पाकिस्तान का तालिबान प्रेम बना SAARC देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक रद्द होने का कारण

न्यूयॉर्क में होने वाले सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई रद्द, तालिबान को अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करने की नहीं मिली अनुमति

नेपाल की अध्यक्षता में 25 सितंबर को न्यूयॉर्क में होने वाले सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक अब नहीं होगी। पाकिस्तान की तालिबान परस्ती सार्क देशों के विदेश मंत्रियों को नांगवार गुजरी।

तालिबान के मुद्दे पर सार्क देशों के बीच सहमति नहीं बन पायी। इसी कारण यह बैठक रद्द कर दी गई है। बता दें कि इस साल होने वाली सार्क विदेश मंत्रियों के बैठक की अध्यक्षता नेपाल करने वाला था।

पाकिस्तान का तालिबान प्रेम बैठक में शामिल होने वाले सार्क सदस्य प्रतिनिधियों को पसंद नहीं आया। दरअसल, पाकिस्तान चाहता है कि सार्क देशों कि श्रेणी में तालिबान को मान्यता दी जाए। इसी बात को लेकर SAARC देशों के विदेश मंत्रियों के बीच असहमति है।

कोई भी देश तालिबान को अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करने कि अनुमति नहीं देना चाहता है। यही कारण है कि पाकिस्तान के इस अनुरोध को ठुकरा दिया गया है।

दक्षिण एशियाई आठ देशों का समूह है SAARC-

SAARC का गठन 8 दिसंबर, 1985 को हुआ था। इस मकसद दक्षिण एशिया के देशों के बीच शांति कायम रखना और आपसी सहयोग की भावना से विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना है। SAARC का मुख्यालय नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित है।

भारत, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव, बांग्लादेश,अफगानिस्तान और पाकिस्तान सार्क के सदस्य देश हैं। अफगानिस्तान SAARC सदस्यों की श्रेणी में 2005 में शामिल किया गया था।

नेपाल ने आधिकारिक तौर पर की बैठक रद्द होने की पुष्टि की-

SAARC मुख्यालय को भेजे गए एक पत्र में नेपाल के विदेश मंत्रालय ने बैठक रद्द होने की सुचना दी। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने पत्र में बैठक रद्द होने का कारण पाकिस्तान की तालिबान परस्ती को बताया है।

2019 में भारत में हुए आतंकी हमलों के कारण SAARC की एक औपचारिक बैठक हुई थी। इस बैठक में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने परस्पर संबोधनों का बहिष्कार कर दिया था।

गौरतलब हो कि कोरोना महामारी के कारण पिछले साल SAARC की वर्चुअल बैठक सम्पन्न हुई थी।

बीते अगस्त के माह में तालिबान ने बलपूर्वक अफगानिस्तान की सरकार को कर दिया था निष्कासित

तालिबान ने काफी लम्बी लड़ाई के बाद अफगानिस्तान की सत्ता को बलपूर्वक हथियाने में सफल रहा। बीते 15 अगस्त को तालिबान ने अफगानिस्तान की संसद (नेशनल असेंबली) पर कब्जा जमाने के लिए हमला कर दिया था। तालिबान के इस हमले के बाद अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अफगानिस्तान को छोड़कर यूएई में शरण लेना पड़ा था।

बीते अगस्त में तालिबान शासित अफगानिस्तान में तालिबान ने अपने आधिकारिक सरकार चलाने का का ऐलान कर दिया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित इनामी आतंकवादी तालिबान सरकार के प्रधानमंत्री बने। बता दें कि वर्तमान में तालिबान का प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र से इनामी आतंकी घोषित मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद है। तालिबान का गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी पर तो यूएन ने 70 करोड़ का इनाम भी रखा हुआ है।

अफगानिस्तान पर काबिज तालिबान लगातार वैश्विक राष्ट्र के संगठनों से जुड़ने के लिए प्रयास कर रहा है। परन्तु कोई भी देश तालिबान को एक देश के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है।

Related Articles

Back to top button