दिल्ली : प्रवासियों के राहत पर “सुप्रीम सुनवाई” में सरकारों को 15 दिन की मोहलत

दिल्ली : प्रवासियों के राहत पर “सुप्रीम सुनवाई” में सरकारों को 15 दिन की मोहलत

याद कीजिये ज्यादा नहीं, तक़रीबन दस दिन पहले दौर, जब देश का दिहाड़ी मजदूर देश के एक छोर से दूसरे छोर तक हजारों किलो मीटर का सफर पैदल ही तय कर रहा था तो तमाम राज्य लाचार नज़र आ रहे थे, लेकिन सुप्रीमकोर्ट के दखल देते ही राज्य प्लान के साथ हाजिर हो गए.

केंद्र भी बहुत फूँक फूंक कर कदम रखते हुए सुनवाई का हिस्सा बना , कितना बेहतर होता कि समय रहते ज़रूरी कदम उठा लिए जाते तो मजदूरों की दुश्वारियां कम होतीं , लेकिन ऐसा नहीं हुआ , प्रवासियों को उनके हाल छोड़ कर उन्हें पलायन करने पर मजबूर दिया गया , लिहाजा दिहाड़ी प्रवासी अपने ही जिम्मेवार बनते अपने ओर निकल गए। आज महत्वपूर्ण सुनवाई के दिन सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्यो को मजदूरों को वापस भेजने के लिए 15 दिन का वक़्त दिया जा रहा है , दौरान सभी राज्यों को बताना होगा कि वो मजदूरों को रोजगार और बाकी राहत पहुंचाने के लिए क्या कर रहे हैं

सुप्रीमकोर्ट का 15 दिन की मोहलत , 9 जून को फैसला – आज की पूरी सुनवाई

प्रवासी मजदूरों की बदहाली के मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि अब तक करीब एक करोड़ प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचा दिया गया है. बसों के जरिये 41 लाख तो ट्रेन से 57 लाख मजदूरों को उनके घर भेजा गया है. देशभर में तीन जून तक 4270 श्रमिक ट्रेनें चलाई गई हैं. केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, हमने राज्यों से पूछा है कि कितने मजदूरों को शिफ्ट करने की ज़रूरत है और कितने ट्रेनें चलाई जानी चाहिए. राज्‍यों ने हमें यह जानकारी दे दी है और उसके आधार पर चार्ट बनाया गया है. 171 ट्रेन और चलाए जाने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए केंद्र और राज्‍य सरकारों को 15 दिन का वक्‍त दिया.

इस पर कोर्ट ने पूछा, आपके चार्ट के मुताबिक क्या महाराष्ट्र ने एक ही ट्रेन की मांग की है? तो सॉलीसीटर जनरल ने कहा- हां, 802 ट्रेन पहले ही महाराष्ट्र से चला चुके हैं. फिर कोर्ट ने सवाल पूछा- यानी हम ये माने कि कोई और शख्श महाराष्ट्र से नहीं आना चाहता. इस पर सॉलीसीटर जनरल बोले- जी, राज्य सरकार ने हमें यही बताया है. राज्यों से मांग आने पर हम 24 घंटे में ट्रेन उपलब्ध करा रहे हैं.

जस्टिस भूषण ने कहा – हम केंद्र और राज्यो को मजदूरों को वापस भेजने के लिए 15 दिन का वक़्त दे रहे हैं. सभी राज्यों को बताना होगा कि वो मजदूरों को रोजगार और बाकी राहत पहुंचाने के लिए क्या कर रहे हैं. प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन बहुत ज़रूरी है.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि रजिस्ट्रेशन सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा. आधे से ज़्यादा मजदूर वापस जाने के लिए अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं कर पा रहे. बेहतर होगा कि ऐसी स्थिति में पुलिस स्टेशन या किसी दूसरी जगह जाकर मजदूरों को रजिस्ट्रेशन की सुविधा उपलब्ध कराई जाए.

दूसरी ओर, सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने एक बार फिर इस मसले को लेकर अंतरिम याचिका दाखिल करने वालों की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, यह मसला पूरी तरह से केंद्र और राज्यों पर छोड़ देना चाहिए. जिन्होंने कोरोना से निपटने में कुछ भी योगदान नहीं दिया है, उन्हें यहां जिरह की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.

सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने बताया- 11 लाख मज़दूरों को वापस भेजा जा चुका है. 38,000 को भेजना बाकी है. गुजरात ने कहा- 23 लाख में से 20.5 लाख लोगों को वापस भेजा गया है तो दिल्ली सरकार ने कहा – 2 लाख से ज़्यादा मजदूर अभी यहां पर हैं और वो काम छोड़कर जाना नहीं चाहते. महज 10 हज़ार लोग अभी इंतज़ार में हैं. यूपी सरकार की ओर से कहा गया- 104 ट्रेनों के जरिए 1.35 लाख लोगों को वापस भेजा गया. 3206 मजदूरों को भेजना बाकी है. देश भर से 21,69,000 मजदूर हमारे यहां आए. इनमें से 5 लाख 50 हज़ार मजदूरों को दिल्ली बॉर्डर से यूपी लाया गया. बिहार सरकार ने कहा, 28 लाख मजदूर वापस आए हैं. सरकार उन्हें रोज़गार देना चाहती है. अभी तक 10 लाख लोगों की स्किल मैपिंग की गई है.

सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि वो NHRC की अंतरिम याचिका का विरोध नहीं कर रहे हैं लेकिन उन्हें सरकार के जवाब का इतंजार करना चाहिए. NHRC ने मजदूरों की स्थिति को देखते हुए कुछ उपाय सुझाए हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी प्रवासी मजदूर की मौत पानी, खाना न मिलने की वजह से नहीं हुई है, पहले से बीमार रहने के चलते मौत हुई है. कोर्ट मंगलवार को प्रवासी मजदूरों के रजिस्ट्रेशन, ट्रांसपोटेशन और रोजगार जैसे मसलों पर आदेश सुनाएगा.

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