लखनऊ : सरकारी स्कूलों से नदारद हुए बच्चे, नाम लिख कर पढ़ा रहे कहीं और, संख्या दिखाकर तनख्वाह ले रहे मास्टर
- सरकारी स्कूलों से नदारद हुये बच्चे
- नाम लिखाकर पढ़ा रहे कहीं और, संख्या दिखाकर तनख्वाह ले रहे मास्टर
Missing children from government school लखनऊ : सरकारी स्कूलों में मध्याहन भोजन की सुविधा, कापी-किताबे, ड्रेस, जूते-मोजे, स्वेटर आदि मुफ्त मिलने के बाद भी विद्यार्थियों का टोटा पड़ा हुआ है। गरीब से गरीब अभिभावक अपने बच्चों को यहां पढ़ाना गंवारा नहीं समझता है।
- वे अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना अधिक पसंद करते है।
- शिक्षा विभाग परिषदीय विद्यालयों की दशा सुधारने और विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिये हरसंभव प्रयास करता है।
- परन्तु उन प्रयासों पर यहां के षिक्षक और प्रधानाचार्य पानी फेर देते है।
- किसी विद्यालय में पॉच तो किसी में मात्र बीस बच्चें है।
- कहीं कही पर संख्या के अनुपात में शिक्षकों की तैनाती अधिक है।
- जब ये हाल शहर का है फिर गॉवों की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
महामारी कोरोना के चलते वैसे भी सारे स्कूल बंद है.
- परन्तु जब खुले होते है तब भी इनकी दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।
राजधानी लखनऊ के लेबर कालोनी वार्ड में बुलाकी अड्डा स्थित प्राथमिक विद्यालय में प्रार्थना के समय बीस से अधिक बच्चे कभी दिखायी नहीं दियें। वार्ड बशीरतगंज के अंतर्गत सोशल सर्विस स्कूल में कई वर्षों से पांच से दस ही बच्चे दिखायी देते है।
- जबकि मिड डे मील और ड्रेस आदि बांटने में संख्या अधिक दिखायी जाती है।
- इसी वार्ड के प्राथमिक विद्यालय फतेहगंज में भैसों का तबेला बना रहता है।
- यहां भी बच्चें नाम मात्र ही है।
- विद्यालय के आस-पास अवैध डेयरियां है।
- मोतीझील मालवीय नगर स्थित प्राथमिक विद्यालय भी विद्यार्थियों के अभावों का सामना कर रहा है।
- लोग यहां से बच्चों के नाम कटवा कर छोटे-मोटे निजी स्कूलों में लिखवा रहे र्है।
टीचर कहते हैं नाम यहां लिखा दो, पढ़ाओ कहीं भी:-
- जब विभाग द्वारा स्कूल चलो अभियान चलाया जाता है.
- तब परिषदीय विद्यालयों के शिक्षक सक्रिय होते है और थोड़ा बहुत प्रयास प्रवेश के लिये करते है।
- लॉक डाउन में खाली बैठे शिक्षक अभी अभियान का इ्रतजार कर रहे है।
इन विद्यालयों के शिक्षक अपनी जान-पहचान वालों से कहते है कि बच्चों का प्रवेश यहां करा दीजिये भले ही आप पढ़ायें कही और ताकि बच्चों की संख्या को बढ़ा कर दिखा सके। ऐसे सैकड़ों विद्यालय है जहां पंजीकृत संख्या और वास्तविक संख्या में जमीन आसमान का अंतर देखने को मिलेगा।
- सुबह प्रार्थना के समय और मिड डे मील के समय इस अंतर को कहीं भी और कहीं भी देखा जा सकता है।
शिक्षा विभाग और सरकारी कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिह्न:-
सारी मुफ्त सुविधाये, अच्छे भवन और अच्छे शिक्षक होने के बाद भी क्यों कोई अभिभावक अपने बच्चों को यहां पढवाना नहीं चाहता है।
- एक तरफ तो अभिभावक निजी विद्यालयों पर लूटने का आरोप लगाते है.
- फिर भी सभी शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में ही बच्चों को पढ़ाना चाहते है।
- क्यों नही वह बच्चा सारी मुफ्त सुविधाओं वाले सरकारी परिषदीय विद्यालयों में जाता है।
- एक यक्ष प्रश्न है जो शिक्षा विभाग और सरकारी कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगाता हैै।
- आंकड़ों की बाजीगरी किसी अधिकारी से छिपी नहीं है.
- परन्तु कोई मौका मुआयना की जहमत कर इस दुर्दशा को दूर करने का प्रयास करता है।
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