जन्म से लेकर 2 साल तक की अवस्था में बच्चे क्या-क्या और कैसे सोचते हैं? जानिए..
आपको जानकर हैरानी होगी कि यह जीवन के विकास की व्यवस्था है जिसे बच्चे अपने आंखों से हाथों से मुंह से हाथों से छूकर जीभ से काटकर या कहें तो पूरे शरीर से ही सोचते हैं
आपको जानकर हैरानी होगी कि यह जीवन के विकास की व्यवस्था है जिसे बच्चे अपने आंखों से हाथों से मुंह से हाथों से छूकर जीभ से काटकर या कहें तो पूरे शरीर से ही सोचते हैं या संज्ञानात्मक विकास की पहली प्रमुख अवस्था है, जब बच्चे अपनी ज्ञानेंद्रियों (sense organs) से सीखते हैं। इस अवस्था को इंद्रिय गामक या सेंसरीमोटर स्टेज कहा जाता है। “इस अवस्था में बच्चे की ज्ञानेंद्रियां ही उसकी शिक्षक होती हैं।”
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जीन पियाजे के एक Swiss psychologist के मुताबिक बच्चियां मनुष्य के संज्ञान या ज्ञान के अधिकार के पर्यावरण के साथ अंतः क्रिया पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भाषा सीखना इसी के अंतर्गत आता है। भाषा की ध्वनियां और शब्द पर्यावरण में मौजूद विभिन्न क्रियाओं के प्रतीक होते हैं। इस अवस्था की एक और प्रमुख विशेषता है वस्तु स्थायित्व जो कि लगभग 9 से 15 महीने की अवस्था में आ जाता है। मतलब 9 महीने से पहले बच्चा कुछ भी नहीं समझता कि जो उसकी आंखों के सामने नहीं है। ह वास्तव मे मौजूद (exist) है या नहीं। मतलब 9 महीने से पहले बच्चा किसी चीज के लिए रोएगा नहीं परंतु 9 महीने बाद में लगेगा तब बचा रोना शुरू कर देगा।
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