HIV पॉज़िटिव युवक ने किया रेप, फिर कोर्ट ने सुना दिया ऐसा फैसला…

एचआईवी संक्रमित युवक द्वारा किये गये रेप के मामले में हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। साथ ही एक अहम टिप्पणी दी है

एचआईवी संक्रमित युवक द्वारा किये गये रेप के मामले में हाईकोर्ट(कोर्ट) ने अपना फैसला सुनाया है। साथ ही एक अहम टिप्पणी दी है, कोर्ट का कहना है कि एचआईवी संक्रमित युवक द्वारा किये गये रेप को हत्या नहीं माना जा सकता है। घटना साल 2012 की है जब एक युवक को सोतैली बेटी से रेप के मामले में आईपीसी सेक्शन 376 के तहत 10 साल की सजा, सेक्शन 313 यानि की बिना इजाजत लड़की का गर्भपात कराना के तहत पांच साल की सजा और सेक्शन 307 मर्डर की कोशिश में दोषी पाया गया था। साथ ही उस दौरान कहा गया था कि युवक को इस बात की जानकारी थी कि वो एचआईवी संक्रमित और उसकी इस हरकत से लड़की भी संक्रमित हो सकती है।

कोर्ट ने रद्द की सजा

इसी मामले पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने रेप की सज़ा को बरकरार रखते हुए ‘हत्या की कोशिश’ के मामले में मिली सज़ा को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर निचली अदालत के फैसले को स्वीकार कर लिया गया, तो इसका ये मतलब भी होगा कि किसी भी HIV पॉज़िटिव व्यक्ति का किसी भी सेक्शुअल एक्टिविटी में शामिल होना, फिर भले ही वो पार्टनर की मर्ज़ी से हो, IPC के सेक्शन 307 के तहत दंडनीय होगा।

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‘बार एंड बेंच’की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि इस फैसले को स्वीकार करने का ये भी मतलब होगा कि कोई स्वस्थ व्यक्ति, अपनी मर्ज़ी से HIV पॉज़िटिव व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाता है और इस बीमारी से संक्रमित हो जाता और जो कि फिर घातक साबित होती, तो क्या उसे आत्महत्या कहा जाएगा? ऐसे में अगर HIV पॉज़िटिव पार्टनर मर्डर का दोषी नहीं होता, तो IPC के सेक्शन 307 के तहत ‘आत्महत्या के लिए उकसाने’ का दोषी हो जाता.

हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को वैज्ञानिक डाटा पर आधारित न होकर, अनुमान और विचार पर आधारित होना बताया. कहा-

“ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर प्रोसीड किया कि HIV पॉज़िटिव व्यक्ति द्वारा सेक्शुअल इंटरकोर्स करने से इस बात की संभावना है कि पार्टनर की मौत हो सकती है. ये दो धारणाओं पर आधारित है. पहला, इस तरह के सेक्शुअल इंटरकोर्स से हेल्दी पार्टनर को रोग फैलने की सबसे अधिक संभावना है. दूसरा, कि इस बीमारी के संक्रमण से पार्टनर इतना ज्यादा संक्रमित हो जाए कि उसके मरने की संभावना बन जाए. हालांकि, दोनों ही धारणाएं, बिना किसी आधार और बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित हैं.”

आखिर में हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने ये माना कि इस मामले में IPC की धारा 270 (जान-बूझकर या लापरवाही से संक्रामक बीमारी फैलाने के लिए सज़ा) लागू नहीं होगी, ऐसा करके कोर्ट ने गलती की।

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