यूपी के 5 बड़े एनकाउंटर की कहानी …
यूपी के 5 बड़े एनकाउंटर की कहानी ..
आपने विकास दूबे के एनकाउंटर को देख सुन जान ही लिया ..कैसे विकास दूबे को पुलिस ने मध्यप्रदेश में सरेंडर करने के बाद उत्तर प्रदेश लाकर एनकाउंटर किया….लेकिन हम आपको आज उत्तर प्रदेश के 5 बड़े पुलिसिया मुठभेड़ यानी..पुलिस एनकाउंटर की कहानी बताएंगे….
गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर केस…
कहते हैं जिसके एनकाउंटर के लिए पहली बार एसटीएफ यानी स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया वो श्रीप्रकाश शुक्ला शार्प शूटर और सुपारी किलर नाम से फेमस था। उसके खौफ से पूरा उत्तर प्रदेश कांपता था। श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के मामखोर गांव में हुआ था। 1993 में एक युवक ने उसकी बहन के साथ छेड़खानी की। इसके बाद उसने उसकी हत्या कर दी। यह उसके जीवन का पहला जुर्म था। इस मर्डर के बाद वह बैंकॉक भाग गया। लेकिन, वहां ज्यादा दिन नहीं रह सका और भारत लौट आया। यहां वह मोकामा (बिहार) के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया…
श्रीप्रकाश ने 1997 में लखनऊ में बाहुबली नेता वीरेन्द्र शाही की हत्या कर दी। इसके बाद 13 जून 1998 को बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से छलनी कर दिया था। यहां तक कहा जाता है कि श्रीप्रकाश ने उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या का सुपारी ली थी। 5 करोड़ में सीएम की हत्या का सौदा तय हुआ था…
गर्लफ्रेंड के मोबाइल को सर्विलांस पर लेकर किया एनकाउंटर…
कहा जाता है कि श्रीप्रकाश के एनकाउंटर के लिए ही यूपी में एसटीएफ का गठन किया गया। 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने 50 जवानों का एक स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाया। इस फोर्स का पहला टास्क था श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना।
एसटीएफ ने श्रीप्रकाश शुक्ला को मारने के लिए उसके और उसकी गर्लफ्रेंड के मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया। श्रीप्रकाश को शक हुआ तो उसने मोबाइल की जगह पीसीओ से बात करना शुरू कर दिया। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि पुलिस ने उसकी गर्लफ्रेंड के नंबर को भी सर्विलांस पर रखा है।
पुलिस को पता चला कि जिस पीसीओ से श्रीप्रकाश कॉल कर रहा है, वो गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में है। इसके बाद पुलिस ने उसका पीछा किया। पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा लेकिन उसने फायरिंग शुरू कर दी। 23 सितंबर 1998 को एसटीएफ ने गाजियाबाद में श्रीप्रकाश को मार गिराया था।
रमेश कालिया का एनकाउंटर- जब एनकाउंटर के लिए बाराती बने थे पुलिस वाले…..
रमेश कालिया एक समय यूपी और लखनऊ का सबसे बड़ा गैंगस्टर था। उसके अपराध से लोग कांपते थे। वह बिजनेस मैन से पैसे वसूलता था, रंगदारी करता था, ठेके से वसूली करता था। 2002 में बारांबकी में सपा नेता रघुनाथ यादव और उनके दो साथी मारे गए। इस केस का आरोप सीधे-सीधे कालिया पर लगा। इसके बाद क्राइम की दुनिया में उसका वर्चस्व बढ़ने लगा। 2004 में उन्नाव में उसने सपा एमएलसी और बाहुबली अजीत सिंह की हत्या कर दी थी।
रमेश कालिया के शूटआउट के लिए खास तौर पर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की टीम बना गई थी। लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं आ रहा था। तभी पुलिस को इम्तियाज नामक एक बिल्डर मिला, जिसने कालिया के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी कि वह उससे 5 लाख रुपए मांग रहा है।
तब के एसएसपी नवनीत सिकेरा ने प्लान बनाया कि इम्तियाज के सहारे कालिया तक पहुंचा जाए। एसएसपी के कहने पर इम्तियाज ने कालिया को फोन किया और कहा कि वह उसे कुछ पैसे देने को तैयार है। इसके बाद कालिया ने उसे मिलने का वक्त दिया। तारीख और जगह दोनों तय हुई, इधर पुलिस भी अपनी कमर कस चुकी थी।
12 तारीख फरवरी 2005 को इम्तियाज कालिया से मिलने पहुंचा। उसके सपोर्ट के लिए पुलिस की टीम बाराती बनकर तीन अलग-अलग गाड़ियों में बैठ कर नीलमत्था के लिए रवाना हो गई। इम्तियाज डरते-डरते कालिया के मकान में पहुंचा। उसने कालिया को सिर्फ 40 हजार रुपए दिए और कहा कि वह उसे माफ कर दे, अभी उसके पास इतनी ही रकम की व्यवस्था हो पाई।
कालिया ने वो पैसे उसके ऊपर फेंक दिए और गालियां देना शुरू कर दी। तभी पुलिस की टीम ने फिल्मी अंदाज में उसके ठिकाने पर धावा बोल दिया। दोनों तरफ से करीब 20 मिनट गोलाबारी चलती रही। आखिरकार कालिया मारा गया। इस एनकाउंटर में दो पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे।
चंबल के कुख्यात डकैत निर्भय गुर्जर का एनकाउंटर- दो राज्यों की पुलिस ने ढाई- ढाई लाख का इनाम रखा था….
