सरकारी फाइलों में दम तोड़ती मध्य गंगा नहर परियोजना….

 सरकारी फाइलों में दम तोड़ती मध्य गंगा नहर परियोजना….

उत्तर प्रदेश सरकार की उदासीनता का आलम ये है कि किसानो के लिए जीवनदायिनी योजना जिसे पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी शासन में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा स्वीकृत किया गया था वो मध्य गंगा नहर परियोजना अबतक धरातल पर नहीं उतर पायी है , ये परियोजना 2007-2008 में मंजूर हुई थी। परियोजना में पहले बजट की कमी रही , लेकिन अब जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया धीमी चल रही है।

नहर का काम लगभग 12 वर्ष बाद भी पूरा नहीं हो सका। इसीलिए इसकी लागत बढ़ती गयी , इस परियोजना के लिए दिसंबर 2019 तक काम पूरा करने का लक्ष्य दिया था लेकिन काम की रफ्तार ऐसी नहीं थी कि निर्धारित समय में काम पूरा हो सके, लिहाजा परियोजना फाइलों में धूल फांक रही है और इस बीच किसान सिंचाईं के लिए तरस रहे हैं।

मुरादाबाद मंडल के चार जनपदों के साथ बुलंदशहर और बदायूं के किसानों को लाभ देने के लिए मध्य गंगा नहर 2007-08 में 1060.76 करोड़ रुपये की लागत से परियोजना बनाई थी , सिंचाई विभाग की सरकारी वेबसाइट पर आंकड़ों की माने तो मार्च 2020 तक इस परियोजना पर 2605.90 करोड़ रूपये व्यय किये जा चुके हैं। वर्ष 2020-21 के वर्ष में इसका बजट कुल 1436.05 करोड़ रूपये रखा गया है।

मौजूदा वित्तीय वर्ष 2020-21 में मध्य गंगा नहर परियोजना द्वितीय चरण की पुनरीक्षित परियोजना के कार्यों के लिए 50 करोड़ रुपये अवमुक्त किए गए हैं। इस धनराशि को भी सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के निवर्तन पर रखा गया है।इस परियोजना के मुख्य नहर की कुछ लम्बाई हस्तिनापुर वन्यजीव विहार से गुजरती है.

जिस पर सुप्रीम कोर्ट की सेन्ट्रल एम्पावर्ड कमेटी की संस्तुति के आधार पर निर्माण की अनुमति कुछ शर्तों के साथ दी गई है। इसलिए कोर्ट के आदेशों में दी गई शर्तों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।

इस परियोजना में कार्य शिथिलता का आलम ये है कि मौजूदा बीजेपी शासन काल में पिछले मंत्री को बदल कर डॉ महेंद्र सिंह को नया मंत्री बनाया गया हैवीवेट मंत्री जी के लिए जल शक्ति विभाग का गठन करते हुए सात विभागों और उनके कार्यों को इसमें शामिल किया गया.

इसमें नमामि गंगे, ग्रामीण जलापूर्ति, सिंचाई एवं जल संसाधन, सिंचाई यांत्रिक, लघु सिंचाई, परती भूमि विकास व बाढ़ नियंत्रण विभाग को शामिल किया गया, लेकिन नया विभाग कार्यभार दिए जाने के बाद भी परियोजना की तस्वीर नहीं बदली।

इस परियोजना में सबसे बड़ा रोड़ा भूमि अधिग्रहण का है , इस परियोजना के लिए प्रस्तावित जिलों में अगर बात करें तो अमरोहा जिले में धनौरा तहसील में देहराचक और फूंदेड़ी में अभी तक जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाया है। इसका कारण सर्किल रेट का की असमानता है.

जिससे किसानो में विवाद की स्थिति है। इस परियोजना के लिए स्थानीय जिला प्रशासन से लेकर सिंचाई विभाग के उच्च अधिकारीयों और मंत्री तक में उदासीनता है। नहर बनने पर बसे ज्यादा लाभ संभल और अमरोहा जनपद के किसानों को होना है।

यह है मध्य गंगा नहर परियोजना
गंगा नदी बिजनौर से मध्य गंगा नहर को पानी मिलेगा। इसके लिए गंगा नदी से 30 मीटर चौड़ी मुख्य नहर निकाली जा चुकी है।
मुख्य नहर का पानी शाखाओं के जरिए चंदौसी और बहजोई तक आएगा। शाखाओं के निर्माण का काम अधूरा पड़ा है। इसके पूरा होने पर संभल जिले में बिजनौर की तरह नहरों का जाल बिछ जाएगा। जमीन का जल स्तर ठीक होगा और किसानों को समय पर सिंचाईं के लिए पानी मिल सकेगा।

मुरादाबाद मंडल के बिजनौर, संभल और मुरादाबाद के साथ अमरोहा जिले के किसानों को सिंचाईं के मामले में राहत मिलेगी।
प्रधानमंत्री की कृषि सिंचाईं योजना में मंजूरी मिली है। मध्य गंगा नहर बनाने का काम नहर विभाग की 16 डिवीजन कर रही हैं।
अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, बिजनौर, हरिद्वार, बुलंदशहर, अलीगढ़, गढ़मुक्तेश्वर में यह डिवीजन स्थापित हैं।
1056 करोड़ रुपये मध्य गंगा नहर फेज टू प्रोजेक्ट की लागत 2007-08 में थी। अब लागत लगभग 5000 करोड़ है।

एक परियोजना को 12 साल बीत जाने के बाद भी अगर धरातल पर न लाया जा सके तो इसे सिर्फ सरकारी विभागों की नाफरमानी , अफसरों की नगण्यता , विभाग के मुखिया मंत्री की विकास में रूचि न लेना और सबसे बड़ा मुद्दा सिस्टम की शिथिलता ही कही जाएगी।

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

आदम गोंडवी की ये मशहूर लाइने इस परियोजना के लिए बिलकुल फिट बैठती हैं , क्योंकि किसानो के लिए जीवनदायिनी ये परियोजना सरकारी उदासीनता के कारण फाइलों में धूल फांक रही है।

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