नवरात्री-वंदन : इस नवरात्री के प्रथम दिन माँ शैलीपुत्री का कुछ इस तरह करें स्वागत। देखें इस खबर में
इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में गोपनीय रखा गया है, नौ रूपों को औषधियों के रूप में जान सकते हैं
साक्षात् शक्ति का स्वरुप रखने वाली माँ दुर्गा का प्रथम अंश माता शैलपुत्री को माना जाता है। ऐसा माना जाता है की माता का ये स्वरुप हिमालय पुत्री माता पारवती का है। नवदुर्गा के नौ रूपों को औषधियों के रूप में जान सकते हैं। अतः हम इसे सेहत नवरात्रि के रूप में भी जान सकते है। सबसे पहले इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में गोपनीय रखा गया। भक्तों की जिज्ञासा को संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि स्वरुप बताये गए। तो शुरुवात करते है माता के पहले स्वरुप माता शैलपुत्री के बारे में :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार का जन्म
मां शैलपुत्री हिमवान हिमालय जी की पुत्री हैं। ऐसी पौराणिक प्रचलित मान्यता है कि अपने पूर्वजन्म में ये दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं। इनका विवाह भगवान शिव जी से हुआ था । दक्ष ने एक यज्ञ के आयोजन में शिव जी को अपमानित किया था। इस अपमान से क्षुब्ध होकर सती ने योगाग्नि द्वारा अपने आप को भस्म कर दिया था। वही सती अगले जन्म में हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। इन्हें माता पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। जो बाद में भगवान शंकर जी की अद्र्धागिनी बनीं।
कैसा है माता का स्वरुप
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इन देवी का वाहन वृषभ है। इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती है। बाएं हाथ में कमल का पुष्प हमें काम, क्रोध, मद, लोभ जैसे पंक रूपी दुर्गुणों से उबारकर उत्कृष्टतम जीवनशैली अपनाने का सकारात्मक संदेश प्रदान करतीं है।
देवी की उपासना का मन्त्र
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
कहा जाता है की इस दिन साधक का मन मूलाधार चक्र में स्थित होता है। अतैव ध्यानमग्न होगर उपासना करने से देवी की कृपा जल्द प्राप्त होती है।
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