निर्भय गुर्जर चंबल के बीहड़ों का कुख्यात डकैत था। उस पर यूपी और मध्य प्रदेश सरकार ने 2.5- 2.5 लाख रुपए का इनाम रखा था। निर्भय गुर्जर के खिलाफ अपहरण और हत्या के 200 से अधिक मामले पुलिस थानों में दर्ज थे। निर्भय गुर्जर को लड़कियां बहुत पसंद थीं। वह अपनी गैंग में लड़कियों को भी रखता था। इनमें सीमा परिहार, मुन्नी पांडे, पार्वती उर्फ चमको, सरला जाटव और नीलम प्रमुख थीं।
निर्भय गुर्जर के अपराधी बनने की शुरुआत एक चोरी के केस से हुई थी, जिसमें पुलिस ने उसकी जमकर पिटाई कर दी थी। इसके बाद वह डाकुओं के एक गैंग में शामिल हो गया। वहां उसका मतभेद हुआ तो अपना खुद का गैंग बना लिया और यूपी और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में दहशत फैलाने लगा। चोरी, डकैती, हत्या के साथ ही वह लोगों के हाथ-पैर भी काट लेता था..
निर्भय गुर्जर का एनकाउंटर
9 अक्टूबर 2005 को निर्भय के खात्मे के लिए एसटीएफ टीम को जिम्मा सौंपा गया। एसटीएफ टीम में तत्कालीन इटावा एसपी दलजीत चौधरी के अलावा SSP अखिल कुमार और DSP राजेश द्विवेदी शामिल रहे। 8 नवंबर 2005 को निर्भय गुर्जर का एनकाउंटर हुआ।
गोलियों से थर्राया चंबल के बीहड़- डकैत ददुआ को जगंलों में एम्बुश लगाकर एसटीेएफ ने किया ढेर….
1970 के दशक में शिव कुमार पटेल उर्फ़ ‘ददुआ’ का नाम चंबल के बीहड़ों में दहशत का पर्याय था। उसने 200 से ज्यादा हत्याएं की थीं, लेकिन पुलिस इनमें से कुछ ही दर्ज कर पाई थी। उसके दहशत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर किसी को प्रधान, विधायक और सांसद का चुनाव लड़ना होता था तब उसे एक मोटी रकम चढ़ावे में चढ़ानी पड़ती थी। यूपी और मध्य प्रदेश में ददुआ के खिलाफ करीब 400 मामले दर्ज थे। यूपी पुलिस ने उस पर 10 लाख रुपए का इनाम रखा था..
जंगल मे कैसे हुआ एनकाउंटर?
ददुआ के एनकाउंटर का जिम्मा यूपी एसटीएफ को मिला। जिसकी कमान संभाल रहे थे अमिताभ यश। उन्होंने 2007 में ददुआ को मारने के लिए प्लान बनाया। ददुआ बीहड़ के जंगलों में रहता था, लिहाजा उसको मारना आसान नहीं था। ऐसा पहली बार हुआ जब एसटीएफ ने उसे मारने के लिए जंगल में एम्बुश लगाया।
एसटीएफ को मुखबीर ने ददुआ के ठिकाने के बारे में जानकारी दी। इसके बाद प्लान के तहत एसटीएफ की टीम जंगल में दाखिल हुई। जगंल में जैसे – जैसे ददुआ और उसका गैंग मूव करता, एसटीएफ भी उस हिसाब से मूव करने लगी। धीरे-धीरे दोनों करीब हुए ….और दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई….
एसटीएफ की टीम ने ददुआ गैंग को घेर लिया और ददुआ और उसके कई साथियों को मार गिराया। कहा जाता है कि उसकी तलाश में 100 करोड़ से ज्यादा खर्च हो गए थे….
डकैत घनश्याम केवट एनकाउंटर- एनकाउंटर का हुआ था लाइव टेलीकास्ट, चार पुलिसकर्मी भी हुए थे शहीद…
घनश्याम केवट यूपी का बड़ा कुख्यात डकैत था। पुलिस ने 2009 में एनकाउंटर में उसे मार गिराया। घनश्याम केवट शायद यूपी के लिए ऐसा पहला एनकाउंटर था जो लगभग तीन दिनों तक चला। टीवी समाचार चैनलों ने इस एनकाउंटर का लाइव टेलीकास्ट किया था। इस एनकाउंटर में चार पुलिकर्मी भी शहीद हुए थे। इसके अलावा सात पुलिसकर्मी बुरी तरह घायल हो गए थे….
दरअसल, पुलिस को खबर मिली कि घनश्याम चित्रकुट के जमौली गांव में छिपा हुआ है। इसके बाद चार सौ से ज्यादा पुलिसकर्मियों ने उस गांव को घेर लिया। घनश्याम एक घर में छिपा हुआ था। उसे घर से बाहर निकालने के लिए पुलिस ने आग का सहारा लिया और घर में आग लगा दी….
इससे भी बात नहीं बनी तो पुलिस ने उस मकान पर बुलडोजर चला दिया। इसके बाद केवट ने वहां से भागना चाहा, लेकिन पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। जानकारी के मुताबिक, लगभग 45 मिनट तक फायरिंग चली थी। इसके बाद घनश्याम की लाश बरामद हुई थी…..
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