मथुरा में धूमधाम से मनाया जा रहा है गोवर्धन पूजा, कान्हा को लगा छप्पन भोग

मथुरा। गोवर्धन धाम में प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा का फिर हुआ निर्वाहन ,गोवर्धन पर्वत की विधि विधान से की गई पूजा अर्चना देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालु ढोल मजीरे नाच गानों के साथ की गई परिक्रमा छप्पन भोग का लगाया गया भोग। 

मथुरा। गोवर्धन धाम में प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा का फिर हुआ निर्वाहन ,गोवर्धन पर्वत की विधि विधान से की गई पूजा अर्चना देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालु ढोल मजीरे नाच गानों के साथ की गई परिक्रमा छप्पन भोग का लगाया गया भोग। 

प्राचीन काल में आज के दिन इंद्र की पूजा हुआ करती थी

हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक त्यौहार दीपावली है दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को अन्नकूट गोवर्धन पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि आज के दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का मान मर्दन कर ब्रजवासियों की इंद्र के कोप से रक्षा की थी,पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में आज के दिन इंद्र की पूजा हुआ करती थी।

हमारा और हमारी गायो को चारा मिलता है

भगवान श्रीकृष्ण ने जब यह देखा के 56 तरीके के व्यंजनों से इंद्र की पूजा होती है और ब्रजवासियों से पूछा कि यह पूजा क्यों की जाती है तो ब्रजवासियों ने बताया कि भगवान इंद्र प्रसन्न होकर ब्रज में बारिश करते हैं और उसी से हमें अच्छी फसल मिलती है जिससे हमारा और हमारी गायो को चारा मिलता है।

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ब्रज में भगवान गिरिराज गोवर्धन की पूजा अर्चना की जाती है

भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि इससे अच्छा तो गोवर्धन पर्वत है जो लोगो को अन्न गायो को चारा प्रदान करता है उसी दिन से ब्रज में घोषणा करा दी कि आज से गोवर्धन भगवान की पूजा की जाएगी इंद्र की नहीं इंद्र इसी बात को लेकर कुपित हो गया और ब्रज में मूसलाधार बारिश कर दी भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर 7 दिन तक गिर्राज पर्वत गोवर्धन पर्वत को उठा कर ब्रजवासियों की इंद्र के कोप से रक्षा की ,और इंद्र का घमंड चूर चूर किया। आखिर मैं इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से माफी मांगी उसी दिन से समूचे ब्रज में भगवान गिरिराज गोवर्धन की पूजा अर्चना की जाती है।

और इस खास मौके पर सभी ब्रजबासी अपने घरों पर अन्नकूट सामिग्री बनाकर गिर्राज महाराज को अर्पित करते है ।गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन के प्रमुख मन्दिरो में काफी भीड़ देखने को मिलती है।सभी मन्दिरो में अन्नकूट का भोग लगाया जाता है,इस मनोहारी द्रश्य के दर्शन सालभर में सिर्फ दीपवाली के मौके पर ही होते है।जिस तरीके से द्वापर युग मे कृष्ण ने गोवर्धन पूजा की थी उसी तरह कलयुग में भी वही परम्परा निभाई जाती है।

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