लखनऊ: धूम्रपान निषिद्ध होटल / रेस्त्रां: स्वास्थ्य और कारोबार सबके लिए फायदा
धूम्रपान की इजाजत नहीं देने वाले रेस्त्रां और होटल ज्यादा ग्राहक आकर्षित और कारोबार कर रहे हैं। पूरी तरह धुंआ मुक्त होना फायदेमंद है।
धूम्रपान की इजाजत नहीं देने वाले रेस्त्रां और होटल ज्यादा ग्राहक आकर्षित और कारोबार कर रहे हैं। पूरी तरह धुंआ मुक्त होना फायदेमंद है। इससे मुनाफा बढ़ रहा है और लागत कम हो रही है। हॉस्पीटैलिटी सेक्टर अपने परिसर में धूम्रपान की इजाजत देने का विकल्प छोड़ रहे हैं और महामारी के इस समय में यह कर्मचारियों, ग्राहकों के स्वास्थ्य की रक्षा की दिशा में उनका योगदान है। रेस्त्रां मालिक, होटल और रेस्त्रा एसोसिएशन के प्रतिनिधि, राज्यों के पर्यटन और स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधि, चिकित्सक और वैश्विक विशेषज्ञों ने एकजुट होकर स्मोकफ्री (धुंआमुक्त) होटल / रेस्त्रां का समर्थन किया। इन लोगों ने यह निष्कर्ष निकाला कि 100 प्रतिशत धुंआ मुक्त प्रतिष्ठान ग्राहकों के साथ-साथ मालिकों के लिए भी फायदेमंद है।
रेस्त्रां और होटलों में यह प्रवृत्ति बढ़ रही है कि परिसर में धूम्रपान की इजाजत खत्म की जाए और 100 प्रतिशत धुंआ मुक्त हुआ जाए। इस बदलती मनःस्थिति का कारण बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के साथ परिवारों को आकर्षित करना है। ये वैसे लोग हैं जो उन होटलों और रेस्त्रां को प्राथमिकता देते हैं जहां धूम्रपान की इजाजत नहीं होती है। मतलब परिसर में कोई कहीं भी धूम्रपान नहीं करता है। इससे संस्थानों को स्मोकिंग एरिया मेनटेन करने की जरूरत नहीं है और इसपर खर्च होने वाला बहुत सारा धन बच रहा है। साथ ही उनके कर्मचारी और ग्राहक जो धूम्रपान नहीं करते हैं, दूसरों के धुंए का शिकार होने से बच रहे हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष सचिव, पर्यटन विभाग शिव पाल सिंह ने कहा, “पैसिव स्मोकिंग अगर स्क्रिय धूम्रपान से ज्यादा नहीं तो समान रूप से नुकसानदेह है। सिगरेट और बीड़ी के धुंए से निकलने वाले नुकसानदेह रसायन का मानव शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव होता है। इससे परिवारों का हेल्थकेयर पर होने वाला खर्च भी बढ़ता है, जिसे टाला जा सकता है। ऐसे में लोगों को पैसिव स्मोकिंग से बचाने और ऐक्टिव स्मोकिंग को कम / खत्म करने की जरूरत है। इन प्रयासों का नतीजा ग्राहकों, कर्मचारियों के अच्छे स्वास्थ्य के साथ प्रतिष्ठानों के बढ़े हुए कारोबार के रूप में सामने आएगा।
हॉस्पीटैलिटी उद्योग को एकजुट होने की जरूरत है ताकि धुंआ मुक्त सार्वजनिक जगह बनाने से संबंधित कानून को लागू कराया जाए और इसके लिए प्रवर्तन अधिकारियों के साथ तालमेल में काम किया जा सके और एक ऐसा समाज बनाया जा सके जो न सिर्फ तंबाकू के बुरे प्रभावों के प्रति जागरूक हो बल्कि उन्हें खत्म करने के लिए सक्रियता से भागीदारी भी करे।”
जॉन हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पबलिक हेल्थ स्थित इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल टोबैको कंट्रोल ने आठ भारतीय शहरों में हाल में एक अध्ययन कर यह जानने की कोशिश की कि हॉस्पीटैलिटी वाली जगहों पर डीएसए की मौजूदगी कैसी है और कोपटा 2003 के विनिर्देशनों के अनुसार डीएसए के लिए आवश्यक शर्तों के अनुसार इनका अनुपालन कैसा है। 3243 जगहों का सर्वेक्षण किया गया। इनमें 836 बार, 971 होटल और 1436 रेस्त्रां थे जो बैंगलोर, चेन्नई, दिल्ली, गुवाहाटी, जयपुर कोलकाता, लखनऊ और मुंबई में हैं। इन में सिर्फ 120 जगहों पर डीएसए थे। इन डीएसए में सिर्फ 3% सभी विनिर्देशनों का अनुपालन करते थे। 58% से ज्यादा डिजाइन मानकों के अनुकूल नहीं थे और 92 प्रतिशत ने आवश्यक, ‘स्मोकिंग एरिया’ का साइनेज प्रदर्शित नहीं किया था।
