कि गांवों के विकास के लिए प्रशासन तंत्र में कृषक परिवारों की भागीदारी बढ़नी चाहिए। एक ग्रामीण परिवेश का व्यक्ति ही गांवो की समस्या और खेती की दिक्कतों को समझकर उसका निदान कर सकता है। वे मानते थे कि बड़े पैमाने पर तकनीक का प्रयोग सीमित क्षेत्र में होना चाहिए। चौधरी साहब सही मायने में गांधी जी के अनुयायाी थे। गांधी जी गांव को स्वावलम्बी बनाना चाहते थे। नेहरू जी ने अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में उद्योग को कृषि के मुकाबले रियायतें दी थी। चौधरी साहब कृषि क्षेत्र की इस निरंतर उपेक्षा के चलते ही कांग्रेस के विरोधी बन गए थे। आज भाजपा सरकार किसानों (Farmers) को मार रही है। उनके साथ धोखा कर रही है। अखिलेश जी स्वयं कृषक परिवार के होने के नाते जानते हैं कि कृषि का क्या महत्व है। उन्होंने अपने समय में कुटीर उद्योग हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया था।
चौधरी साहब 1937 में पहली बार विधायक चुने गये थे। बाद में गोविन्द बल्लभ पंत के मंत्रीमण्डल में चौधरी साहब एवं लाल बहादुर शास्त्री संसदीय सचिव थे। वह आजादी के आंदोलन में अनेकों बार जेल गये। चौधरी चरण सिंह को 1951 में उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग सम्भाला। 1952 में डॉक्टर सम्पूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला। वह जमीन से जुड़े नेता थे और कृषि विभाग उन्हें विशिष्ट रूप से पसंद था। चरण सिंह जी स्वभाव से भी कृषक थे। वह कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया। वह उत्तर प्रदेश की जनता के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय थे। इसीलिए प्रदेश सरकार में योग्यता एवं अनुभव के कारण उन्हें ऊंचा मुकाम हासिल हुआ।
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उत्तर प्रदेश के किसान कृषकों के कल्याण के लिए चौधरी साहब ने काफी कार्य किए। समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों (Farmers) की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। उनकी ईमानदाराना कोशिशों की सदैव सराहना हुई। वह लोगों के लिए एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा लोकप्रिय जननेता थे। उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ जुटा करती थी। चौधरी साहब 3 अप्रैल 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। तब उनकी निर्णायक प्रशासनिक क्षमता की धमक और जनता का उन पर भरोसा ही था कि देश ही नहीं विदेश तक उनकी चर्चा हुई। उन्होंने अपने सिद्धांतों व मर्यादित आचरण से कभी समझौता नहीं किया। ‘ऐन इंडियन पोलिटिकल लाइफ‘ पुस्तक के लेखक पाल आर ब्रास ने चौधरी साहब की बौद्धिकता की प्रशंसा करते हुए लिखा कि कृषि मूलक समस्याओं के अध्ययन में उन जैसा सुपठित नेता दूसरा नहीं है। उन्होंने तीन खंडो में चैधरी साहब की राजनीतिक जीवन यात्रा का जीवंत वर्णन किया है।
1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो चरण सिंह जी को देश के गृह मंत्री की जिम्मेदारी मिली। केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल व अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड, की स्थापना की। चौधरी साहब ने तब कृषि यंत्रो पर उत्पाद शुल्क घटाया। खांडसारी की अंतर्राज्यीय आवाजाही पर रोक हटाई। फूड सब्सिडी में 25 प्रतिशत वृद्धि की। नाबार्ड की स्थापना की ताकि कृषि एवं ग्रामीण विकास योजनाओं के लिए कर्ज मिल सके।
चौधरी चरण सिंह जी एक कुशल लेखक भी थे। उनका अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार था। उन्होंने ‘इकोनामिक नाइट मेयर आफ इण्डिया इट्स काजेज ऐडं क्योर‘ अबॉलिशन ऑफ जमींदारी, लिजेण्ड प्रोपराइटरशिप और इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस नामक कई पुस्तकों का लेखन भी अंग्रेजी में किया।
