जानें, आखिर क्यों इस दैत्य से हार गए थे श्रीराम और भक्त हनुमान ?
रावण के पुत्र मेघनाद(Meghnad) को भगवान शिव और ब्रह्मा जी से ऐसे वरदान मिले थे जिसकी वजह से उसे हराना बहुत मुश्किल था. लेकिन कहते हैं कि, युद्ध में सबकुछ जायज होता है. छल-कपट, कूटनीति, नियत और नीति ये सभी युद्ध के समय में सही हो जाते हैं भले ही इनके पीछे की मंशा कुछ भी हो. यही वजह थी कि, मेघनाद को यज्ञ करते समय राम मारना चाहते थे लेकिन वहां से वो बच निकला था.
रावण के पुत्र मेघनाद(Meghnad) को भगवान शिव और ब्रह्मा जी से ऐसे वरदान मिले थे जिसकी वजह से उसे हराना बहुत मुश्किल था. लेकिन कहते हैं कि, युद्ध में सबकुछ जायज होता है. छल-कपट, कूटनीति, नियत और नीति ये सभी युद्ध के समय में सही हो जाते हैं भले ही इनके पीछे की मंशा कुछ भी हो. यही वजह थी कि, मेघनाद को यज्ञ करते समय राम मारना चाहते थे लेकिन वहां से वो बच निकला था.
मेघनाद(Meghnad) महापराक्रमी और बलशाली योद्धा था. उसके पास ऐसी शक्तियां थीं जिनका मुकाबला करना किसी के बस में नहीं था. ऐसे में सिर्फ कूटनीति और छल से ही उसे मारा जा सकता था. कहा जाता है कि, मेघनाद ने महावीर हनुमान को भी अपने शस्त्र विद्या के बल पर हरा दिया था. इसके साथ ही श्रीराम को एक बार और लक्ष्मण को दो बार युद्ध में हरा चुका था.
दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि, रावण के पुत्र मेघनाद(Meghnad) का वध स्वयं भगवान राम नहीं कर सकते थे क्योंकि उसे ब्रह्मा जी से वरदान मिला हुआ था. मेघनाद को मिले इस वरदान की वजह से उसे सिर्फ लक्ष्मण ही मार सकते थे.
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कहा जाता है कि, जब मेघनाद(Meghnad) ने देवलोक पर विजय हासिल की और इंद्रदेव को बंधक बना लिया तो ब्रह्मा जी ने इंद्रदेव को छोड़ने के लिए मेघनाद से कहा. जिसके बाद मेघनाद ने इंद्र को छोड़ दिया. इसी से खुश होकर ब्रह्मा जी ने मेघनाद(Meghnad) को वरदान दिया कि, तुम्हारी मृत्यु उस व्यक्ति के हाथों होगी जिसने 14 साल तक बिना खाए-सोए और वनवास में रहा हो वही मेघनाद का वध कर सकता है.
इस वरदान में कही गई बातें सिर्फ लक्ष्मण ही पूरी करते थे क्योंकि जब भगवान राम 14 वर्षों के लिए वनवास गए थे तो लक्ष्मण जी बिना कुछ खाए और सोए भाई राम और भाभी सीता की रक्षा करते रहे थे. इस दौरान उन्होंने सीता जी के चेहरे की तरफ भी कभी नहीं देखा था. इसलिए वरदान की सारी शर्तों को वो पूरा करने वाले व्यक्ति थे.
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