यूपी का रण : पश्चिम यूपी के वो बड़े मुस्लिम सियासी परिवार जो इस चुनाव में दर्शक बने हैं

सियासत एकदम बदली बदली दिख रही हैं। ये हालात तब है जब इस इलाके के जिलों में मुस्लिम आबादी काफी हैं। मुस्लिम आबादी के कारण सियासी दल चुनावों में खानदानी सियासतदानों के आगे नतमस्तक होते नजर आते रहे हैं।

मेरठ: यूपी के इस विधानसभा चुनाव में पश्चिम के कई बड़े मुस्लिम नेता नजर नहीं आ रहे हैं। इसका असर ये हुआ कि सूबे के इस इलाके में मुस्लिम राजनीति ठंडी सी पड़ गई है। आपको बता दें, सियासत एकदम बदली बदली दिख रही हैं। ये हालात तब है जब इस इलाके के जिलों में मुस्लिम आबादी काफी हैं। मुस्लिम आबादी के कारण सियासी दल चुनावों में खानदानी सियासतदानों के आगे नतमस्तक होते नजर आते रहे हैं। लेकिन इस बार हवा का रुख बदल सा गया है।

हाजी याकूब कुरैशी और मेरठ के पूर्व सांसद शाहिद अखलाक का घर मुस्लिम राजनीति का केंद्र रहा है। कुरैशी कई बार विधायक और मंत्री रहे हैं। हाफिज इमरान याकूब बसपा में हैं। शाहिद अखलाक की बात करें तो सांसद और मेयर रहे। पिता हाजी अखलाक विधायक रहे हैं। भाई राशिद बसपा से विधायकी का चुनाव लड़ चुके हैं। इनके साथ ही बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली, मेराजुद्दीन अहमद, पूर्व विधायक परवेज हलीम के भी परिवार से कोई सदस्य मैदान में नहीं हैं। जनरल शाहनवाज, मोहसिना किदवई का परिवार हो या फिर सखावत हुसैन, नजीर अंसारी, अब्दुल वहीद कुरैशी हो इनके परिवार भी चुनावी रण से दूर हैं। पूर्व सांसद अमीर आलम या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है।

काजी रसीद मसूद 9 बार सांसद रह चुके हैं। उनके भतीजे इमरान मसूद सक्रिय हैं। लेकिन काजी रसीद मसूद के बेटे चुनाव नहीं लड़ रहे। पूर्व सांसद कादिर राणा के परिवार से कोई मैदान में नहीं है। उनके भतीजे शाहनवाज भी चुनावी दंगल में सिर्फ दर्शक बने हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सरवर हुसैन के परिवार से कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं हैं।

पश्चिम में मुसलमानों की जनसंख्या (प्रतिशत)
मुरादाबाद 50.80
रामपुर 50.57
बिजनौर43.04
सहारनपुर 41.95
शामली 41.73
मुजफ्फरनगर 41.11
अमरोहा 40.78
बरेली 34.54
मेरठ 34.43
संभल 32.88
हापुड़ 32.39
बागपत 27.98
बदायूं 23.26
गाजियाबाद 22.53
बुलंदशहर 22.22
अलीगढ़ 19.85
कासगंज 14.88
गौतम बुध नगर 13.08
फिरोजाबाद 12.60
हाथरस 10.19
आगरा 9.31
मथुरा 8.52
एटा 8.25
इटावा 7.20

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