वो अद्भुत मंदिर, जहां होती है कुत्ते की पूजा, वजह जान रह जाएंगे दंग

देश में कई ऐसे अद्भुत और चमत्कारी मंदिर (Temple) हैं, जिनके पीछे की सच्चाई आज तक कोई नहीं जान सका। वैज्ञानिक भी उन चमत्कारों की पीछे छुपा रहस्य नहीं जान सके।

देश में कई ऐसे अद्भुत और चमत्कारी मंदिर (Temple) हैं, जिनके पीछे की सच्चाई आज तक कोई नहीं जान सका। वैज्ञानिक भी उन चमत्कारों की पीछे छुपा रहस्य नहीं जान सके। ऐसे कई मंदिर हैं, जहां लोगों का उन चमत्कारों से सामना होता है, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की हो।

देश में हैं कई चमत्कारिक मंदिर (Temple)

यही वजह है कि ऐसे मंदिरों के चमत्कार से लोगों की आस्था जुड़ जाती है और वह पवित्र स्थल प्रसिद्ध हो जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर (Temple) के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे। इस चमत्कारिक मंदिर के बारे में जानने के लिए आपकी जिज्ञासा और भी बढ़ जाएगी।

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भारत के इस मंदिर (Temple) में होती है कुत्ते की पूजा

भारत में एक ऐसा मंदिर (Temple) भी है, जिसमें कुत्ते की पूजा होती है। इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यहां की अजीबोगरीब मान्यता और इस मंदिर के निर्माण की कहानी जानकर आप भी दंग रह जाएंगे।

भगवान शिव के साथ होती है कुत्ते की पूजा

जानकारी के मुताबिक, छत्तीसगढ़ के रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के खपरी गांव में कुकुरदेव मंदिर (Temple) स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है, जबकि उसी के बगल में एक शिवलिंग भी स्थापित है। इसी वजह से सावन के महीने में इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है। जिस प्रकार लोग शिवमंदिरों में भगवान शिव के साथ नंदी की पूजा करते हैं, वैसे ही शिव जी के साथ-साथ कुत्ते (कुकुरदेव) की भी पूजा करते हैं।

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मंदिर (Temple) के गर्भगृह में स्थापित है कुत्ते की प्रतिमा

आंपको बता दें कि यह मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है। गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा के अलावा मंदिर (Temple) के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है।

नहीं होता है कुत्ते के काटने का खतरा

ऐसी मान्यता है कि कुकुरदेव का दर्शन करने से न कुकुरखांसी होने का डर रहता है और न ही कुत्ते के काटने का खतरा रहता है।

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वफादार कुत्ते की याद में बनाया गया था कुकुरदेव मंदिर (Temple)

दरअसल, कुकुरदेव मंदिर (Temple) एक स्मारक है, जिसे एक वफादार कुत्ते की याद में बनाया गया था। कहा जाता है कि सदियों पहले इस गांव में एक बंजारा अपने परिवार के साथ आया था, जिसके साथ एक कुत्ता भी था। गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो बंजारे ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया, लेकिन वो कर्ज वो वापस नहीं कर पाया। ऐसे में उसने अपना वफादार कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया।

कुत्ते की वफादारी

लोगों का कहना है कि एक बार साहूकार के घर चोरी हो गई। चोरों ने सारा माल जमीन के नीचे गाड़ दिया, यह सोचकर कि बाद में उसे निकाल लेंगे, लेकिन साहूकार के लूटे हुए माल के बारे में कुत्ते को पता चल गया और वो साहूकार को वहां तक ले गया, जहां सारा माल जमीन में गाड़ दिया गया था। कुत्ते की बताई जगह पर साहूकार ने खुदाई कराई तो उसे अपना सारा माल वापस मिल गया। कुत्ते की वफादारी से खुश होकर साहूकार ने उसे आजाद कर देने का निर्णय लिया। इसके लिए साहूकार ने बंजारे के नाम एक चिट्ठी लिखी और कुत्ते के गले में लटकाकार उसे उसके मालिक के पास भेज दिया।

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स्मारक को लोगों ने बनाया मंदिर

वहीं, जब कुत्ता अपनी पुराने मालिक बंजारे के पास पहुंचा, उसे लगा कि वो साहूकार के पास से भागकर आया है, इसलिए उसने गुस्से में आकर कुत्ते को खूब पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई। हालांकि, बाद में बंजारे ने कुत्ते के गले में लटकी साहूकार की चिट्ठी पढ़ी तो उसके होश उड़ गए। बंजारे को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। उसके बाद उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और उस पर स्मारक बनवा दिया। बाद में स्मारक को लोगों ने मंदिर का रूप दे दिया, जिसे लोग आज कुकुर मंदिर के नाम से जानते हैं।

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