आजमगढ़ : बरसात में बकरियों के संक्रामक रोग, पीपीआर का टीकाकरण अत्यंत आवश्यक
बकरी पालन गरीब एवं भूमिहीन किसानों के लिए आजकल वरदान साबित हो रहा हैं क्योंकि इससे कम खर्च व अति सरल प्रबंधन से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है।
बकरी पालन गरीब एवं भूमिहीन किसानों के लिए आजकल वरदान साबित हो रहा हैं क्योंकि इससे कम खर्च व अति सरल प्रबंधन से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। इसलिए इसे गरीबों की गाय की भी संज्ञा दी गई है। बकरी पालन को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए बकरियों को स्वस्थ रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
बकरियों में संक्रामक रोगों में पीपीआर एक प्राण घातक बीमारी है । यह बीमारी वर्ष में कभी भी बकरियों को संक्रमित कर सकती है परंतु विशेष रुप से वर्षा ऋतु में इसका असर ज्यादा देखने को मिलता है। इस बीमारी के प्रमुख लक्षण मुंह एवं नाक में छाले पड़ जाना, नाक, मुंह , आंख से पानी का स्राव होना साथ ही इसमें बकरियों के पाचन तंत्र में भी छाले पड़ जाते हैं । जिससे पशु चारा दाना लेने में असमर्थ हो जाते हैं । इन लक्षणों के साथ-साथ बकरियों में पतले दस्त शुरू हो जाते हैं इसका पहचान पशुपालक नाक मुंह के छाले से कर सकते हैं। संक्रमित पशुओं को तत्काल समय से इलाज नहीं कराया गया तो उनकी 4 से 7 दिनों के अंदर मृत्यु हो जाती है। इससे बचाव के लिए पशुपालन विभाग द्वारा पीपीआर के टीके प्रतिवर्ष बकरियों में लगाए जाते हैं । प्रथम बार टीका बकरियों (नर या मादा )में उम्र के 4 माह पर अवश्य लगवा देना चाहिए। इस टीके की प्रतिरक्षा 3 वर्ष की होती है। इस प्रकार पशुपालक भाई अपनी बहुमूल्य बकरियों को समय से टीकाकरण करा कर अपनी इकाई को सुरक्षित रख सकते हैं साथ ही प्राप्त होने वाले आय को नियमित कर सकते हैं। उपरोक्त जानकारी आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय अयोध्या के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र कोटवा आजमगढ़ के पशुपालन विशेषज्ञ शैलेंद्र कुमार सिंह ने दी।
Report- Aman Gupta
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