जानें, आखिर क्यों एक शिकारी के हाथों हुई थी श्रीकृष्ण की मौत, वजह कर देगी हैरान
भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु कैसे हुई? मृत्यु के बाद क्या श्रीकृष्ण ने अपना शरीर छोड़ दिया और किसी अन्य शरीर को धारण कर लिया, क्योंकि वो तो भगवान विष्णु के अवतार थे।
भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु कैसे हुई? मृत्यु के बाद क्या श्रीकृष्ण ने अपना शरीर छोड़ दिया और किसी अन्य शरीर को धारण कर लिया, क्योंकि वो तो भगवान विष्णु के अवतार थे। उनके शरीर का दाह संस्कार किसने किया? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब जानने की जिज्ञासा हर किसी के मन में होती है। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर भगवान होते हुए भी श्रीकृष्ण की मृत्यु कैसे हो गई?
अपना देह त्याग दिया यानी कि उनकी मृत्यु हो गई
कहते हैं कि भगवान कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व में हुआ था। वैसे तो श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था, लेकिन उनका बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगांव, बरसाना और द्वारिका आदि जगहों पर बीता। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने 36 वर्षों तक द्वारिका पर राज किया। इसके बाद उन्होंने अपना देह त्याग दिया यानी कि उनकी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि उस समय उनकी आयु 125 वर्ष थी।
कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद जब दुर्याोधन का अंत हो गया, तो उसकी माता गांधारी बहुत दुखी हो गई थीं। वह अपने बेटे के शव पर शोक व्यक्त करने के लिए रणभूमि में गई थीं और उनके साथ भगवान कृष्ण और पांडव भी गए थे। गांधारी अपने पुत्रों की मृत्यु से इतनी दुखी हुईं कि उन्होंने भगवान कृष्ण को 36 वर्षों के बाद मृत्यु का शाप दे दिया। ये सुनकर पांडव तो चकित रह गए, लेकिन भगवान कृष्ण तनिक भी विचलित न हुए और मुस्कुराते हुए अपने ऊपर लगे अभिशाप को स्वीकार कर लिया और ठीक इसके 36 वर्षों के बाद उनका मृत्यु एक शिकारी के हाथों हो गई।
भागवत पुराण के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को एक शरारत सूझी। वो एक स्त्री का वेश धारण कर अपने दोस्तों के साथ ऋषि-मुनियों से मिलने गए। स्त्री के वेश में सांब ने ऋषियों से कहा कि वो गर्भवती है। जब उन यदुवंश कुमारों ने इस प्रकार ऋषियों को धोखा देना चाहा तो वो क्रोधित हो गए और उन्होंने स्त्री बने सांब को शाप दिया कि तुम एक ऐसे लोहे के तीर को जन्म दोगी, जो तुम्हारे कुल और साम्राज्य का विनाश कर देगा।
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ऋषियों का शाप सुनकर सांब बहुत डर गए। उन्होंने तुरंत ये सारी घटना जाकर उग्रसेन को बताई, जिसके बाद उग्रसेन ने सांब से कहा कि वे तीर का चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित कर दें, इस तरह उन्हें उस शाप से छुटकारा मिल जाएगा। सांबा ने सब कुछ उग्रसेन के कहे अनुसार ही किया। साथ ही उग्रसेन ने ये भी आदेश पारित कर दिया कि यादव राज्य में किसी भी प्रकार की नशीली सामग्रियों का ना तो उत्पादन किया जाएगा और ना ही वितरण होगा।
बलराम के हल का अदृश्य हो जाना शामिल है
कहा जाता है कि इस घटना के बाद द्वारका के लोगों ने कई अशुभ संकेतों का अनुभव किया, जिसमें सुदर्शन चक्र, श्रीकृष्ण का शंख, उनका रथ और बलराम के हल का अदृश्य हो जाना शामिल है। इसके अलावा वहां अपराधों और पापों में बढ़ोतरी होने लगी। द्वारिका में चारों ओर अपराध और पाप का माहौल व्याप्त हो गया।
ये देखकर श्रीकृष्ण बहुत दुखी हो गए और उन्होंने अपनी प्रजा से ये जगह छोड़कर प्रभास नदी के तट पर जाकर अपने पापों से मुक्ति पाने को कहा। इसके बाद सबलोग उनकी बात मानकर प्रभास नदी के तट पर गए, लेकिन वहां जाकर सभी मदिरा के नशे में चूर हो गए और एक दूसरे से बहस करने लगे। इसके बाद उनकी बहस ने लड़ाई का रूप धारण कर लिया और वो आपस में ही लड़ने-मरने लगे। इस तरह आपस में ही लड़कर सभी लोग मारे गए।
कहते हैं कि इस घटना के कुछ दिनों बाद ही बलराम की भी मृत्यु हो गई। भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण एक दिन एक पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे, तभी जरा नामक एक बहेलिए ने श्रीकृष्ण को हिरण समझकर दूर से उनपर तीर चला लिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। आपको बता दें कि ऋषि द्वारा कृष्ण के पुत्र सांब को दिए शाप के अनुसार, श्रीकृष्ण को लगे तीर में उसी लोहे के तीर का अंश था, जो सांब के पेट से निकला था और जिसे उग्रसेन ने चूर्ण बनवाकर नदी में प्रवाहित करा दिया था। इस तरह ऋषि के शाप के अनुसार समस्त यदुवंशियों का नाश भी हो गया था और गांधारी के शाप के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण के 36 वर्ष भी पूरे गए थे।
साभार
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