Farmers Protest: किसानों के मुद्दे पर राज्यसभा में बोले कांग्रेस नेता- सरकार को किसानों से लड़कर…
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों (Farmers) का आंदोलन लगातार 70 दिनों से जारी है। इस कड़ाके की ठंड के बावजूद किसानों के मुद्दे ने बजट सत्र का माहौल गरमा दिया है।
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों (Farmers) का आंदोलन लगातार 70 दिनों से जारी है। इस कड़ाके की ठंड के बावजूद किसानों के मुद्दे ने बजट सत्र का माहौल गरमा दिया है। बजट सत्र के तीसरे दिन भी किसानों के मुद्दे पर राज्यसभा में हंगामा हुआ। सदन की कार्रवाई शुरू होते ही विपक्षी सांसदों ने नारेबाजी की। हालांकि, कुछ देर बाद किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए सरकार और विपक्ष के बीच सहमति बन गई।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने सरकार से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि किसानों (Farmers) से लड़ाई का रास्ता छोड़कर बातचीत से समस्याओं को समाधान निकाले। उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों की सुननी चाहिए, उनसे लड़ना नहीं चाहिए। अगर लड़ना है तो पाकिस्तान और चीन से लड़ो, किसानों से नहीं। सरकार को किसानों से लड़कर कुछ नहीं मिलेगा।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद के प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए गुलाम नबी आजाद ने कहा कि इन तीनों कानूनों को बनाने से पहले प्रवर समिति में भेजा गया होता तो विवाद की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। उन्होंने 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा की घटना की निंदा करते हुए कहा कि इस घटना के लिए दोषी लोगों को सजा दी जानी चाहिए और निर्दोष लोगों को किसी मामले में फंसाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।
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कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि विपक्ष लाल किले की घटना की कड़ी निंदा करता है। उन्होंने इस घटना को लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किसी हालत में बर्दाश्त हीं किया जाएगा। आगे उन्होंने कहा कि कुछ वरिष्ठ पत्रकारों, सांसद शशि थरूर के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है, जिसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि जो व्यक्ति विदेश राज्य मंत्री रहा हो, वह देशद्रोही कैसे हो सकता है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि मामले में शामिल किए गए कुछ संपादक लोकतंत्र को जिंदा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। सरकार के समक्ष आर्थिक और कई बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं, जिसका समाधान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने से किसानों (Farmers) का संघर्ष होता रहा है और सभी सरकारों को किसान विरोधी कानून वापस लेने पड़े हैं। उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए 175 किसानों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सैंकड़ों साल से किसान संघर्ष कर रहे हैं।
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गुलाम नबी आजाद ने कहा कि 1906 में अंग्रेजी सरकार ने किसानों (Farmers) के खिलाफ तीन कानून बनाए थे और उनका मालिकाना हक ले लिया गया था। इसके खिलाफ 1907 में सरदार भगत सिंह के भाई अजीत सिंह के नेतृत्व में पंजाब में आंदोलन हुआ और उसे लाला लाजपत राय का समर्थन मिला। किसानों के आंदोलन को देखते हुए कानून में कुछ संशोधन किए गए, जिससे लोग और भड़क गए बाद में तीनों कानूनों को वापस लिया गया।
कांग्रेस नेता ने कहा कि 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नील की खेती के खिलाफ चंपारण सत्याग्रह का नेतृत्व किया था बाद में अंग्रेजी सरकार ने नील की खेती बंद करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि 1918 में गुजरात में किसानों (Farmers) पर कर को लेकर के पूरे आंदोलन का नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था, बाद में इस कर को समाप्त कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इसी तरह से 1928 में भी कर को लेकर एक आंदोलन हुआ था और उसके दवाब में किसानों की जमीन वापस की गई थी और कर की दर को 22 फीसदी से घटाकर 6.03 फीसदी कर दिया गया था।
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गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वर्ष 1988 में कांग्रेस ने किसानों के मुद्दे को लेकर के दिल्ली के वोट क्लब पर एक रैली का आयोजन किया था, लेकिन रैली के आयोजन से पहले वोट क्लब पर किसानों के एक समूह के आ जाने के कारण उसने अपने रैली स्थल बदलकर लाल किला कर दिया था। उन्होंने कहा कि किसानों के बगैर कुछ भी नहीं सोचा जा सकता है। यह न केवल 130 करोड़ लोगों के अन्नदाता हैं बल्कि दुनियाभर के लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराते हैं।
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