अर्थ : आखिर क्यों पूजे जातें हैं देवताओं के साथ उनके वाहन, जानिए

क्षण भर में एक जगह से दूसरी जगह जाने में सक्षम भगवान क्यों करते हैं जीवों की सवारी

हिन्दू धर्म में सभी देवी देवताओं का अपना अलग महत्त्व है। ठीक उसी तरह उनके वाहन भी अलग अलग है। मनीषियों ने भगवान को पशुवों के साथ जोड़ने के कई कारण बताये है। उन्होंने इसे आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारणों से इसे स्पष्ट किया है। आईये जानते है उन तथ्यों को जो इस तर्क को स्पष्ट करता है।

भगवान को प्रकृति और प्राणियों से जोड़कर

इस बात में बिलकुल भी संदेह नहीं है की अगर आज पशुवों को भगवान के वाहन के रूप में प्रस्तुत न किया जाता तो शायद उनके साथ हिंसा और ज्यादा होती। मनीषियों ने स्पष्ट रूप से यह सन्देश देने का प्रयास किया है की पशु भी प्रकृति के लिए उतना ही जरुरी जितना मनुष्य। जिस कारण उन्होंने हर पशु को किसी न किसी भगवान के वाहन साथ जोड़ दिया।

भगवान का वाहन और कारण

श्री  गणेश व मूषक : श्री गणेश का वाहन मूषक बताया है। मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना। जैसे मनुष्य का दिमाग स्वार्थी भाव का होता है। गणेश जी का मूषक पर बैठने का अर्थ है की स्वार्थ पर विजय हांसिल करना।

भगवान शिव व नंदी : भगवान भोलेनाथ का स्वाभाव अत्यंत सरल व सहज है। परन्तु क्रोश में वे विनाशक का रूप धारण करने वाले विध्वंशक भी है। उनका यह गुण बैल के स्वाभाव से मिलाप करता है इसीलिए वे बैल की सवारी करते है।

श्री कार्तिकेय और मयूर : कार्तिकेय जी को उनका वाहन भगवान विष्णु से प्राप्त हुआ था। कार्तिकेय जी की साधक क्षमताओं को देखकर उन्हें यह वाहन दिया गया था । कार्तिकेय जी के साथ इसको दम्भ के नाशक के रूप में देखा जाता है।

भगवान विष्णु व गरुण : प्राचीनतम तथ्यों के अनुसार गरुण को दिव्य शक्तियों और अधिकार के रूप से जाना जाता है। चूँकि भगवान विष्णु में समस्त संसार समाया है। और उसपर विष्णु जी ही पालनहार है। इसीलिए वे गरुण की सवारी करतें है।

 

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