महोबा : लाठियों की थाप पर मौनियों ने खेली दीवाली…
बुंदेली लोक संस्कृति का अपना अलग ही अंदाज और महत्व है। दीपावली के पावन पर्व पर यहां के कलाकार अद्भुत कला का प्रदर्शन करते हैं। दिवारी नृत्य व पाई डंडा की प्रस्तुति के दौरान दो पक्षों में लाठियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती है । इस अनूठी कला में 10 वर्ष के बालक से लेकर 60 वर्ष के वृद्घ भी लाठियां चलाते नजर आते हैं। उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में दिवाली पर्व पर कई ग्रामीण अंचल व सार्वजनिक स्थलों पर दिवारी नृत्य का आयोजन किया गया है।
जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटी रही । दिवारी नृत्य में पारंगत कलाकारों ने अपनी अनूठी कला का प्रदर्शन किया । अलग-अलग टोलियों ने विभिन्न मंदिरों का भ्रमण किया गया । बुंदेली कलाकारों द्वारा एक दूसरे पर लाठी चलाने और बचाव करने का अंदाज देखते ही बनता था ।
इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी बताते हैं कि जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उंगली में उठाया था तो सारे गोकुलवासी पहाड़ के नीचे खड़े अपनी-अपनी लाठी डंडों से पहाड़ टेके रहे थे । आठ दिन बाद जब बारिश बंद हुई तो दिवारी नृत्य का प्रदर्शन किया गया था। भगवान कृष्ण की 16 कलाओं में से एक नृत्य कला यह भी है। इससे भगवान कृष्ण की अराधना योग के द्वारा की जाती है और इंसानी शरीर निरोगी रहता है।
दिवारी नृत्य का उद्देश्य यह भी है कि युवा लाठी चलाना सीखे। बुंदेलखंड की इस अनूठी परंपरा दिवारी नृत्य व पाई डंडा की प्रस्तुति का दीदार पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कर चुके हैं। 24 फरवरी 2020 को अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे आगरा में उनके स्वागत के लिए संस्कृति निदेशालय लखनऊ ने जिले के लखनलाल यादव एंड पार्टी को दिवारी नृत्य व पाई डंडा के लिए आमंत्रित किया था।
आपको बता दें की पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने बुंदेली कलाकारों द्वारा इस बुंदेली लोक कला का प्रदर्शन किया गया था । जिसकी जमकर सराहना हुई थी। 13 नवंबर को अयोध्या में होने वाले दीपोत्सव कार्यक्रम में भी यहां के कलाकारों को दिवारी नृत्य के लिए आमंत्रित किया गया था ।
दिवाली पर्व के दौरान दिवारी नृत्य के साथ मोनिया मोरपंखों के साथ प्रदर्शन करते हैं। सुबह से ही मोनिया गाय की पूजा करने के बाद हाथों में मोर पंख लेकर निकल पड़ते हैं और पांच से सात गांव का पैदल भ्रमण करते हैं। इस दौरान रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों के दर्शन कर प्रसाद चढ़ाने की परम्परा निभाई जाती है। पूरे दिन मोनिया मौन व्रत रखकर पूजा अर्चना करते हैं।
जिसके चलते परेवा के दिन जिले के सभी मंदिर मोनियों की आवाजाही से गुलजार रचतें हैं ।दिवारी गीत दिवाली के दूसरे दिन उस समय गाये जाते हें जब मोनिया मौन व्रत रख कर गाँव- गाँव में घूमते हें । दीपावली के पूजन के बाद मध्य रात्रि में मोनिया -व्रत आरंम्भ करने की परम्परा निभाई जाती है । गाँव के किसान और पशु पालक तालाब नदी में नहाने के बाद सज-धज कर मौन व्रत की सुरूआत करतें हैं। इसी कारण इन्हे मोनिया भी कहा जाता है । द्वापर युग से यह परम्परा आज तक निरन्तररूप से निभाई जा रही है।
रिपोर्ट : – रितुराज रजावत
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