बलिया: श्मशान घाटों को सेनेटाइज करने पहुंचे नगर पालिका अध्यक्ष
बलिया नगरपालिका की एक हैरान कर देने वाली अनोखी पहल सामने आई है। दरअसल कोरोना लहर के दूसरे दौर में नगरपालिका चेयरमैन शहर की तंग गलियों और सड़कों को छोड़, शहर से महज़ कुछ किलो मीटर दूर मां गंगा के चौखट को सेनेटाइज करने मुक्तिधाम के शमसान घाट पहुंच गए।
बलिया नगरपालिका की एक हैरान कर देने वाली अनोखी पहल सामने आई है। दरअसल कोरोना लहर के दूसरे दौर में नगरपालिका चेयरमैन शहर की तंग गलियों और सड़कों को छोड़, शहर से महज़ कुछ किलो मीटर दूर मां गंगा के चौखट को सेनेटाइज करने मुक्तिधाम के शमसान घाट पहुंच गए।
मीडिया के कैमरे में कैद अपने हांथो से गंगा किनारे शमसान घाट को सेनेटाइज करने वाले सफेद कपड़ो में बलिया नगरपालिका के चेयरमैन अजय कुमार जायसवाल है। जी हां ये वही अजय कुमार हैं , जिनसे नगर की जनता कोरोना काल के दौरान अपने गल्ली मुहल्ले को सेनेटाइज करानें के लिए चिख़ती रही ।
पर चेयर मैंन साहब के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, उच्च अधिकारियों की फटकार मिलने और तमाम आलोचनाओं के बाद नगरपालिका चेयरमैन जागे, तो पहले कोरोना काल में सेनेटाइज का कोरम पूरा किया। यही नज़ारा कोरोना कि दूसरी लहर में भी देखने को मिल रहा ।
जनपद में 3 हजा़र के पार कोरोना संक्रमितों की एक्टिव संख्या है। लॉकडाउन के बाद भी शहर में पूरा दिन लोग ख़रीदारी करते नज़र आ रहे है। शासन लॉकडाउन का पालन करानें के लिए सख्ती बरत रही है । ऐसे में नपा चेयरमैन का गंगा घाट पर चिन्हित शमसान घाट को अपने हांथो से सेनेटाइज करना वाकई सराहनीय है।
अब इन्हें कौन बताए कि मां गंगा स्वयं अपनें आप मे एक सेनेंटाइज़र है। जिसमें इंसान न केवल अपने पापों को गंगा मां के हवाले करके अपने पापों से छुटकारा पाने की कोशिश करता है, बल्कि मृत्युलोक में पहुंच जाने के बाद भी लाशों की जली हुई अस्थियों को भी मां गंगा अपने गोद में समा देती है।
इसी गंगा मां के आसपास फै़ला कुडों का फैला अंबार जो बरसों से फैलता चला जा रहा है । पर समाजसेवी चेयरमैन साहब ने इसके बारे में कुछ नहीं सोचा क्योंकि गंदगी और कूडों से भी संक्रमण फैलता है। बल्कि शहर का पूरा कचरा नदी में जा कर समाता रहता है। इन्हें कौन बताये कोरोना वायरस किसी एक जगह सिमित नहीं इसके वायरस एक की संख्या में नहीं बल्कि अनेक के संख्या में है, भिड भाड वाले ईलाकों में इसके संक्रमण के चांस ज्यादा हो जाते हैं, अब माननीय चेयरमैन साहब को कौन बताये की शमसान घाट पर एक दिन में लाशों के आने का सिलसिला खत्म नहीं हो जाता, लोगों की भारी संख्या नहीं बल्कि रोज-रोज सैकड़ो की संख्या में लोग पहुंचते है।
इन्हें कौन बताये कि कोरोना का खतरा शमसान घाट से ज्यादा शहर में हो रहे रोज भीड़-भाड़ वाले इलाके से है, इन्हें कौन बताये कि कोरोना के वायरस। गंगा किनारे रेत और मिट्टी में नहीं बल्कि शहर के अंदर दुकानों और घरों के दरवाजों और बजबजाती नालियों में हो सकता है।हालांकि घाट पर मौजूद लोगों नें चेयरमैन के इस कार्य की जम कर तारीफ़ कि, लेकिन शहर कि बजबजाती नालियों को छोड़ गंगा घाट पर जलती चिताओं के पास रेत और मिट्टी को सेनेटाइज करना हास्यास्पद मालूम पड़ता है।
Report-S.Asif Hussain zaidi
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