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09 जनवरी 1959 को नागपुर में कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सहकारी खेती का प्रस्ताव रखा था। तब नेहरू कांग्रेस के एक मात्र नेता थे और उनका दबदबा था, लेकिन चौधरी साहब ने वहीं मंच पर उनका विरोध किया। फलस्वरूप नेहरू जी को प्रस्ताव वापिस लेना पड़ा। आज फिर वही स्थिति है। भाजपा सरकार ने खेती पर किसान (Farmers) के स्वामित्व को समाप्त करने और कॉन्ट्रैक्ट खेती के नाम पर बड़े घरानो को मनमानी करने की छूट देने की साजिश की है।
आज चौधरी चरण सिंह जी के पदचिन्हों पर चलते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी किसानों (Farmers) के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अखिलेष यादव के निर्देश पर तथाकथित कृषि सुधार अधिनियम के विरूद्ध समाजवादी पार्टी संघर्षरत है। अखिलेश यादव की प्राथमिकता में हमेशा खेती और किसान रहे हैं। किसानों की आय बढ़ाने के लिए वे लगातार चिंतन करते है। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने किसानों और गांवों के विकास के लिए तमाम योजनाएं चलायी। गरीबों के लिए लोहिया ग्राम विकास और जनेश्वर मिश्र ग्राम विकास योजनाओं से गांव की दशा बदलने का प्रयास किया। किसानों की आय बढ़ाने के लिए पशुपालन को बढ़ावा दिया। दुग्ध के क्षेत्र में कामधेनु योजना शुरु की।
किसानों को अपनी फसलों के विक्रय के लिए अखिलेश यादव ने मंडियों की स्थापना की। लखनऊ आगरा-एक्सप्रेस-वे पर अनाज, फल और आलू एवं अन्य सब्जियों के लिए बड़ी-बड़ी मंडियों की स्थापना की। समाजवादी पार्टी की सरकार में कन्नौज, झांसी, बांदा, लखनऊ, हमीरपुर, जालौन, मैनपुरी, मलिहाबाद और ग्रेटर नोएडा आदि शहरों में कृषि मंडिया बनाई गई थी। लखनऊ, झांसी, सैफई, कन्नौज, बहराइच, मैनपुरी में किसान बाजार स्थापित किए गए थे। इनका उद्देश्य था कि फल-फूल, सब्जी, दूध सुगमता से दिल्ली जा सके और किसान को लाभप्रद मूल्य मिल सके।
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चौधरी चरण सिंह ने मंडी कानून अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए उत्तर प्रदेश मंडी कानून में कई परिवर्तन कराए थे। चौधरी साहब मानते थे कि कृषि में जो अतिरिक्त लोग लगे हैं, उन्हें अन्य पेशों में लगाया जाना चाहिए जिनमें फल, सब्जी, दूध, मत्स्य पालन और ग्रामीणस्तर के परम्परागत लघु एवं कुटीर उद्योग शामिल हैं। अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में चौधरी साहब के इस मंतव्य को वास्तविकता में अक्षरशः उतारा था।
समाजवादी सरकार ने प्रदेश में खेती योग्य भूमि को बढ़ाने के लिए भूमि सेना योजना शुरू की। इस योजना में बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर भूमिहीन किसानों को दिए जाने की व्यवस्था है। आज देश में सही मायनों में समाजवादी पार्टी ही अकेली पार्टी है जो किसानों और गांवों के उन्नयन के लिए समर्पित भाव से काम करती है।
प्रदेश ही नहीं अपितु देश का किसान समाजवादी नेतृत्व पर भरोसा करता है। उत्तर प्रदेश के किसानों को अखिलेश यादव के नेतृत्व से ही न्याय मिलने का विश्वास है। किसान इस बात से आश्वस्त है कि समाजवादी सरकारों में कभी किसानों का अहित नहीं हो सकता। यह तो सभी महसूस करते हैं कि भारतीय राजनीति में नेतृत्व की साख का प्रश्न है। अखिलेश जी की बेदाग छवि है। अपनी शालीनता, शिष्टता और लोकप्रियता में वे जनसामान्य में अलग प्रभाव रखते हैं। अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रशासनिक कुशलता और विकास के प्रति समर्पण एवं पारदर्शिता के मामले में स्वयं एक उदाहरण है।
लेखकः समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व कैबिनेट मंत्री हैं
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