झांसी- अयोध्या में भले ही रामलला का जन्म हुआ हो, लेकिन उनकी असली सरकार तो यहां चलती है !

झांसी. जहाँ उत्तर प्रदेश के अयोध्या में पांच अगस्त को देश के प्रधान मंत्री राम मंदिर का शिलान्यास कर रहे है वही हम आपको आज एक बुन्देलखण्ड के राम राजा के दर्शन कराते है जहाँ आज भी रामलला की सरकार का रूतवा बरकरार है,

यहां भगवान राजा के रूप में विराजमान है, अयोध्या में भले ही रामलला का जन्म हुआ हो लेकिन उनकी असली सरकार तो यहां चलती है,

यहां हर आमजन प्रजा होता है चाहे वह प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति क्यो न हो, और यही कारण है कि यहां किसी वीवीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर नही दिया जाता।

जी हां हम बात कर रहे है निवाड़ी जिले के ओरछा के रामलला सरकार की, जहां उनकी मर्जी के बगैर आज भी पत्ता नही खडकता। यह विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां मर्यादा पुरूषोत्तम राम की पूजा भगवान के रूप में नही बल्कि मानव स्वरूप में राजा के रूप में की जाती है,

यहां मंदिर में नही महल में विराजमान है राजाराम, जहां श्रीराम को एक राजा की तरह चारों पहर सरकारी पुलिस जवानो द्वारा दी जाती है सशस्त्र सलामी।

जहां यह परंपरा आज की नही बल्कि करीब साढे चार सौ वर्षो से लगातार चली आ रही है। वही अगर मंदिर से जुडी अन्य परंपराओं एवं नियमों की बात करे तो आज भी मंदिर के अंदर बीडियों ग्राफी एवं फोटो खींचने पर सख्त मनाही है।

इसके अलावा अगर हम मंदिर और मंदिर से जुडी कुछ खासियतों की बात करे तो यहां पर भगवान श्री रामलला धनुषधारी के रूप में नही बल्कि ढाल तलवार लिये बिराजमान है,

जबकि देश के अन्य मंदिरों में रामलला की प्रतिमाए खडे रूप में देखने को मिलेंगी। यहां मंदिर का समय भी आज से नही बल्कि पिछले करीब साढे 400 वर्षों से निर्धारित है जिसमें त्रतु परिवर्तन अनुसार साल में दो वार बदलता है।

समयानुसार रामराजा के पट बंद होने के उपरांत किसी भी वीआईपी या वीवीआईपी तक को दर्शन होना न मुमकिन है। इसके लिये दर्शनार्थी को समयानुसार पट खुलने का इंतजार करना पडता है।

देश की दूसरी अयोध्या कहे जाने वाली पर्यटक एवं धार्मिक नगरी ओरछा का इतिहास अत्यंत्र प्राचीन और गौरवशाली है, ओरछा का रामराजा मंदिर अत्यंत प्राचीन है और यहां स्थापित मूर्ति के बारे में प्रचलित मान्यता के अनुसार 1631 में ओरछा की महारानी गणेश कुंवर पुष्य नक्षत्र में इस मूर्ति को अयोध्या से नंगे पैर चलकर गोद में लेकर ओरछा लायी थी,

ज्ञात जानकारी अनुसार ओरछा नरेश मधुकार शाह जू देव कृष्ण भक्त थे जबकि उनकी रानी गणेश कुंवर राम भक्त थी जनश्रुति के अनुसार एक दिन राजा रानी के बीच अपने-अपने आराध्य की श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया राजा की चुनौती देने पर गणेश कुंवर ने राजाराम को अयोध्या से ओरछा लाने का संक्ल्प लिया
इसके बाद रानी अयोध्या पहुंची तथा उन्होंने वहां अपने आराध्य भगवान श्रीराम को पाने कठोर तपस्या की, तपस्या के बावजूद भी जब भगवान राम प्रकट नही हुये तब दुःखी रानी ने सरयू नदी में प्राण त्यागने के उददेश्य से छलाग लगा दी, तत्क्षण राम की बालरूप में सुन्दर मूर्ति रानी की गोद में प्रकट हो गई और रानी ने भगवान श्रीराम से ओरछा चलने का आग्रह किया

रानी के साथ ओरछा जाने के वारे में भगवान श्रीराम ने रानी के समक्ष तीन प्रमुख शर्ते रखी जिसमें पुष्य नक्षत्र में अयोध्या से चलने व पूरी यात्रा पुष्य नक्षत्र में करने गोद में लेकर चलने तथा रखे जाने पर फिर न उठने व सबसे प्रमुख शर्त के रूप में कि भगवान स्वयं ओरछा के राजा होगे, महारानी कुंवर गणेश ने यह सारी शर्ते स्वीकार कर भगवान को गोद में लेकर ओरछा वापिस आयी, पर भगवान की शर्त भूलकर भगवान को अपने रानी महल में ही बिठा दिया,

बस शर्त अनुसार भगवान श्रीराम फिर रानी महल में ही बिराज गये, और भगवान के लिये बना भव्य चर्तुभुज मंदिर आज भी अपनी निर्माण व स्थापत्य शैली के साथ खाली खडा हुआ है। एक जनश्रुति के अनुसार सतयुग में राजा दशरथ की चाह अधूरी रह गयी थी कि वो राम का राजतिलक करते लेकिन वो चाह वह सतयुग में पूरी नही हो सकी

ऐसी मान्यता है कि उस अधूरी चाह को पूरा करने के लिये राजा दशरथ के रूप में ओरछा महाराज मधुकर शाह जू देव एवं माता कौशल्या के रूप में महारानी गणेश कुंवर ने कलयुग में जन्म लिया और सतयुग की अधूरी चाह कलयुग में पूरी कर सके, जब भगवान अयोध्या से ओरछा आये तो उनकी तीन शर्तो में यह शर्त भी शामिल थी कि वह वहां के राजा होगे,

उसी शर्त अनुसार भगवान के ओरछा आगमन पर मधुकर शाह जू देव एवं रानी कुंवर गणेश द्वारा भगवान की स्थापना पूरे राजकीय सम्मान के साथ राजा के रूप के राजतिलक कर कर ओरछा में की गई थी तदोपरांत महाराज मधुकर शाह जू देव द्वारा अपनी राजधानी ओरछा से स्थानानतरित कर टीकमगढ़ में स्थापित की गई थी,

हालाकि इसके कोई प्रमाणिक सबूत नही है पर पूरे वैभवशाली इतिहास की गवाह रही ओरछा रियासत का अचानक इस तरह टीकमगढ़ पहुंच जाना इस जनश्रुति को कही न कही बल देता है। संभवतया ओरछा के रामराजा इस मायने में भी अद्वितीय है कि उन्हें प्रतिदिन पुलिस के जवान बाकायदा आज भी चारो पहर गार्ड ऑफ ऑनर पेश करते है, सूर्यास्त के बाद किसी भी वीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर पेश नही करने की स्थापित रीति के बावजूद भगवान श्रीराम को सूर्यास्त के बाद भी ओरछा में गार्ड ऑफ ऑनर पेश किया जाता है।

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