पितामह भीष्म को इस श्राप की वजह से झेलने पड़े थे ये कष्ट, भगवान ने भी…

गंगा पुत्र भीष्म पितामह को महाभारत का खलनायक कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ऐसे अपराध किए जिसकी वजह से उन्हें खलनायक कहा जाने लगा. भीष्म पितामह एक श्राप के चलते मनुष्य के रूप में जन्म लेना पड़ा था.

गंगा पुत्र भीष्म पितामह को महाभारत(mahabharat) का खलनायक कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ऐसे अपराध किए जिसकी वजह से उन्हें खलनायक कहा जाने लगा. भीष्म पितामह एक श्राप के चलते मनुष्य के रूप में जन्म लेना पड़ा था. कहा जाता है कि, भीष्म पूर्व जन्म में एक वसु थे और शाप के चलते उन्हें मनुष्य बनकर जन्म लेना पड़ा था. इसके पीछे आखिर क्या कहानी है ये आज हम आपको बता रहे हैं.

कहा जाता है कि, भीष्म 8 वसु भाइयों में से एक द्यु नामक वसु थे. एक बार वशिष्ठ ऋषि की कामधेनु का हरण इन आठों ने कर लिया. इससे क्रोधित होकर ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि, ऐसा काम तो सिर्फ मनुष्य करते हैं इसलिए तुम्हें अब मनुष्य बनना पड़ेगा.. ये सुनते ही आठों वसु डरकर ऋषि वशिष्ठ से विनती करने लगे. जिसके बाद ऋषि ने सात वसुओं को कहा कि, वर्ष के अंत होने के साथ ही मेरा श्राप खत्म हो जाएगा. लेकिन द्यु को एक जन्म के लिए मनुष्य बनकर पीड़ा सहनी होगी. जिसके बाद द्यु ने गंगा के पुत्र के रूप में जन्म लिया. जिन्हें बाद में पितामह भीष्म कहा गया.

भीष्म पितामह शांतनु सत्यवती की सुंदरता को देखकर उनके प्रेम में पड़ गए और उससे विवाह करने की ठान ली. लेकिन सत्यवती ने एक ऐसी शर्त रख दी जिसे वो पूरा नहीं कर सकते थे. जिसकी वजह से भीष्म उदास रहने लगे. लेकिन जब भीष्म को इस कारण का पता चला तो उन्होंने सत्यवती का विवाह अपने पिता सांतनु से करवा दिया और खुद आजीवन ब्रह्मचर्य रहने की कसम खाकर जीने लगे. जिसके बाद भीष्म ने हस्तिनापुर में कुरुवंश का शासन बरकरार रखने के लिए कई ऐसे अपराध किए जिसकी वजह से उन्हें महाभारत(mahabharat) का खलनायक कहा जाने लगा.

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भीष्म ने गांधारी और उनके पिता की मर्जी के बिना जबरदस्ती धृतराष्ट्र से गांधारी का विवाह करवा दिया. जिसकी वजह से गांधारी ने अपनी आंखों पर पट्टी बांद ली थी और जीवन पर्यन्त बांधे रहीं अन्त में गांधारी ने दावाग्नि में खुद को जलाकर प्राणों को त्याग दिया था.

कहा जाता है कि, जब भरी सभा में द्रौपदी को निर्वस्त्र किया जा रहा था भीष्म चुपचाप देख रहे थे. भीष्म ने जानबूझकर इस अनैतिक कार्य को चलने दिया और हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की. इसके लिए भीष्म ने द्रौपदी से बाद में क्षमा भी मांगी थी.

महाभारत(mahabharat) में भीष्म ने शरशैया पर लेटे हुए पूछा श्रीकृष्ण से कि हे मथुसुदन मेरे ये कौन से कर्मों का फल है जो मुझे बाणों की शैया मिली? तब श्रीकृष्ण ने कहा, पितामह आपा अपने पिछले 101वें जन्म जब एक राजकुमार थे तब आप एक दिन शिकार पर निकले थे। उस वक्त एक करकैंटा एक वृक्ष से नीचे गिरकर आपके घोड़े के अग्रभाग पर बैठा था।

भीष्म ने आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरिया के पेड़ पर जाकर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गए। करकैंटा जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार करकैंटा अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, ‘हे युवराज! जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूं, ठीक इसी प्रकार तुम भी होना।’

अपने अगले पिछले जन्म में भीष्म द्वारा इतने पाप करने के बाद भी भीष्म को किसी भी तरह से खलनायक नहीं माना जा सकता, क्योंकि भीष्म ने जो भी किया वह हस्तिनापुर के सिंहासन की रक्षा और कुरुवंश को बचाने के लिए किया था.

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