महाभारत की ‘गांधारी’ का ये सच जानकर कांप जाएगी आपकी रूह

महाभारत में शक्ति का जमकर दुरुपयोग किया गया. पितामह भीष्म को इसी वजह से खलनायक भी कहा जाता है. क्योंकि गंगापुत्र भीष्म ने अपनी शक्तियों का जमकर गलत इस्तेमाल किया और गांधारी का विवाह कराने के लिए उसका अपहरण कर धृतराष्ट्र से विवाह करवा दिया था.

महाभारत में शक्ति का जमकर दुरुपयोग किया गया. पितामह भीष्म को इसी वजह से खलनायक भी कहा जाता है. क्योंकि गंगापुत्र भीष्म ने अपनी शक्तियों का जमकर गलत इस्तेमाल किया और गांधारी(gandhari) का विवाह कराने के लिए उसका अपहरण कर धृतराष्ट्र से विवाह करवा दिया था. जिसके बाद गांधारी(gandhari) ने जीवन पर्यन्त आंखों पर पट्टी बांध ली थी और बाद में गांधारी(gandhari) अग्निकुंड में खुद को समाहित कर दिया था.

कुरुक्षेत्र वो धरती है जहां महाभारत का भीषम युद्ध हुआ था और लाखों-करोड़ों योद्धाओं के रक्तपात से जहां की मिट्टी आज भी लाल है. कहा जाता है कि, इस युद्ध में ऐसा नरसंहार हुआ था जिसके नरकंकाल आज भी कुरुक्षेत्र की मिट्टी में पाए जाते हैं. इसके साथ ही मिट्टी का रंग लाल दिखाई देता है. महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में ही लड़ा गया था इसके पीछे भी एक साजिश थी. ये साजिश खुद भगवान श्रीकृष्ण ने रची थी. क्योंकि वो जानते थे कि, भाई-भाई का खून, पिता-बेटे का खून इतनी आसानी से नहीं कर सकता और उनकेो अंदर क्षमा की भावना जाग जाएगी. ऐसे में किसी ऐसी जगह की तलाश की जाए जहां पर भावनाओं और रिश्तों का कत्ल पहले से होता रहा हो.

महाभारत के युद्ध के लिए ऐसी जगह की तलाश करने के लिए श्रीकृष्ण ने अपने दूतों को चारों दिशाओं में भेज दिया. एक दूत ने वापस आकर श्रीकृष्ण को कुरुक्षेत्र के बारे में बताया और वहां पर घटित एक घटना की जानकारी दी. दूत ने कहा कि, कुरुक्षेत्र महाभारत युद्ध के लिए बेहतर जगह है क्योंकि वहां पर एक भाई ने अपने सगे भाई को इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योकि उसने खेत की मेड़ कट जाने पर बहने वाले पानी को रोकने से मना कर दिया ता. जिसके बाद भाई ने अपने सगे भाई की चाकुओं से गोदकर पहले हत्या की और बाद में लाश को घसीटते हुए उसी मेड़ के पास ले गया जहां पर पानी बह रहा था और उसकी लाश से पानी को रोकने की कोशिश की.

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ये सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि, महाभारत युद्ध के लिए इससे बेहतर जगह नहीं हो सकती है क्योंकि जिस जगह पर रिश्तों के कत्ल छोटी सी बात के लिए हो जाते हैं वहां पर सिंहासन के लिए भला कौन अपने सगे-संबधियों को मारने से कतराएगा.

दूसरी कहानी अनुसार कहते हैं कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई। देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके इस स्थान पर मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।

महाभारत के वनपर्व के अनुसार, कुरुक्षेत्र में आकर सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं और जो ऐसा कहता है कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊंगा और वहीं निवास करुंगा। यहां तक कि यहां की उड़ी हुई धूल के कण पापी को परम पद देते हैं। नारद पुराण में आया है कि ग्रहों, नक्षत्रों एवं तारागणों को कालगति से (आकाश से) नीचे गिर पड़ने का भय है, किन्तु वे, जो कुरुक्षेत्र में मरते हैं पुन: पृथ्वी पर नहीं गिरते, अर्थात् वे पुन:जन्म नहीं लेते। भगवद्गीता के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है।

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