Chanakya Niti: इस वजह से ऐसे लोगों के पास कभी नहीं आतीं लक्ष्मी

आचार्य चाणक्य की गिनती भारत के श्रेष्ठ विद्वानों मे की जाती है।

आचार्य चाणक्य की गिनती भारत के श्रेष्ठ विद्वानों मे की जाती है। बुद्धि और अपनी अच्छी नीतियों के बल पर चंद्रगुप्त को शासक के रूप में स्थापित करने वाले आचार्य चाणक्य (Chanakya) को कूचनीति और राजनीति की अच्छी समझ थी। अपने शत्रुओं पर विजय हासिल करके चाणक्य ने इतिहास की धारा को एक नया मोड़ दिया।

क्षमता और प्रतिभा से जीवन में सफल हुए Chanakya

चाणक्य (Chanakya) ने अपने जीवन में अच्छी और बुरी दोनों परिस्थितियों का सामना किया था, उन्हें भी सफल होने के लिए बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी भी अपना आत्मविश्वास कम नहीं होने दिया और अपने अच्छे गुणों और मजबूत इरादों से चाणक्य ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी क्षमता और प्रतिभा को साबित किया और जीवन में सफलता हासिल की।

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चाणक्य (Chanakya) को कई विषयों को जानकारी थी, अर्थशास्त्र विषय के मर्मज्ञ थे। इसके साथ ही चाणक्य को राजनीति शास्त्र, सैन्य शास्त्र और कूटनीति शास्त्र की भी अच्छी जानकारी थी। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी सीखा और समक्षा, उसे अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में दर्ज किया।

चाणक्य (Chanakya) नीति में प्रभावशाली बातों का उल्लेख

आचार्य चाणक्य (Chanakya) ने चाणक्य नीति में बहुत ही प्रभावशाली बातों का उल्लेख किया गया है, जिनको ध्यान में रखकर जीवन की कुछ समस्याओं का समाधान प्राप्त करने और जीवन को सफल बना सकते हैं।

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चाणक्य नीति कहती है कि जीवन में हर व्यक्ति सफलता हासिल करना चाहता है, लेकिन कुछ ही व्यक्ति सफलता की ऊचाइयों पर पहुंच पाता है। जीवन में सफल होना और अपने लक्ष्य को हासिल करना हर व्यक्ति का सपना होता है। कई बार मनुष्य कड़ी मेहनत करने के बाद भी सफलता हासिल नहीं कर पाता, जबकि कुछ लोग आसानी से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब होते हैं।

आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति Chanakya Niti) में लक्ष्मी जी की कृपा के बारे में एक श्लोक के माध्यम से बताया है। नीति शास्त्र में चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मी कुछ खास कारणों की वजह से ब्राह्मणों के पास नहीं जाती हैं।

पीत: क्रुद्धेन तातश्चरणतलहतो वल्लभेऽयेन रोषा
आबाल्याद्विप्रवर्यै : स्ववदनविरे धर्यते वैरिणी मे।
गेहं मे छेदयन्ति प्रतिदिवसममाकान्त पूजानिमित्तात्
तस्मात् खिन्ना सदाहं द्विज कुलनिलयं नाथ युक्‍तं त्‍यजामि।।

इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य बताते हैं कि लक्ष्मी जी ने कहा, अगस्त ऋषि ने मेरे पिता यानी समुद्र को पी डाला था। मृगु ने मेरे पति के सीने पर लात मारी थी। सरस्वती से मेरा जन्मजात वैर है। इसके साथ ही वो कहती हैं कि पूजा के लिए हमेशा कमल के फूल को तोड़ा जाता है, जो कि मेरे लिए घर के समान है। ऐसे में मुझे अनेक प्रकार से ब्राह्मणों ने हानि पहुंचाई है, इसलिए मैं उनके घरों में कभी नहीं जाऊंगी।

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दरअसल, भगवान श्री हरी विष्णु ने मां लक्ष्मी से उनके ब्राह्मणों के प्रति नाराजगी का कारण पूछा तो उन्होंने कहा, ‘मैं ब्राह्मणों के घर में इसलिए नहीं रहती क्योंकि, अगस्त्य ऋषि ने गुस्से में मेरे पिता समुद्र को पी लिया, भृगु ने आपकी छाती पर लात मारी, ब्राह्मण सरस्वती के पुजारी हैं और कमल के फूल भगवान शिव को अर्पित करते हैं।’ यही कारण है कि लक्ष्मी ब्राह्मण लोगों के घर में वास नहीं करती हैं।

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