नरेंद्र मोदी ! चाय वाला खिलाड़ी जिसने साम, दाम, दंड, भेद से पार्टी पर पकड़ की मजबूत
मोदी के नेत्रत्व में बीजेपी दो लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा जीत चुकी है। ये सफर कब तक चलेगा ये तो मतदाता तय करने वाले हैं। लेकिन आज हम आपको बात रहे हैं कि कैसे संघ का एक स्वयं सेवक देश का प्रधान सेवक बन जाता है।
लखनऊ : बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान का नेतृत्व सौंपा, उस समय उनको जरा भी यकीन नहीं होगा कि उनका ये निर्णय न सिर्फ बीजेपी बल्कि देश की भी राजनीति को बदलने वाला होगा। इसके बाद तो देश और बीजेपी की राजनीति न सिर्फ बदली बल्कि बीजेपी के वट पुरुष कहे जाने वाले कई नेता घर बैठ गए। बीजेपी में अब सिर्फ मोदी की पसंद के नेता ही बचे हैं। जो विरोध में थे वो दल या दिल बदल चुके हैं।
मोदी के नेत्रत्व में बीजेपी दो लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा जीत चुकी है। ये सफर कब तक चलेगा ये तो मतदाता तय करने वाले हैं। लेकिन आज हम आपको बात रहे हैं कि कैसे संघ का एक स्वयं सेवक देश का प्रधान सेवक बन जाता है। हमारी इस स्पेशल रिपोर्ट में हम आपको पीएम मोदी के बारे में सब कुछ बताने वाले हैं जिसने मोदी को मोदी बना दिया।
नाम नरेन्द्र दामोदरदास मोदी
जन्म 17 सितम्बर 1950, 7 अक्तूबर
2001 से 14 तक लगातार गुजरात का मुख्यमंत्री
अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद मोदी गुजरात के सीएम बने। मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने दिसम्बर 2002 और उसके बाद दिसम्बर 2007 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल किया। गुजराती परिवार में जन्में नरेंद्र ने आजीवन अविवाहित रहकर देश-सेवा का व्रत लिया और विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति का आरंभ किया और कालांतर में संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने। देश में हिंदुत्व की लहर जिस सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा से जगी उसमें मोदी लालकृष्ण आडवाणी के सारथी रहे।
मोदी का प्रारम्भिक जीवन
बालक नरेंद्र का जन्म दामोदरदास मूलचन्द मोदी व हीराबेन मोदी के परिवार में गुजरात के मेहसाणा में हुआ। मेहसाणा उस समय बम्बई सूबे का हिस्सा था। मोदी के 6 भाई बहन है, जिनमें नरेंद्र तीसरे हैं। 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान मोदी ने एक स्वयंसेवक के तौर पर रेलवे स्टेशनों पर सैनिकों की आवभगत कर काफी शोहरत पाई। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्ताधर्ताओं ने युवक मोदी को पूर्णकालिक प्रचारक बना दिया। संघ में ऐसा प्रभाव जमाया कि उनको भारतीय जनता पार्टी में संघ का प्रतिनिधि बना भेजा गया।
एक समय ऐसा था जब मोदी बड़े भाई के साथ चाय की दुकान लगाते थे।
राजनीति जीवन
शंकरसिंह वघेला का जनाधार नरेंद्र मोदी की रणनीति पर टिका था। फिर वो समय आया जिसका सपना मोदी ने तब देखा था जब वो चाय की दुकान लगाते थे, ये बात है अप्रैल 1990 की उस समय केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर नया नया आरंभ हुआ था, मोदी ने अब तक गुजरात में जो काम किया था वो वर्ष 1995 के विधान सभा चुनावों में रंग लाया।
बीजेपी ने अपने बलबूते प्रदेश में दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। उसी बीच बीजेपी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा घोषित कर दी। बीजेपी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने मोदी को अपना सारथी नियुक्त किया। ठीक इसी तरह एक और रथ यात्रा कन्याकुमारी से लेकर काश्मीर तक नरेंद्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। दोनों यात्राओं से बीजेपी और मोदी का भी राजनीतिक कद इतना ऊँचा हुआ की शंकरसिंह वघेला उसके आगे बौने नजर आने लगे पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद केशुभाई पटेल को गुजरात का सीएम बना दिया गया और नरेंद्र मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा में संगठन का दायित्व सौंप दिया गया।
वर्ष 1995 में मोदी को प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया इसके बाद वर्ष 1998 में उन्हें पदोन्नत करके संगठन महामंत्री का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वे अक्तूबर 2001 तक काम करते रहे।
गुजरात के मुख्यमन्त्री मोदी
