भाईचारे की अनूठी मिसाल रहमान ने बनवाई मंदिर तो कही रोजेदारो के लिए खुले मंदिर के कपाट

मुस्लिम शख्स ने गणेश मंदिर बनवाया है, वहीं गुजरात में सैकड़ों साल पुराने मंदिर के दरवाजे रोजे और इफ्तार के लिए खुल गए हैं।

नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था कि अगर लोग नफरत करना सीख सकते हैं, तो वे प्यार करना भी सीख सकते हैं, क्योंकि इंसान के दिल में नफरत से ज्यादा प्यार स्वाभाविक है। एक तरफ जहां आए दिन हमें सांप्रदायिक तनाव की खबरें देखने और पढ़ने को मिलती हैं वहीं दूसरी तरफ देश के दो राज्यों से सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी मिसाल देखने को मिली है। जिसके लिए हमारा देश हमेशा से जाना जाता रहा है। कर्नाटक में जहां एक मुस्लिम शख्स ने गणेश मंदिर बनवाया है, वहीं गुजरात में सैकड़ों साल पुराने मंदिर के दरवाजे रोजे और इफ्तार के लिए खुल गए हैं. इन दोनों मामलों को देखते हुए नेल्सन मंडेला का यह कथन सत्य प्रतीत होता है।

कर्नाटक में एक जिला है चामराजनगर यहां के चिक्काहोल के रहने वाले रहमान चिक्काहोल रिजर्वायर में गेट ऑपरेटर के पद पर काम करते थे। 2018 में वो रिटायर हो गए थे। चिक्काहोल रिजर्वायर के पास एक गणेश मंदिर है। रहमान बताते हैं कि उनके रिटायर होने से कुछ महीने पहले ही इस मंदिर से भगवान गणेश की मूर्ति गयाब हो गई थी. स्थानीय लोगों और पुलिस ने मिलकर मूर्ति को काफी छानवीन की लेकिन कोई कामयाबी हाथ नहीं लगी। एक दिन अचानक रहमान को रात में सोते हुए  सपना आया। सपना भी ऐसा आया जिसे रहमान भूल नहीं सके रहमान बताते हैं कि उनके सपने में खुद भगवान गणेश आए और भगवान ने रहमान को उनका मंदिर बनाने के लिए कहा। वही कुछ दिनों बाद रहमान रिटायर हो गए। रिटायरमेंट में उन्हें जो भी पैसा मिला, उसी से चिक्काहोल गांव में दूसरी जगह एक गणेश मंदिर बनवा दिया। रहमान ने सिर्फ गणेश मंदिर ही नही बनवाई बल्कि उन्होंने मंदिर में रोज आना पूजा-पाठ करने के लिए एक पुजारी को भी रखा है। जिसे वे हर महीने अपनी पेंशन में से 4 हजार रुपए की तनख्वाह भी देते हैं।

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रोजेदारों के खुले मंदिर के दरवाज़े

भाईचारे की दूसरी मिसाल गुजरात के बनासकांठा (Banaskantha) जिले के दलवाना गांव ने पेश की है कहते हैं कि राजनीति लोगों के आपसी भाईचारे को तोड़ने का काम करती है लेकिन धर्म चाहे कोई भी हो, वह लोगों को आपस में जोड़ने में ही विश्वास रखता है कुछ ताकतों को दो समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने से ही फुर्सत नहीं है लेकिन गुजरात के एक छोटे-से गांव के लोगों ने साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए, वह कम है. इस वक्त एक तरफ जहां पर्व नवरात्रि को धूमधाम से मनाया जा रहा है, तो वहीं मुस्लिम समाज रमजान के पवित्र महीने में रोजे रखकर अल्लाह की इबादत कर रहा है। शायद ऐसा पहली बार हुआ है, जब मुस्लिम समाज के लोगो के लिए मग़रिब की नमाज़ पढ़ने और उनका रोज़ा खोलने के लिए एक प्राचीन मंदिर के दरवाज़े खोल दिया गया हों. यही नहीं, मंदिर के संचालकों ने 100 से ज्यादा रोजेदारों लोगो के लिए खाने-पीने का सारा इंतज़ाम भी अपनी तरफ से ही किया, ताकि रोजा खोलने के वक़्त उन्हें किसी चीज की कमी न हो. रोजेदारों के  लिए 5 से 6 प्रकार के फल, खजूर और शरबत की इंतजाम किया गया था।

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