कानपुर : शहर में स्थित है रामायण काल से जुड़ा माता का मंदिर, पढ़िए इस खबर में

जहां पर सीता माता ने की थी तपस्या, पुत्र लव कुश का इसी मंदिर में हुआ था मुंडन एवं कर्ण छेदन संस्कार

शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करने का विशेष महत्व है। नवरात्र में आठवें दिन को महाष्टमी के रूप में जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की आठवीं शक्ति की उपासना महागौरी के रूप में की जाती है। C 10 चैनल अपने दर्शकों को अष्टमी में मां दुर्गा के ऐसे मंदिर के दर्शन कराने जा रहा है जहां पर माता सीता ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या के फलस्वरूप मां ने उन्हें बेटों का वरदान दिया था।

मां तपेश्वरी देवी का मंदिर

कानपुर में बिरहाना रोड पर जहां मां तपेश्वरी देवी का मंदिर स्थापित है। वहां कभी गंगा की धारा बहती थी और घना जंगल हुआ करता था। तपेश्वरी देवी मंदिर कानपुर का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह शहर के शिवाला में स्थित है। मंदिर की मान्यता है कि जिन महिलाओं की गोद सूनी होती है वह यहां आएं तो उनकी मुराद माता रानी की कृपा से पूरी हो जाती है। इसी के चलते इस मंदिर पर पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर आती हैं और उनका मुंडन और कर्णछेदन करवातीं हैं।

मां तपेश्वरी मंदिर का इतिहास

मां तपेश्वरी देवी का मंदिर रामायण काल से जुड़ा है। जब लंका पर विजय के बाद भगवान राम अयोध्या पहुंचे तो धोबी के ताना मारने पर मां सीता को उन्होंने त्याग दिया था। लक्ष्मण जी जानकी जी को लेकर ब्रह्मावर्त स्थित वाल्मीकि आश्रम के पास छोड़ गए थे।
मान्यता है कि इस मंदिर में माता सीता ने आकर तप किया था और लवकुश मुंडन और कर्णछेदन का शुभ कार्य भी यहीं किया गया था। माता सीता बिठूर से आकर इस मंदिर में तप करती थीं।

तपेश्वरी माता का प्राकट्य हुआ

आज जहां तपेश्वरी माता मंदिर स्थित है तब वहां घना जंगल था और मां गंगा वहीं से बहती थीं। सीता जी ने तब यहां पुत्र की कामना के लिए तप किया था। भगवती सीता के तप से ही तपेश्वरी माता का प्राकट्य हुआ था। लव कुश के जन्म के बाद सीता जी ने मां के समक्ष ही दोनों पुत्रों का मुंडन कराया था।

मां तपेश्वरी देवी को 84 घंटे वाली देवी भी कहा जाता है इनकी मान्यता मुंबई की मुंबा देवी और कलकत्ते की काली देवी के समान ही है। यहां पर माता रानी 24 घंटे आठों पहर भक्तों की मुरादे पूरी करने के लिए उपस्थित रहती है।

मां तपेश्वरी देवी का अनूठा रहस्य

मां सीता ने भगवान राम को पाने के लिए यहां पर तप किया था। मां सीता के साथ तीन अन्य कमला, विमला, महिलाओं ने तप किया था। इसी के चलते इसका नाम तपेश्वरी मंदिर पड़ा। इस मंदिर पर चार देवियों कमला, विमला, सरस्वती और मां सीता विद्यमान हैं। मगर ये कोई नहीं जानता कौन सी मूर्ति किसकी है। ये रहस्य आज भी बना हुआ है कि इन चारों मूर्ति में कौन सी मूर्ति माता सीता की है।

भैरव नाथ मंदिर

भारतवर्ष में जहां-जहां माता रानी का मंदिर वहां पर भैरव नाथ का मंदिर अवश्य होता है ऐसा माना जाता है कि भैरव नाथ जीके दर्शन के बगैर माता रानी का दर्शन एवं यात्रा पूरी नहीं मानी जाती।

भैरव मंदिर की विशेषता

मां तपेश्वरी देवी के गेट के बाहर बाबा भैरव नाथ का मंदिर इस मंदिर में बाबा को गुलगुले और दही बड़े का भोग लगाया जाता है इसके साथ भक्तगण मदिरा सिगरेट चरस गांजा आदि मादक पदार्थ बाबा को भोग स्वरूप अर्पित करते हैं जिस तरह उज्जैन में बाबा भैरवनाथ मदिरा का पान करते हैं ठीक उसी तरह कानपुर में मां तपेश्वरी देवी मंदिर के बाहर स्थित बाबा भैरवनाथ भी भक्तों द्वारा चढ़ाए गए मदिरा और सिगरेट के भोग का ग्रहण करते हैं।

शिवमंगल (मंदिर के मुख्य पुजारी)

अमरनाथ गुप्ता (दुकानदार)

दर्शन करने आए भक्त जनों की

महेंद्र नाथ तिवारी (पुजारी भैरवनाथ मंदिर)

रिपोर्टर : नीरज तिवारी

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