कथित हिन्दू ह्रदय सम्राट मोदी ने अपने कार्यकाल में गुजरात में कई मन्दिरों को ध्वस्त करवाने में कोई कोताही नहीं बरती जो कानून कायदों के मुताबिक नहीं थे।
मोदी ने अपने को राज्य में स्थापित करने के लिए पंचामृत योजना, सुजलाम् सुफलाम्रा, कृषि महोत्सव, चिरंजीवी योजना, मातृ-वन्दना, बेटी बचाओ, ज्योतिग्राम योजना, कर्मयोगी अभियान, कन्या कलावाणी योजना, बालभोग योजना बनाई और सफलता पूर्वक उनका संचालन भी किया।
गुजरात दंगे
27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट रहे तीर्थयात्रियों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में मुस्लिमों द्वारा आग लगाकर जिन्दा जला दिया गया। 59 स्वयंसेवक भी मारे गये। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या मुस्लिमों की थी। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने मोदी के इस्तीफे की मांग की। मोदी ने गुजरात की दसवीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को त्यागपत्र सौंप दिया। राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। चुनाव हुए जिसमें मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई।
अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानाना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में मोदी की साजिश तो नहीं। दल दंगें में मारे गये कॉंग्रेस सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था। एसआईटी की रिपोर्ट में दंगों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला।
मोदी और विवाद
फरवरी 2011 में आरोप लगा कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गए, सबूतों के अभाव में मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता। बीजेपी ने मांग की कि एसआईटी रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ काँग्रेस का हाथ है, इसकी भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच होनी चाहिये। कोर्ट ने अहमदाबाद के एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जांच करके निर्णय देने को कहा।
अप्रैल 2012 में एक अन्य जांच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि ये दंगे भीषण थे परन्तु मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं। इसके बाद 7 मई 2012 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 ए (1) (क) व (ख), 153 बी (1), 166 तथा 505 (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच बैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है।
26 जुलाई 2012 को नई दुनिया उर्दू के सम्पादक शाहिद सिद्दीकी को दिये गये एक इण्टरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने साफ कहा-“2004 में मैं पहले भी कह चुका हूं, 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के लिये मैं क्यों माफ़ी मांगू ?’ यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिये मुझे सरे आम फाँसी दे देनी चाहिये।
मोदी ने कहा, अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फाँसी पर लटका दो। लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जबाव नहीं है।
गुजरात में नरेंद्र मोदी
गुजरात में मुस्लिमो का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है? इस का जवाब सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि सारी दुनिया से यही मिलाता है नरेन्द्र मोदी। मानवता पर कलंक नरेन्द्र मोदी। गुजरात का तानाशाह नरेंद्र मोदी। और भी न जाने क्या-क्या नाम मिले हैं नरेंद्र मोदी को। लेकिन मोदी का जितना विरोध है उतनी तेजी से लोकप्रियता भी बढ़ रही है। मोदी की लोकप्रियता के मूल में हिंदुत्व छुपा है।
आपको याद होगा जब अयोध्या से शिलापूजन कर लौट रहे कारसेवको को गोधरा में मुस्लिमो ने जलाकर राख कर दिया तो गुजरात में प्रतिक्रिया के स्वरुप दंगा हुआ। इस दंगे के बाद से मोदी की सफलता की शुरुआत होती है। दंगों के बाद मोदी समर्थको की संख्या बढ़ती चली गई। अधिकतर हिन्दुओ के मन में ये बात घर कर चुकी है कि जब भी कोई दंगा होता है तो उसमें हिन्दू ही मरे जाते है। मुस्लिमो को वोटबैंक समझने के कारण ज्यादातर सरकारे कही न कही उनकी मदद करती हैं।
गुजरात में मोदी ने विकास की झड़ी लगा दी। टाटा, अदानी सहित कई देशी विदेशी कंपनियों ने गुजरात में निवेश किया जिससे बेरोजगारी कम हुई। जिस टाइम्स पत्रिका ने उस दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अंडरएचीवर कहा था उसने ही ‘मोदी मीन्स बिजनेस’के साथ मोदी क गुणगान किया।
