बाबा के ढाबा के बाद प्रसिद्ध हुई दो बहनों की भेलपुरी, सोशल मीडिया पर जमकर मिल रहा समर्थन
अलीगढ़ में दो बहनों की भेलपुरी भी पूरे तरीके से प्रसिद्ध होती नजर आ रही है सोशल मीडिया पर दोनों बहनों की भेलपुरी को लेकर पूरा समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है
अलीगढ़: चंद दिनों पहले जहां बाबा के ढाबा की वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई थी जिसके बाद बाबा के ढाबा को एक नई पहचान मिली थी वहीं अब अलीगढ़ में दो बहनों की भेलपुरी भी पूरे तरीके से प्रसिद्ध होती नजर आ रही है सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरों के बाद दोनों बहनों की भेलपुरी को लेकर पूरा समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है जिस उम्र में बच्चे अपने पीठ पर बैग टांग स्कूल में पढ़ने के लिए जाते और अपने भविष्य के बारे में योजनाएं बनाते हैं और नए-नए सपने बुनते हैं ओर फिर लक्ष्य तय करते हैं और फिर उसी दिशा में आगे बढ़ना शुरू करते हैं। लेकिन अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क बस अड्डे के पास 12 से 11 साल की दो मासूम बहनों सहित उसके परिवार पर नियति ने ऐसा क्रूर खेला की दोनों बहने इस उम्र में अपने सपनों को तिलाजंलि देकर परिवार की जिम्मेदारी निभा रही है। दोनों बहने अपने जज्बे और हौंसले के बूते न केवल चारपाई पर बीमार पड़े पिता की भेलपुरी की ठेली हाथों में लेकर उसकी कमान संभाल रही है बल्कि उनके द्वारा लिये गये भारी भरकम जिम्मेदारियों को भी अपने कंधों पर डाल कर पूरा करने में जुटी हुई है।
दरअसल जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के जनपद अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क इलाके के मानिक चौक निवासी रूप किशोर व मीना की दोनों बेटी गीता और पूजा पिछले तीन साल से गांधीपार्क बस अड्डे के पास भेलपूरी की ढकेल लगा रही हैं।जहां पिता रूप किशोर टेंपो और भेलपुरी की ढकेल चलाते थे। पिता के कंधों पर ही परिवार की जिम्मेदारी थी। लेकिन तीन साल पहले 2019 में अटैक पड़ गया ओर वह पहले लकवा ग्रस्त हो गए। जिसके बाद जो घर की जमा पूंजी थी वह पिता की बीमारी पर खर्च हो गई। पिता द्वारा जमा की गई उस जमा पूंजी से कुछ दिन तक तो घर का खर्चा चला लेकिन उसके बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी।
जिसके बाद कुछ दिन पड़ोसियों की मदद से घर का चूल्हा जल रहा था। लेकिन इसके बाद घर चलाना मुश्किल हो गया। उसके बाद एक दिन दोनों बहनों ने घर में रखे पिता की भेल पुरी की ढकेल खुद लगाने का फैसला किया। दोनों बहनों द्वारा भेलपुरी का ठेला लगाने के लिए गए फैसले के बाद अगले दिन सुबह होते ही गीता ओर पूजा ने अपने पिता रूपकिशोर ओर मां मीना देवी की मर्जी से घर में खड़ी पिता की भेल पुरी की ढकेल उठाई और उसके बाद गांधीपार्क बस अड्डे के पास पहुंचकर दोनों बहनों में सड़क किनारे भेलपूरी की ढकेल लगानी शुरू कर दी। जिसके बाद पिछले 3 साल से लगातार भेलपुरी की ढके लगाकर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को कुछ हद तक ठीक करते हुए उस जिम्मेदारी को दोनों बहने मिलकर बखूबी निभा रहे हैं।
मानिक चौक निवासी दोनों बहने पूजा और गीता की मानें तो उनके पिता रूपकिशोर भेलपूरी का ठेला और टेंपो चला मजदूरी का काम कर परिवार का जीवन-यापन करते आ रहे थे। जहां उनके पिता द्वारा दोनों बहनों का आगरा रोड स्थित महेश्रवरी गर्ल्स इंटर कॉलेज में दाखिला कराया था। दोनों बहने इसके बाद माहेश्वरी गर्ल्स इंटर कॉलेज में कक्षा 7 में पढ़ रही थी। जबकि उनकी उम्र भी अभी 11 और 12 वर्ष है। दोनों बेटियों का कहना है कि उनके माता-पिता का भी सपना था कि दोनों बहने खूब पढ़े और पढ लिखकर माता-पिता का नाम रोशन करें और खुद भी बुलंदियों को छूते हुए खूब नाम कमाएं। जहां उनके पिता ने इसी सोच के साथ उनका दाखिला माहेश्वरी गर्ल्स इंटर कॉलेज में कराया था। लेकिन हालातों ने उनकी पढ़ाई पर ग्रहण लगा दिया। इसके साथ ही कहा कि भेलपुरी की सड़क किनारे खड़े होकर ढकेल लगाना उनकी मजबूरी है। क्योंकि वह दोनों बहने भी पढ़ना-लिखना चाहती हैं, लेकिन घर के हालातों के चलते आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह इसमें सफल नहीं हो पा रही हैं।
उन्होंने कहा कि भेलपुरी बेचने के दौरान कई बार कुछ शरारतीतत्व उनके साथ अभद्रता भी कर देते हैं। छोटी बहन पूजा ने बताया कि दोनों बहने मिलकर पिता के भेलपूरी ठेले को खुद लगाने लगी जिससे कि उनके घर के बिगड़े हुए हालात ठीक हो जाए। भेलपुरी के ठेले से कुछ अमंदनी हो सके जिससे कि घर का खर्चा आसानी से चल सके जिसके लिए हम दोनों बहने पिछले 3 साल से भेलपुरी बेच रहे हैं। पिछले 3 साल से दोनों बहने गांधीपार्क बस अड्डे के पास ही भेलपुरी के ठेले लगाते हुए आ रहे हैं। शाम 4:00 बजे से रात के 8:00 बजे तक दोनों बहनें मिलकर भेलपुरी बेचते हैं। भेल पुरी बेचने से जो अमंदनी होती है।उस अमंदनी से लागत तो निकल आती है। लेकिन भेलपुरी बेचने के बाद दोनों बहनों को अमंदनी कम मिल पाती हैं।
बाइट- गीता
बाइट- गीता की माँ
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