‘साईं बाबा’ ने दशहरे के दिन ली थी समाधि, रहस्य जानकर आप भी बन जाएंगे उनके भक्त

शिरडी के साईं बाबा एक चमत्कारिक संत हैं। उनकी समाधि पर जो भी गया झोली भरकर ही लौटा है। सांई बाबा का दशहरे या विजयादशमी से क्या कनेक्शन है।  आइये आज  हम आपको बताते है इससे जुड़ी बातें। 

शिरडी के साईं बाबा एक चमत्कारिक संत हैं। उनकी समाधि पर जो भी गया झोली भरकर ही लौटा है। सांई बाबा का दशहरे या विजयादशमी से क्या कनेक्शन है। साईं बाबा ने दशहरे के दिन ही क्यों ली थी समाधि।आइये आज  हम आपको बताते है इससे जुड़ी बातें। 

माना है कि दशहरे के कुछ दिन पहले ही सांईं बाबा ने अपने एक भक्त रामचन्द्र पाटिल को विजयादशमी पर ‘तात्या’ की मृत्यु की बात कही। तात्या बैजाबाई के पुत्र थे और बैजाबाई सांईं बाबा की परम भक्त थीं। तात्या, सांईं बाबा को ‘मामा’ कहकर संबोधित करते थे, इसी तरह सांईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का निर्णय लिया। तात्या बहुत बीमार चल रहे थे। सांईं बाबा के पास एक ईंट हमेशा रहती थी। वे उस ईंट पर ही सिर रखकर सोते थे। दरअसल, यह ईंट उस वक्त की है, जब सांईं बाबा वैंकुशा के आश्रम में पढ़ते थे। वैंकुशा के मन में बाबा के प्रति प्रेम बढ़ता गया और एक दिन उन्होंने अपनी मृत्यु के पूर्व बाबा को अपनी सारी शक्तियां दे दीं और वे बाबा को एक जंगल में ले गए, जहां उन्होंने पंचाग्नि तपस्या की।

साई बाबा ने तुरंत ही कपड़े से उस खून को साफ किया था

वहां से लौटते वक्त कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोग सांईं बाबा पर ईट-पत्थर फेंकने लगे। बाबा को बचाने के लिए वैंकुशा सामने आ गए तो उनके सिर पर एक ईंट लगी। वैंकुशा के सिर से खून निकलने लगा। बाबा ने तुरंत ही कपड़े से उस खून को साफ किया। वैंकुशा ने वहीं कपड़ा बाबा के सिर पर तीन लपेटे लेकर बांध दिया और कहा कि ये तीन लपेटे संसार से मुक्त होने और ज्ञान व सुरक्षा के हैं। जिस ईंट से चोट लगी थी, बाबा ने उसे उठाकर अपनी झोली में रख लिया।

चित्रकूट : मासूम बच्चों को हवस का शिकार बना अश्लील वीडियो इंटरनेट पर वाला सिंचाई विभाग का जेई निलंबित

इसके बाद बाबा ने जीवनभर इस ईंट को ही अपना सिरहाना बनाए रखा।सन् 1918 ई. के सितंबर माह में दशहरे से कुछ दिन पूर्व मस्जिद की सफाई करते समय बाबा के एक भक्त माधव फासले के हाथ से गिरकर वह ईंट टूट गई। द्वारकामाई में उपस्थित भक्तगण स्तब्ध रह गए। सांईं बाबा ने जब उस टूटी हुई ईंट को देखा तो वे मुस्कुराकर बोले- ‘यह ईंट मेरी जीवनसंगिनी थी। अब यह टूट गई है तो समझ लो कि मेरा समय भी पूरा हो गया।’

बाबा इंतज़ार करने लगे

जब बाबा को लगा कि अब जाने का समय आ गया है, तब उन्होंने श्री वझे को ‘रामविजय प्रकरण’ (श्री रामविजय कथासार) सुनाने की आज्ञा दी। श्री वझे ने एक सप्ताह प्रतिदिन पाठ सुनाया। तत्पश्चात ही बाबा ने उन्हें आठों प्रहर पाठ करने की आज्ञा दी। श्री वझे ने उस अध्याय की द्घितीय आवृत्ति 3 दिन में पूर्ण कर दी और इस प्रकार 11 दिन बीत गए। फिर 3 दिन और उन्होंने पाठ किया। अब श्री. वझे बिलकुल थक गए इसलिए उन्हें विश्राम करने की आज्ञा हुई। बाबा अब बिलकुल शांत बैठ गए और आत्मस्थित होकर वे अंतिम क्षण की प्रतीक्षा करने लगे।

सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर दशहरे के दिन 1918 में समाधि ले ली थी। 27 सितंबर 1918 को सांईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ त्याग दिया। बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन दशहरा का दिन था। उन्होंने तात्या की जगह खुद के प्राण निकल जाने दिए। जय साईं राम।

  • हमें फेसबुक पेज को अभी लाइक और फॉलों करें @theupkhabardigitalmedia 

  • ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @theupkhabar पर क्लिक करें।

  • हमारे यूट्यूब चैनल को अभी सब्सक्राइब करें https://www.youtube.com/c/THEUPKHABA

Related Articles

Back to top button