वट वृक्ष मोदी
मोदी बीजेपी के अन्दर वट वृक्ष बन चुके हैं। बीजेपी हिंदुत्व की लहर के चलते केंद्र में अटल बिहारी बाजपाई के नेत्रत्व में सरकार बना सकी। वही जब इस मुद्दे से हटी तो सभी की निगाहें मोदी पर टिक गई। आज देश में बीजेपी नहीं मोदी को लोग हिंदुत्व अस्मिता का रक्षक मान रहे हैं।
जनता की नजर में मोदी कुशल नेता है। जिस चीज को ठान लेते है उसे पूरा करके ही दम लेते है।
संजय जोशी कांड
बात पुरानी है, वर्ष 1980 के दशक में नितिन गडकरी और संजय जोशी नागपुर में आरएसएस की एक ही शाखा जुड़े हुए थे। संजय नागपुर से हैं। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद वो स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ गए। बीजेपी को गुजरात में मजबूत बनाने में जोशी की बड़ी भूमिका रही।
जोशी तेरह साल तक गुजरात में रहे। 1990 में जब संजय जोशी को गुजरात बीजेपी में संगठन मंत्री का पद दिया गया, उस समय मोदी को उनसे ठीक उपर के पद यानी संगठन महामंत्री के पद पर काम करते हुए दो साल हो चुके थे। दोनों ने पार्टी की गुजरात इकाई में करीब 5 साल तक साथ-साथ काम किया, 1995 में बीजेपी ने अपने दम पर गुजरात में पहली बार सरकार बनाई। गुजरात में उस समय सीएम पद के दो दावेदार थे, केशुभाई पटेल और शंकरसिंह वाघेला।
शंकरसिंह वाघेला मोदी और जोशी के गुरु रहे थे। सीएम बनने का मामला सामने आया, तो मोदी और जोशी केशुभाई पटेल के साथ खड़े हो गए। पटेल के मुख्यमंत्रित्व में गुजरात में बीजेपी की पहली सरकार की शानदार शुरुआत हुई थी, कुछ दिनों के बाद शंकरसिंह वाघेला ने बगावत का बिगुल बजा दिया। वाघेला सबके लिए नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार मानते थे। बगावत रोकने के लिए मोदी को दिल्ली बुला लिया गया और जोशी संगठन महामंत्री बन गए।
इसके बाद कांग्रेस के सहयोग से वाघेला गुजरात के सीएम बन गए। 1998 में बीजेपी दोबारा सत्ता में आई लेकिन मोदी को कोई भाव नहीं मिला और 1998 में केशुभाई एक बार फिर गुजरात के सीएम बने। इसके बाद मोदी जोशी से नफरत करने लगे। मोदी को समय का इंतजार था।
वर्ष 2001 में जब उपचुनाव में बीजेपी को हार झेलनी पड़ी थी और केशुभाई को सीएम की गद्दी से हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का सीएम बना दिया गया। फिर क्या था, मोदी ने सत्ता में आते ही महीने भर के अंदर संजय जोशी को गुजरात से विदा कर दिया। इसके बाद मोदी बीजेपी के बड़े नेता के रूप में स्थापित हुए और संजय जोशी दिल्ली देखते रहे। जोशी की ताकत का अंदाजा सभी को उस समय हुआ जब संजय ने जिन्ना विवाद पर लाल कृष्ण आडवाणी से अध्यक्ष पद से इस्तीफा मांग लिया था और आडवाणी को इस्तीफा देना पड़ा।
सूत्र बताते हैं कि मोदी ने एक कथित सीडी के जरिए संजय जोशी को मजबूर कर दिया की उन्हे पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद से तो दोनों एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते। बाद में जोशी निर्दोष साबित हुए और गडकरी के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद 2011 में जोशी को यूपी में विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी चुनाव प्रभारी के तौर पर दी। मोदी इससे इतने नाराज हुए कि वो यूपी में 2012 में हुए चुनावों के दौरान पार्टी का प्रचार करने तक नहीं गए। मुंबई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने के लिए मोदी ने संजय जोशी का इस्तीफा तक दिलवा दिया। इससे ये साबित होता है की मोदी ने कभी भी अपने दुश्मनों को माफ नहीं किया उनको मिटाकर ही दम लिया।
तानाशाह जिसे पसंद करना मजबूरी है
मोदी की जो छवि बनती है! वो ये हैं कि वो एक ऐसा व्यक्ति है जिसे संघ और पार्टी दोनों ही अप्रत्यक्ष तौर से एक तानाशाह कहता है। पार्टी में कोई भी बड़ा नेता मोदी को पसंद नहीं करता। लेकिन कुछ कहने से डरता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मोदी संजय जोशी और आडवाणी सहित उन सभी को किनारे लगा चुके हैं जो उनके विरोध में थे, तो किसी को भी लगा सकते हैं। मोदी वही है जिन्होंने गोधरा की धरा को निर्दोषों के प्राण से हिंदुत्व की प्रयोगशाला बना दिया था। आज यदि बीजेपी को देखें तो जिस पार्टी का गठन हिंदुत्व के मुद्दे पर हुआ था वो आज मोदीत्व के सहारे चल रही है। देखना ये होगा कि यूपी विधानसभा चुनाव में मोदीत्व क्या राग सुनाता है।
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