जाने कैसे दी जाती है सनातन धर्म में साधु संतों को अंतिम विदाई
हिन्दू धर्म में जब एक साधू संत की मृत्यु होती है तो उनका अंतिम संस्कार बाकी धर्मों के हिसाब से कुछ अलग तरीके से किया जाता है
महंत नरेंद्र गिरि को आज प्रयागराज में अंतिम विदाई दी गई । हिन्दू धर्म में जब एक साधू संत की मृत्यु होती है तो उनका अंतिम संस्कार बाकी धर्मों के हिसाब से कुछ अलग तरीके से किया जाता है ।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने शनिवार की शाम कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। दो दिनों के बाद महंत नरेंद्र गिरी जी को आज अंतिम विदाई दी गई। आपको बता दें की हिंदू धर्म के साधू और संतों का अंतिम संस्कार कुछ अलग तरीके से किया जाता है , और महंत गिरी तो अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत थे तो आइए जानते हैं की किस प्रकार हुआ इनका अंतिम संस्कार। महंत नरेंद्र गिरि की अंतिम यात्रा प्रयागराज में हुई। संत परम्परा के अनुसार अंतिम संस्कार उनके सम्प्रदाय के अनुसार ही तय होता है। वैष्णव संतों को ज्यादातर अग्नि संस्कार दिया जाता है, परंतु सन्यासी परंपरा के संतों के लिए तीन संस्कार बताए गए हैं।
सन्यासी परंपरा में संतों के तीन संस्कार –
इन तीन अंतिम संस्कारों में वैदिक तरीके से दाह संस्कार तो है ही इसके अलावा जल समाधि और भू-समाधि भी है। कई बार संन्यासी की अंतिम इच्छा होती है की उनके देह को जंगल में छोड़ दिया जाए तो इसके अनुसार उनके देह को जंगलों में भी छोड़ दिया जाता है।
पहले संतों को जल समाधि ही दी जाती थी । वृंदावन के प्रमुख संत देवरहा बाबा को जल समाधि दी गयी थी और अन्य कई संतों का अंतिम संस्कार भी इसी तरह हुआ। परंतु बाबा जयगुरुदेव को अंतिम विदाई दाह संस्कार के जरिए दी गई थी। इस बात पर विवाद भी हुआ था मगर तब जयगुरुदेव आश्रम के प्रमुख अनुयायियों ने कहा था कि बाबा की अंतिम इच्छा के अनुसार ही वैदिक तरीके से उनका दाह संस्कार किया जा रहा है। आपको बता दें की रामायण, महाभारत और अन्य हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भारतीय संतों को जल समाधि देने का ही जिक्र किया गया है । पहले आमतौर पर साधु संतों को जल समाधि ही दी जाती थी और यही परंपरा ही रही है की साँटूँ को जल या भू समाधि ही दी जाए परंतु नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण अब उन्हें भू समाधि यानि जमीन पर समाधि दी जाने लगी है । लेकिन वैष्णव मत में पहले भी कई बड़े संतों का अग्नि संस्कार किया गया है।
भू समाधि देने का तरीका –
भू समाधि में साधू को समाधि वाली स्थिति में बैठाया जाता है और उन्हें इसी मुद्रा में बैठा कर अंतिम विदाई दी जाती है। समाधि देते वक्त उन्हें जिस मुद्रा में बिठाया जाता है, उसे सिद्ध योग की मुद्रा कहा जाता है। आमतौर पर साधुओं को इसी मुद्रा में भू समाधि देते हैं। महंत नरेंद्र गिरि को भी भू समाधि दी गई है , उन्हें भी इसी तरह इसी मुद्रा में बैठा कर समाधि दी गई ।
साधुओं की कई जातियाँ होती हैं उन्ही में से एक होते हैं अघोरी साधु । इनका अंतिम संस्कार अलग ही होता है । ये जीवित रहते हुए ही अपना अंतिम संस्कार कर देते हैं। अघोरी साधुओं को साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले अपना अंतिम संस्कार करना होता है। अघोरी साधु बनना काफी कठिन होता है। इन्हें पूर्ण रूप से परिवार और पारिवारिक समाज से दूर रहकर शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और ये केवल साधन में लगे रहते हैं । इस दौरान ये अपने परिवार को भी त्याग देने का प्रण लेते हैं। अघोरी साधु बनने की प्रक्रिया के दौरान अपना अंतिम संस्कार करने के बाद ये अपने परिजनों के साथ साथ बाकी दुनिया के लिए भी मृत हो जाते हैं।
अन्य धर्मों के अन्य तरीके –
सभी धर्मों में उनके धार्मिक शख्सियत को उच्च दर्जा दिया जाता है परंतु अंतिम संस्कार का तरीका हर धर्म में अलग होता है या नहीं ,आईए जानते हैं । मुस्लिमों में मजहबी शख्सियत को बेशक उच्च दर्जा दिया जाता है परंतु दुनिया से अलविदा लेकर अल्लाह के पास जाने का रास्ता सबके लिए एक ही होता है, उन्हें भी सीधा लिटा कर उनकी कब्र के पास जनाज़े की नमाज़ अदा कर उन्हें दफनाया ही जाता है ।बात करें ईसाइयों की तो उनके तौरतरीके कुछ हद्द तक मुस्लिमों से मिलते जुलते होते हैं,इन में भी पादरी, बिशप और अन्य धार्मिक लोगों के शव का जुलूस निकालकर उन्हें दफनाया जाता है। वहीं पारसियों में धार्मिक गुरुओं को उनके धर्म की प्रथा की तरह ही एक खास छत पर खुला छोड़ दिया जाता है, जहां गिद्ध, चील और कौवे उन्हें खाते हैं।
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