बड़ी खबर: यहां जान बूझकर कोरोना संक्रमित होने पर मिलेंगे चार लाख रुपये
एक ओर पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जुझ रही है और इस संकट से निजात पाने के लिए लगातार कोशिशों में जुटी है। इस खतरनाक कोरोना वायरस से पूरे विश्व में खौफ का माहौल है। दूसरी ओर एक ऐसी खबर सामने आ रही है, जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
एक ओर पूरी दुनिया कोरोना (Corona) महामारी से जुझ रही है और इस संकट से निजात पाने के लिए लगातार कोशिशों में जुटी है। इस खतरनाक कोरोना वायरस से पूरे विश्व में खौफ का माहौल है। दूसरी ओर एक ऐसी खबर सामने आ रही है, जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे। खबर के मुताबिक, 2500 लोग जानबूझकर कोरोना पॉजिटिव होंगे। जी हां, यह सच है।
दरअसल, ब्रिटेन में एक ह्यूमन ट्रायल चैलेंज होने जा रहा है। लंदन के रॉयल फ्री अस्पताल में ये चुनौतीभरा चैलेंज किया जाएगा। इसमें 2500 ब्रिटिश नागरिक जानबूझकर कोरोना (Corona) संक्रमित होंगे। इसके बाद उन्हें वैक्सीन लगाई जाएगी। ऐसा करने के पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि वैक्सीन परीक्षण के नतीजों को मॉनिटर किया जा सके।
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बता दें कि ये ट्रायल कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) को तेजी से काम ने लाने के लिए किये जा रहे हैं। इस चैलेंज में भाग लेने और खुद को जानबूझकर कोरोना संक्रमित कराने में इन लोगों को करीब चार हजार पाउंड्स यानी करीब चार लाख रुपये मिलेंगे।
इस चैलेंज में हिस्सा लेने वालों की उम्र 18 से 30 वर्ष होगी, ऐसा इसलिए है क्योंकि इस इस उम्र में कोरोना (Corona) से मरने का खतरा कम है। इस चैलेंज में 18 साल के एलिस्टर फ्रेजर भी होंगे। उन्होंने मीडियो को जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें कम से कम दो हफ्तों के लिए क्लीनिक में लॉक रखा जाएगा, जहां उनके शरीर को मॉनिटर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर ये ट्रायल सफल होता है तो लाखों लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकती है।
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इसके अलावा इस ट्रायल में 29 लसाल की जेनिफर राइट भी हिस्सा ले रही हैं। जेनिफर ने कहा कि जब मुझे लोगों को सुरक्षित करने का मौका मिला तो मैं इसे गंवाना नहीं चाहती थी। इस Corona वायरस का तोड़ निकालने वाली वैक्सीन का हम सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
आपको बता दें कि 18वीं शताब्दी में वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ने इस तरह के ट्रायल्स किए थे। बताया गया कि उन्होंने अपनी Corona वैक्सीन की प्रभावशीलता जानने के लिए अपने बगीचे में काम करने वाले बेटे को वायरस से संक्रमित कर दिया था। इसके बाद से इस तरह के प्रयोग को अपनाया जाने लगा। इससे पहले टायफाइड, मलेरिया और फ्यू जैसी बीमारियों के लिए इस तरह के ट्रायल किये जा चुके हैं।
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