भाजपा के खाने के दांत और…. दिखाने के कुछ और

2014 के शुरुआत में जब भाजपा लोकसभा चुनावों का प्रचार कर रही थी तब सबसे ज्यादा जोर कालाधन वापस लाने,  युवाओं को रोजगार देने और किसानों की आय दोगुनी

2014 के शुरुआत में जब भाजपा लोकसभा चुनावों का प्रचार कर रही थी तब सबसे ज्यादा जोर कालाधन वापस लाने,  युवाओं को रोजगार देने और किसानों की आय दोगुनी करने पर था। लेकिन 7 साल बाद भी जनता महंगाई झेल रही है। युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं और किसान कहां हैं ये किसी को बताने की जरुरत ही नहीं है। जिस प्रकार कोरोना की पहली लहर से लोग अभी संभले ही थे कि दुसरी लहर ने दस्तक दे दी। ठीक वही हाल मोदी सरकार का है।

डीजल पेट्रोल में महंगाई का दौर

जनता मोदी जी की पहली लहर अभी झेल ही रही थी कि दुसरी लहर में पेट्रोल, डीजल, सिलेंडर वाली महंगाई ने कमर तोड़ दी। जनता ने वोट दिया लेकिन जनता को वोट के बदले क्या मिला ये हर आदमी को पता है। प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था कि वो 2025 तक भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन डॉलर यानी 5 लाख करोड़  की बना देंगे। लेकिन उनका सपना अब पाइपलाइन में अटका नज़र आ रहा है क्योंकि इस सुस्त इकोनॉमी सिस्टम में सिर्फ सिस्टम ही अपने पटरी पर आ जाए वही काफी है। देश और देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में हेल्थ सिस्टम, अर्थव्यवस्था, किसानों की स्थिति और रोजगार पर नजर डाले तो आज भी वो समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हैं। योगी और मोदी सरकार लाख दावे कर ले विकास और विकास के नए इबारत की लेकिन  सच तो यही है कि बीजेपी के दांत खाने के कुछ और जबकि दिखाने के कुछ और है।

कोविड व्यवस्था का बुरा हाल

पीएम मोदी और सीएम योगी पिछले 15 दिनों में कई स्वास्थ्य परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन कर एक दुसरे की पीठ थपथपा ली है। कोरोना की दूसरी लहर में देश और खासकर उत्तर प्रदेश ने बता दिया,लोग एंबुलेंस बिना सड़कों पर मर रहे थे। सोशल मिडिया पर लोग  ऑक्सीजन ऑक्सीजन चिला रहे थे। बिना ऑक्सीजन के अस्पतालों में मर रहे थे और सरकार समस्या को समस्या मानने को आज भी तैयार नहीं है। कोरोना में  देश की इस दुर्दशा की तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी लेकिन योगी सरकार ने कोविड प्रबंधन में खुद को अव्वल बताया।

नमामि गंगे के प्रोजेक्ट का फेल होना

वैसे तो पूरे विश्व में गंगा को मां का दर्जा प्राप्त है और यूपी के लिए तो गंगा मां जीवनदायिनी हैं। खुद को गंगा मां का बेटा बताते हुए  प्रधानमंत्री ने काफी उत्सुकता के साथ नमामि गंगे प्रोजेक्ट को लॉन्च किया और 20,000 करोड़ रुपये का बजट भी दिया और लक्ष्य 5 साल का रखा गया गंगा साफ करने के लिए। लेकिन गंगा कितनी साफ हुई नमामि गंगा प्रोजेक्ट कितना साफ हुआ ये तो गंगा और गंगा के रेत से उभरती तस्वीरें बता रही हैं।मिनिस्ट्री ऑफ वॉटर रिसोर्सेज के डेटा की मानें तो नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी धीमी गति से काम हुआ है। 2014 से 2021 के आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार द्वारा बीते सात सालों में बजट का आधा हिस्सा भी खर्च नहीं किए गया है।

सूदूर गांवों में बिजली समस्या

बीजेपी के 2017 के चुनावी मैनिफेस्टो को देखें तो उनके वादों में 24 घंटे बिजली देने का वादा सबसे अहम था। सत्ता में आते ही योगी सरकार ने इसके लिए तेज़ी से क़दम उठाया और तय हुआ कि शहरों में 24 घंटे और गांवों में 18 घंटे बिजली दी जाएगी। बिजली व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए और भी कई कदम उठाए गए। लेकिन आलम यह है कि राज्य भर के लोगों को बिजली कटौती की समस्या से गुजरना पड़ रहा है। कई ज़िले तो ऐसे हैं जहां घंटों बिजली नहीं आती और ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांसफॉर्मर ख़राब होने पर गांव वालों को हफ़्तों बिना बिजली के रहना पड़ता है।

सड़कों का बुरा हाल

मैनिफेस्टो में कुछ और लुभावना था तो वो था यूपी की गढ्ढामुक्त सड़के।  सरकार ने सौ दिन के भीतर सभी सड़कों को गड्ढामुक्त करने का लक्ष्य तय किया था। कुछ सड़कों के गड्ढ़े भरे भी गए लेकिन आज स्थिति ये है कि जिन सड़कों के गड्ढ़े भरे गए थे उनमें फिर गड्ढ़े हो गए। राकेश प्रताप सिंह जैसे विधायकों को अपने एरिया की सड़को को बनवाने के लिए धरना करना पड़ रहा है। बस्ती में तो सत्ताधारी विधायक को सड़क ना बनवाने के लिए  लोगों के जबरजस्त विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है।

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