पितृपक्ष में कैसे करें श्राद्ध, जानिए तर्पण करने की विधि…
Shraddha in Pitripaksh : पितृपक्ष की शुरुआत 1 सितंबर से हो रही है. कल श्राद्ध पूर्णिमा है. पितृ पक्ष का समय पूरी तरह से पितरों को समर्पित है. श्राद्ध में पितरों का तर्पण करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रों में श्राद्ध का बहुत महत्व माना गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं.
- हर साल पितृपक्ष पर पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है.
- इन दिनों में पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान मुख्य होते हैं.
- ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है.
- श्राद्ध के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है.
- हालांकि इस साल मोक्षदायिनी ‘गया’ की धरती पर पिंडदान नहीं किया जा सकेगा.
- कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर बिहार सरकार ने ये फैसला लिया है.
- इस साल आप सभी तरह के कर्मकांड व दान आदि अपने घर पर कर सकते हैं.
- आइए जानते है पितरों का तर्पण करने की विधि और इससे जुड़ी पूरी जानकारी…
दूध, जौ, चावल और गंगाजल से होता है तर्पण”-
पितृ पक्ष के दौरान हर दिन तर्पण किया जाना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है.
पितृ पक्ष का महत्व:-
- हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना जाता है.
- हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाना बेहत जरूरी माना जाता है.
- माना जाता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है.
- वहीं ये भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है.
- ये भी माना जाता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरो को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं.
- इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी व नाराज हो जाती है.
पितृपक्ष के दौरान क्या करें:-
- जब भी श्राद्ध पक्ष में अपने परिजनों का पिंडदान या तर्पण जैसा अनुष्ठान किया जाता।
- तब इसमें परिवार के किसी बड़े सदस्यों को करना चाहिए.
- श्राद्ध पक्ष के दौरान हर दिन सुबह जल्दी स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर पितरों को श्राद्ध दे.
- पितरों का तर्पण करते समय हाथ में कुश घास से बनी अंगूठी पहनना चाहिए.
पितृ पक्ष में न करें ये काम
शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में किए गए तर्पण और श्राद्ध से पितरों को मुक्ति मिलती है इसलिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध का कार्य विधि पूर्वक और श्रध्दा के साथ करना चाहिए. अगर आपको अपने पूर्वज की मृत्यु की तिथि याद नहीं है तो भी पितृ पक्ष के आखिरी दिन तर्पण कर सकते हैं और ब्राह्मणों को भोजन करा सकते हैं.
क्यों किया जाता है श्राद्ध
श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, इसके साथ ही इस दिन दान देने की भी परंपरा है. श्राद्ध करने से पितृदोष समाप्त होते हैं. आपकी कुंडली में पितृदोष है तो यह दोष समाप्त होता है. जिससे रोग, धन संकट, कार्य में समस्याएं दूर होती हैं. श्राद्ध करने से परिवार में आपसी कलह और मनमुटाव का नाश होता है. घर के बड़े सदस्यों का सम्मान बढ़ता है. इस दौरान किसी को अपशब्द भी नही कहने चाहिए.
पिंड दान का तरीका
पितृ पक्ष में पिंडदान का भी बेहद महत्व होता है, इसमें लोग चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित करते हैं. इसके साथ ही काला तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है.
जानें क्या होता है पितृदोष
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है. श्राद्धकर्म-शास्त्र में उल्लिखित है. श्राद्धम न कुरूते मोहात तस्य रक्तम पिबन्ति ते अर्थात् मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बंधियों का रक्त-पान करते हैं. उपनिषद में भी श्राद्धकर्म के महत्व का प्रमाण मिलता है- देवपितृकार्याभ्याम न प्रमदितव्यम अर्थात् देवता और पितरों के कार्यों में आलस्य मनुष्य को कदापि नहीं करना चाहिए.
