व्यंग :- सिस्टम साहब और पूरा साल……खाकी ने लिया धन लक्ष्मी यंत्र का सहारा बेगम बाहर बादशाह अंदर के शौकीनों को पकड़कर मनाई गई हैपी दीवाली

– दीपावली की पूर्व संध्या पर खाकी ने लिया धन लक्ष्मी यंत्र का सहारा बेगम बाहर बादशाह अंदर के शौकीनों को पकड़कर मनाई गई हैपी दीवाली
– धड़ पकड़ अभियान बना शोशल कमाई का आसान जरिया कागजी गुलाबी गांधी दिखाने पर छोड़े गए चिड़ी के गुलाम
– लाखों की फड़ से हजारों बरामद कर कुछ बन गए अमरेंद्र बाहुबली आख़िर वो थे कौन जो दे रहे थे उन्हें कट्टपा वाला ज्ञान
– सुप्रसिद्ध कलाकार ने भी सटक लगाकर गटका कटोरा भर के माखन सिस्टम में न आने वालों को सुनाया गया नि तेरा हैप्पी बड्डे नी वाला सॉन्ग
– दिवाली के शुभ उपलक्ष्य पर कार्यखांसों ने निकला अच्छे खांसों का दीवाला मुन्ना मर्दानी कलीम खुच्चड़ और सलीम पत्ती से बटोरी गई गुलाबी पत्ती

महोबा, (रितुराज राजावत ) : चीनी को दोबारा जमाकर गन्ना बनाने का हुनर सिर्फ खाकी वर्दी के पास है बांकी तो सब मोह माया मानी जानी चाहिए । वो किसी की भी ले सकती है और किसी को भी दे सकती है कृपया इसको अलग भावना से तनिक भी न लें क्योंकि खाकी की चाय सभी के नसीब में नही आती है अगर वो बोले की लोगे तो तत्काल ले लेनी चाहिए क्योकि जब हमारे छप्पन इंची छाती वाले चाय पर चर्चा कर सकतें हैं तो निश्चित रूप से आप भी बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर के मौलिक अधिकारों का उपभोग करने के लिए पर्याप्त भी हैं और स्वतंत्र भी।

अब रही बात देने की तो विशेष आशीर्वाद विशेष परिस्थितियों में ही प्राप्त होता है अगर वो आपसे प्रसन्न होकर एग्राचित मुद्रा में आपको आशीर्वाद दे रहें हैं या दे दें तो अंततः विजय आपकी ही सुनिश्चित है फिर चाहे वो अनैतिक ही क्यों न हो । ये बात ठीक उसी तरह लेनी चाहिए जैसे कि बाबा बहुत दानी हैं बाबा सब को देतें हैं । कुल मिलाकर कहें तो अनिश्चितता को दायरे में निश्चित रूप से सब कुछ सही चल रहा है क्योंकि राम राज्य की परिकल्पना करने मात्र पर मस्तिष्क में समस्त विचार स्वतः ही सात्विक आने लगतें हैं ।

वो देने में भी सुखी हैं और वो लेने में भी सुखी है दोनों तरफ से सुख भोगने का समस्त कार्यभार संभालने वाले ऐसे कलाकार आज के युग में मिलना अत्यंत कठिन और जटिल कार्य माना और समझा जाना चाहिए । बाबा के राज में उन्ही के ही नुमाइंदे अनलोम विलोम करने में उसी तरह से मदमस्त हो चुके हैं जैसे की चीन ने पाकिस्तान में अपना पताका बुलन्द कर रखा है ।

वीर भूमि कही जाने वाली इसी धरती में अभियान के दौरान एक साल बाद मिली सफलता का इतिहास उसी तरह से लिया जाना चाहिए जैसे की कटप्पा ने बाहुबली को क्यो मारा का रहस्य जानने के लिए एक वर्ष से अधिक का लम्बा अंतराल । कोरोना काल के दौरान देश की अर्थव्यवस्था का भार अपने कंधों पर उठाने वाले बेवड़ा उर्फ पियक्कड़ एशोसिएशन के अति विशिष्ट पदाधिकारी भी खाकी की जबरजस्ती से अछूते नही दिखे ।

अभियान के नाम पर थाने चलो आंदोलन के तहत अर्थ व्यवस्था को सुचारु रखने वाले इस विशेष वर्ग को भी नही बख्शा गया । जबरन उठाओ और ले के आओ कार्यक्रम के दौरान पचास की पंगत के दरमियान बैठाले गए हिलो डुलो और गिरो जैसी असीम क्षमता का कुशल प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषता के धनी इन व्यक्तियों से स्पेशल चार्ज लेना न तो किसी दृष्टिकोण उचित कहा जा सकता है और न ही माना । कुल मिला कर कहें तो दिवाली ने दीवाला निकाल दिया है………..

रिपोर्ट :- रितुराज राजावत

Related Articles

Back to top button