पूजा से पहले नहीं किया यह काम तो लगेगा पाप, जरूर जान लीजिए

हर घर में, आपके पसंदीदा देवता की पूजा की जाती है ताकि घर में सुख और समृद्धि आए।

हर घर में, आपके पसंदीदा देवता की पूजा की जाती है ताकि घर में सुख और समृद्धि आए। उपासना को किसी की इच्छाओं को पूरा करने की भारतीय परंपरा का एक अभिन्न अंग माना जाता है। लोग पूजा करते हैं, लेकिन पूजा के दौरान की गई कुछ गलतियाँ अपेक्षित परिणाम नहीं लाती हैं। हां, पूजा करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए, वरना इसका उल्टा असर होगा। आओ जानते हैं कि पूजा से पहले ऐसा कौन सा कार्य है जो हमें करना जरूरी है।

ये भी पढ़ें – क्या आप जानते है बसपा सुप्रीमो मायावती का पूरा नाम क्या है? देखते हैं कितने लोग होते है पास

एक समय था जब लोग संध्यावंदन करते थे लेकिन वक्त बदला और लोगों ने पूजा करना शुरू कर दिया। संध्यावंदन का महत्व पीछे खो गया और लोग अपनी भावनाओं को पूजा एवं आरती में व्यक्त करने लगे। संध्यावंद संधिकाल में किया जाता था। आठ समय की संधि में से दो समय की संधि अर्थात प्रात:काल और संध्याकाल की संधि बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी लेकिन अब इस समय संध्यावंदन को छोड़कर लोग पूजा और आरती करते हैं। हालांकि इसे करने में भी कोई बुराई नहीं है।
वेदज्ञ और ईश्‍वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्‍यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं। पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं। तब सिद्ध हुआ की संध्योपासना या हिन्दू प्रार्थना के चार प्रकार हो गए हैं- 1.प्रार्थना-स्तुति, 2.ध्यान-साधना, 3.कीर्तन-भजन और 4.पूजा-आरती। व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है। लेकिन ऐसा या वैसा करने के पहले कुछ जरूरी नियम जान लेना भी जरूरी है।

शौच : शौच अर्थात शुचिता, शुद्धता, शुद्धि, विशुद्धता, पवित्रता और निर्मलता। शौच का अर्थ शरीर और मन की बाहरी और आंतरिक पवित्रता से है। शौच का अर्थ है अच्छे से मल-मूत्र त्यागना भी है। शौच के दो प्रकार हैं- बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य का अर्थ बाहरी शुद्धि से है और आभ्यन्तर का अर्थ आंतरिक अर्थात मन वचन और कर्म की शुद्धि से है। जब व्यक्ति शरीर, मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहता है तब उसे स्वास्थ्‍य और सकारात्मक ऊर्जा और देवताओं के आशीर्वाद का लाभ मिलना शुरू हो जाता है।

स्नान : शारीरिक शुद्धता भी दो प्रकार की होती है- पहली में शरीर को बाहर से शुद्ध किया जाता है। इसमें मिट्टी, उबटन, त्रिफला, नीम आदि लगाकर निर्मल जल से स्नान करने से त्वचा एवं अंगों की शुद्धि होती है।
दूसरी शरीर के अंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए योग में कई उपाय बताए गए है- जैसे शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती, कुंजल, गजकरणी, गणेश क्रिया, अंग संचालन आदि।
उपरोक्त तरीके से नहीं स्नान करना चाहते हैं तो सामान्य तरीके से स्नान करते वक्त आप अपने सभी 10 छिद्रों को अच्छे से साफ करें। 10 छिद्रों में 2 आंखें, नाक के 2 छिद्र, कान के 2 छिद्र, मुख, नाभि और गुप्तांग के मिलाकर कुल 10 छिद्र होते हैं।

धोती : आप कुछ भी करें, संध्यावंदन करें, पूजा या आरती करें लेकिन शरीर पर मात्र एक बगैर सिला सफेद कपड़ा ही धारण करके यह कार्य संपन्न करें, क्योंकि यही प्राचीनकाल से चला आ रहा नियम है।

शुद्धि और आचमन : मंदिर में प्रवेश के पूर्व पुन: एक बार शरीर की शुद्धि की जाती है। शौचादि से निवृत्ति होने के बाद पूजा, प्रार्थना के पूर्व आचमन किया जाता है। मंदिर में जाकर भी सबसे पहले आचमन किया जाता है। संध्या वंदन के आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। बहुत से लोग मंदिर में शौच या शुद्धि किए बगैर चले जाते हैं जो कि अनुचित है। प्रात्येक मंदिर के बाहर या प्रांगण में नल जल की उचित व्यवस्था होनी चाहिए जहां व्यक्ति बैठकर अच्छे से खुद को शुद्ध कर सके। जल का उचित स्थान नहीं है तो यह मंदिर दोष में गिना जाएगा।

  • हमें फेसबुक पेज को अभी लाइक और फॉलों करें @theupkhabardigitalmedia 

  • ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @theupkhabar पर क्लिक करें।

  • हमारे यूट्यूब चैनल को अभी सब्सक्राइब करें https://www.youtube.com/c/THEUPKHABAR

Related Articles

Back to top button