कम से कम 66 देशों में इनडोर (किसी इमारत के अंदर) सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान प्रतिबंधित है। और डीएसए का कोई अपवाद नहीं है। इनमें ब्राजील, कनाडा, गुएना, पाकिस्तान, सूरीनाम, युगांडा और यूनाइटेड किंगडम उल्लेखनीय हैं। धुंआ मुक्त नीतियों का कारोबार पर सकारात्मक प्रभाव होता है और इसका कारोबारों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है। ऐसे कारोबारों में रेस्त्रां और बार भी हैं। अमेरिका, मैक्सिको सिटी, आयरलैंड, नॉर्वे, अर्जेन्टीना, साइप्रस हंगरी और अन्य देशों के हॉस्पीटैलिटी वेन्यू में इसे लागू करने से पहले और बाद के डाटा से पता चला कि 100 प्रतिशत स्मोक फ्री होने के बाद भी कोई नकारात्मक आर्थिक प्रभाव नहीं पड़ा।
तेलंगाना स्टेट होटल्स एसोसिएशन के चेयरमैन श्री एमएस नागाराजू ने कहा, “हम देख रहे हैं कि ज्यादातर परिवार ऐसे रेस्त्रां और होटल पसंद करते हैं जो धूम्रपान की इजाजत नहीं देते हैं। हमारे एसोसिएशन के कई सदस्यों ने स्वेच्छा से यह निर्णय किया है कि 100 प्रतिशत धुंआ मुक्त हो जाएंगे। हम दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि तेलंगाना एक मॉडल राज्य हो जहां सभी होटल और रेस्त्रां 100 प्रतिशत धुंआ मुक्त हों। धूम्रपान की जगहों को पूरी तरह बंद कर देने के लिए यह सही समय है। इस तरह, हम सबके लिए इसे खत्म करना आसान हो जाएगा।”
भारत में सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) अधिनियम, (कोटपा) 2003 के तहत सभी सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान प्रतिबंधित है। हालांकि, रेस्त्रां, होटल और हवाई अड्डों जैसी सार्वजनिक जगहों पर डेजिगनेटेड स्मोकिंग एरियाज (डीएसए) में धूम्रपान की अनुमति है। सेकेंड हैंड स्मोकिंग (दूसरों का धुंआ पीना) खुद धूम्रपान करने की ही तरह नुकसानदेह है। दूसरों के धुंए में मौजूद नुकसानदेह रसायनों के संपर्क में आने से कई बीमारियां हो सकती हैं और इनमें फेफड़े का कैंसर, हृदय की बीमारी शामिल है। बच्चों में इससे फेफड़ा काम करना बंद कर सकता है और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। अगर धूम्रपान से किसी की सांस लेने की प्रणाली खराब है और कार्डियो वस्कुल सिस्टम भी प्रभावित हो चुका है तो ऐसे लोग कोविड-19 संक्रमण के गंभीर शिकार हो सकते हैं और मौत भी हो सकती है। डीएसए से कोविड-19 का संक्रमण फैसला आसान होता है क्योंकि धूम्रपान करने वाले डीएसए में सामाजिक दूरी नहीं रख सकते हैं और वे धुंए से भरी एक छोटी जगह में करीब रहते हैं।
भारत में तंबाकू का उपयोग करने वालों की संख्या दुनिया में दूसरे नंबर पर है (268 मिलियन या सभी वयस्कों में 28.6%) धूम्रपान करते हैं – इनमें से कम से कम 1.2 मिलियन हर साल तंबाकू से जुड़ी बीमारियों के कारण मर जाते हैं। एक मिलियन मौतें धूम्रपान के कारण होती हैं जबकि 200,000 से ज्यादा मौतें दूसरों के धुंए का शिकार होने से होती हैं। 350,000 से ज्यादा मौते धुंआ हीन तंबाकू (खैनी, पान मसाला आदि) के उपयोग से होती हैं। भारत में होने वाले सभी कैंसर में करीब 27% तंबाकू का उपयोग करने के कारण होते हैं। तंबाकू के उपयोग के कारण होने वाली सभी बीमारियों और मौतों की कुल वार्षिक आर्थिक लागत (35+ से ज्यादा वालों में) 177,341 करोड़ रुपए थी जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 1.04% है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार धूम्रपान हो या खैनी अथवा पान मसाला किसी भी रूप में तंबाकू का उपयोग कोविड-19 के संक्रमण से जुड़ा हुआ है।
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