जाने, भगवान राम के सबसे बड़े भक्त ने आखिर क्यों किया था श्रीकृष्ण से युद्ध ?
भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कौन नहीं जानता है. उन्होंने तमाम असुरों का संहार करके धरती को उनके आतंक से बचाया और ऋषि-मुनियों की रक्षा की थी. बाल्यावस्था से उनके चमत्कार ने सबको चौंका दिया था. लेकिन क्या आपको पता है कि, रामायण काल के जाम्बवंत से भगवान श्रीकृष्ण का भयंकर युद्ध हुआ था. इस युद्ध के पीछे क्या वजह थी, और क्यों श्रीराम के भक्त से श्रीकृष्ण को लड़ाई लड़नी पड़ी थी
भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कौन नहीं जानता है. उन्होंने तमाम असुरों का संहार करके धरती को उनके आतंक से बचाया और ऋषि-मुनियों की रक्षा की थी. बाल्यावस्था से उनके चमत्कार ने सबको चौंका दिया था. लेकिन क्या आपको पता है कि, रामायण काल के जाम्बवंत से भगवान श्रीकृष्ण(Lord Krishna) का भयंकर युद्ध हुआ था. इस युद्ध के पीछे क्या वजह थी, और क्यों श्रीराम के भक्त से श्रीकृष्ण को लड़ाई लड़नी पड़ी थी.
जाम्बवंत के बारे में कहा जाता है कि, वो अमर हैं और उनकी कभी मृत्यु नहीं होगी. वो आज भी धरती पर कहीं हैं. दरअसल ये युद्ध एक मणि के लिए हुआ था. जिसकी वजह से भगवान श्रीकृष्ण(Lord Krishna) पर चोरी का आरोप लगा था. ये मणि श्रीकृष्ण(Lord Krishna) की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी जिसे सूर्यदेव ने उन्हें तोहफे में दी थी. सत्राजित ने इस मणि को देवघर में रख दिया था लेकिन वहां से एक दिन अचानक गायब हो गई. जिसका इल्जाम भगवान श्रीकृष्ण पर लगा. चोरी का आरोप लगने से आहत श्रीकृष्ण ने प्रण किया कि, जल्द ही मणि को ढूंढ कर सत्राजित को वापस देंगे.
लेकिन ये मणि सत्राजित का भाई प्रसेनजित पहनकर आखेट के लिए चला गया था. जब प्रसेनजित जंगल से गुजर रहा था तभी शेर ने उसपर हमला बोल दिया और उसकी मौत हो गई. शेर ने उसकी मणि को अपने पास रख लिया. जब इस मणि को जाम्बवंत ने देखा तो उन्होंने शेर की हत्या करके मणि छीन ली और अपने गुफा में लेकर चले गए.
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जब श्रीकृष्ण(Lord Krishna) मणि खोजते हुए जंगल में पहुंचे और जाम्बवंत की गुफा में चले गए. श्रीकृष्ण ने वहां पर मणि देखी तो उसे उठाने के लिए आगे बढ़े लेकिन जाम्बवंत ने देने से इंकार कर दिया. जिसके बाद दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया.
ये युद्ध काफी देर तक चला और जब जाम्बवंत हारने लगे तो उन्होंने अपने आराध्य श्रीराम से मदद मांगी. उनकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण(Lord Krishna) को श्रीराम के रूप में सामने आना पड़ा. जिसे देखकर जाम्बवंत तुरंत माफी मांगने लगे. और मणि वापस कर दी. श्रीकृष्ण ने मणि ले जाकर सत्राजित को देने के बजाय अक्रूरजी को दे दी और कहा कि, इसकी शोभा आप जैसे संयमी के पास ही है.
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