चीन के लिए ताइवान है दुखती रग? चीन के खिलाफ भारत का यह है मेगा प्लान

वास्‍तविक नियंत्रण रेखा पर चीन से जारी तनाव को देखते हुए अब भारत ने भी उसको अलग-अलग मोर्चों पर जवाब देने की तैयारी कर ली है। इसी कड़ी में भारत-जापान-अमेरिका के अलावा इस बार आस्‍ट्रेलिया भी शामिल हो रहा है।

नई दिल्‍ली: वास्‍तविक नियंत्रण रेखा पर चीन से जारी तनाव को देखते हुए अब भारत ने भी उसको अलग-अलग मोर्चों पर जवाब देने की तैयारी कर ली है। इसी कड़ी में भारत-जापान-अमेरिका के अलावा इस बार आस्‍ट्रेलिया भी शामिल हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ चीन को सबक सिखाने के मकसद से ही भारत ने ताइवान से भी नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी है। ताइवान को चीन अपना हिस्‍सा बताता है इसलिए ये उसकी दुखती रग भी है। माना जा रहा है कि भारत ऐसा करके कहीं न कहीं चीन को साधने की कोशिश कर रहा है।

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हालांकि जवाहरलाल नेहरू की प्रोफेसर अलका आचार्य ऐसा नहीं मानती हैं। उनका कहना है कि चीन को साधने के लिए ताइवान का इस्‍तेमाल करना काफी हद तक नामुमकिन है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि ताइवान को भारत एक आजाद देश के तौर पर मान्‍यता नहीं देता है। इसके अलावा भारत की चीन पर आत्‍मनिर्भरता में कोई कमी नहीं आई है। इतना जरूर हो सकता है कि भारत अपनी आर्थिक जरूरतों को कुछ हद तक चीन से ताइवान पर शिफ्ट कर दे। आपको बता दें कि भारत वर्तमान में केवल आईटी सेक्‍टर में ही ताइवान से नजदीकी बढ़ा रहा है।

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इस सेक्‍टर में ताइवान एक बड़ा नाम है। उनका कहना है कि इस सेक्‍टर में चीन के निवेश या उस पर आत्‍मनिर्भरता को पहले से ही धीरे-धीरे कम किया जा रहा है। भारत ये भी चाहता है कि आईटी सेक्‍टर के कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में चीन के निवेश को कम किया जाए। उनके मुताबिक भारत वन चाइना पॉलिसी में किसी भी तरह का बदलाव न करते हुए यदि आगे बढ़ता है तो चीन को शायद इससे कोई परेशानी नहीं होगी।

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