इस मंत्र का जाप कर पितरों को तीन अंजलि जल अवश्य दें:-
- ब्रह्मादय:सुरा:सर्वे ऋषय:सनकादय:।
- आगच्छ्न्तु महाभाग ब्रह्मांड उदर वर्तिन:।।
- जल देते समय इस मंत्र को जरूर पढ़ें
- ॐआगच्छ्न्तु मे पितर इमम गृहणम जलांजलिम।।
- वसुस्वरूप तृप्यताम इदम तिलोदकम तस्मै स्वधा नम:।।
अपने पूर्वजों को ऐसे करें श्राद्ध:-
पितृपक्ष में पितृतर्पण एवं श्राद्ध करने का विधान है. श्राद्ध करने के दौरान सर्वप्रथम हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें. इसके बाद इस मंत्र को पढ़े. “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।” इसके बाद पितरों का आह्वान इस मंत्र से करना चाहिए.
ऐसे करने पर पितरों का मिलता है आशीर्वाद:-
श्राद्ध की 15 दिनों तक गाय, कुत्ते और कौवे को लगातार भोजन जरूर दें. आप गाय को हरा चारा, कुत्ते को दूध और कौवे को रोटी दे सकते हैं. ऐसा करने से भी पितरों का आशीर्वाद आपको मिलेगा.
कैसे किया जाता है पितृ तर्पण:-
जिस तिथि को आपके पितृ देव का श्राद्ध हो उस दिन बिना साबुन लगाए स्नान करें, फिर बिना प्याज-लहसुन डाले अपने पितृ देव का पसंदीदा भोजन या आलू, पुड़ी और हलवा बनाकर एक थाल में रखें. इसके साथ पानी भी रखें. इसके बाद हाथ में पानी लेकर तीन बार उस थाली पर घूमाएं. पितरों का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें. साथ में दक्षिणा रखकर किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को दान दें. इस दिन तेल लगाना, नाखुन काटना, बाल कटवाना और मांस-मदिरा का सेवन करना मना होता है.
पिंड दान की विधि:-
पितृ पक्ष में पिंडदान का भी महत्व है. श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराया जाता है. मान्यता के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है. इसके साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है. इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है. कहा जाता है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करना चाहिए.
जानें कब-कब है श्राद्ध तिथि :-
- पहला श्राद्ध (पूर्णिमा श्राद्ध) -1 सितंबर 2020
- दूसरा श्राद्ध – 2 सितंबर
- तीसरा श्राद्ध – 3 सितंबर
- चौथा श्राद्ध – 4 सितंबर
- पांचवा श्राद्ध – 5 सितंबर
- छठा श्राद्ध – 6 सितंबर
- सांतवा श्राद्ध – 7 सितंबर
- आंठवा श्राद्ध – 8 सितंबर
- नवां श्राद्ध – 9 सितंबर
- दसवां श्राद्ध – 10 सितंबर
- ग्यारहवां श्राद्ध – 11 सितंबर
- बारहवां श्राद्ध – 12 सितंबर
- तेरहवां श्राद्ध – 13 सितंबर
- चौदहवां श्राद्ध – 14 सितंबर
- पंद्रहवां श्राद्ध – 15 सितंबर
- सौलवां श्राद्ध – 16 सितंबर
- सत्रहवां श्राद्ध – 17 सितंबर (सर्वपितृ अमावस्या)
पितृ पक्ष में श्राद्ध कैसे करें:-
वैदिक धर्म के अनुसार पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाना चाहिए. मान्यता है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करना श्रेष्ठ है. वहीं यदि अकाल मृत्यु होने पर श्राद्ध चतुर्दशी के दिन श्राद्ध किया जाना चाहिए. साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है. इसके अतिरिक्त जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए.
श्राद्ध कर्म क्यों किया जाता है:-
श्राद्ध कर्म करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है. पितृ पक्ष में दान देने की भी परंपरा है. श्राद्ध करने से दोष समाप्त होते हैं. यदि जन्म कुंडली में पितृदोष है तो यह दोष समाप्त होता है. जिससे रोग, धन संकट, कार्य में बाधा आदि समस्याएं दूर होती हैं. श्राद्ध करने से परिवार में आपसी कलह और मनमुटाव का नाश होता है. घर के बड़े सदस्यों का सम्मान बढ़ता है. पितृ पक्ष के दौरान धैर्य और चित्त को शांत रखते हुए कार्य करने चाहिए. बुराई, मास- मदिरा और गलत कार्यों से बचना चाहिए. इस दौरान किसी को अपशब्द भी नही कहने चाहिए.
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